हिंदू समर्थक पोर्टल ने बताया- शंकराचार्य राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में क्यों नहीं जाएंगे

एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चारों शंकराचार्य राजनीतिकरण, उचित सम्मान न मिलने और समयपूर्व किए जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर नाराज़ हैं. इसके अनुसार, शंकराचार्यों का कहना है कि राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद सरकार ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है’.

//
राम मंदिर का प्रस्तावित डिज़ाइन. (फोटो साभार: फेसबुक/Shri Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra)

एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चारों शंकराचार्य राजनीतिकरण, उचित सम्मान न मिलने और समयपूर्व किए जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर नाराज़ हैं. इसके अनुसार, शंकराचार्यों का कहना है कि राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद सरकार ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है’.

अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर. (फोटो साभार: X@ShriRamTeerth)

नई दिल्ली: सनातन/हिंदू धर्म के शीर्ष आध्यात्मिक गुरु यानी चारों शंकराचार्य अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का हिस्सा नहीं होंगे, जैसा कि द स्ट्रगल फॉर हिंदू एक्ज़िस्टेंस ने 7 जनवरी को अपनी रिपोर्ट में बताया है.

द स्ट्रगल फॉर हिंदू एक्ज़िस्टेंस घोषित रूप से एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल है, जो विश्व स्तर पर हिंदुओं की रक्षा और उनके लिए संघर्ष करने के प्रति समर्पित है.

कार्यक्रम में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने अयोध्या में 22 जनवरी को प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर वरिष्ठ संतों के बीच चिंताएं पैदा कर दी हैं.

पोर्टल की रिपोर्ट कहती है, ‘उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे आयोजन की मुख्य पृष्ठभूमि में आ जाएंगे, जो संभावित रूप से सनातन शास्त्रों द्वारा निर्धारित पारंपरिक अनुष्ठानों को कमजोर कर रहे हैं. राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जन उत्साह के बावजूद, शंकराचार्यों की अनुपस्थिति धर्मनिष्ठ हिंदुओं के बीच विवाद का विषय है.’

‘पवित्रता और श्रद्धा का अभाव’

गोवर्धनमठ पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती ने अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भाग लेने से इनकार कर दिया है, क्योंकि उनका कहना है कि ‘सरकार का प्रयत्न एक ‘पवित्र मंदिर’ के निर्माण पर केंद्रित नहीं है, बल्कि, उनके शब्दों में, ‘एक समाधि’ के निर्माण पर केंद्रित है.

यह चित्रण इस धारणा को बल देता है कि इस परियोजना में ‘पारंपरिक मंदिर निर्माण’ में निहित पवित्रता और श्रद्धा का अभाव है. शामिल न होने का उनका फैसला उस स्थान का हिस्सा न बनने के सिद्धांत पर आधारित है, जहां उचित सम्मान नहीं दिया जाता है.

कार्यक्रम में शामिल न होने का निर्णय उनके पद से जुड़ी गरिमा और महिमा को बनाए रखने की प्रतिबद्धता में निहित है. प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल होने के प्रति अनिच्छा श्रीराम के प्रति श्रद्धा की अस्वीकृति नहीं है, बल्कि कुछ नेताओं की अवसरवादी और जोड़-तोड़ की राजनीति के खिलाफ एक सैद्धांतिक रुख है.

यह रुख आध्यात्मिक नेतृत्व, जिसे ‘कुटिल’ राजनीतिक हस्तियों के प्रभाव से मुक्त माना जाता है, की स्वतंत्रता और नैतिक अखंडता पर जोर देता है.

‘मंदिर अभी भी निर्माणाधीन है’

बताया जा रहा है कि श्रृंगेरी शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री भारती तीर्थ जी ने राम मंदिर निर्माण को लेकर खुशी जाहिर करने के बावजूद निमंत्रण अस्वीकार कर दिया है.

उनकी आपत्ति इस बात पर है कि मंदिर अभी भी निर्माणाधीन है. वह ऐसे ‘कार्य की पवित्रता’ को चिंता जाहिर करते हुए एक ऐसी संरचना में ईश्वर को प्रतिस्थापना अनुचित मानते हैं जो अभी तक पूरी न हुई हो.

उपेक्षा की भावना से असंतोष और भी बढ़ गया है, क्योंकि उनका दावा है कि उन्होंने अन्य सम्मानित हस्तियों के साथ, राम मंदिर के संबंध में अदालत में सबूत पेश किए थे.

हालांकि, उनके बयान के मुताबिक, राम मंदिर ट्रस्ट ने उनसे या उनके प्रतिनिधियों से सलाह नहीं मांगी, जो प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं के साथ परामर्श की कमी की ओर इशारा करता है.

पोर्टल के मुताबिक, शंकराचार्य ने मोदी सरकार पर दोहरा चरित्र अपनाने का आरोप लगाया है. उनका तर्क है कि सरकार, राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद, ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है.’

यह दावा सरकार के इरादों और धार्मिक समुदाय के समग्र कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में व्यापक संदेह को दर्शाता है.

‘अनुपयुक्त समय’

द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य श्री स्वामी सदानंद सरस्वती ने भी राम मंदिर महोत्सव में शामिल न होने का फैसला किया है, उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा के समय को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि शास्त्रों के अनुसार पौष के अशुभ महीने में देवताओं में प्राण-प्रतिष्ठा को अनुचित समझा जाता है.

उन्होंने प्रस्ताव रखा कि अधिक उपयुक्त समय रामनवमी का होता, जो भगवान राम का जन्म दिवस है. विवाद का केंद्रीय बिंदु ‘आयोजन का कथित राजनीतिकरण’ है. स्वामी सदानंद सरस्वती कहते हैं कि इस समय हो रही प्राण-प्रतिष्ठा का मूल कारण राजनीति है.

उनका कहना है कि रामनवमी के दौरान चुनाव आचार संहिता लागू रहेगी, जिससे भाजपा नेताओं के लिए राजनीतिक दृष्टि से प्राण-प्रतिष्ठा का फायदे का सौदा नहीं होगी.

यह दृष्टिकोण मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के इर्द-गिर्द निर्णय लेने की प्रक्रिया के राजनीतिक आयामों से परिचय कराता है.

इसके अलावा, स्वामी सदानंद सरस्वती मंदिर के पूरा होने से पहले इसे पवित्र करने के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाते हैं. वह कहते हैं कि कोई भी घर में तब तक प्रवेश नहीं करता, जब तक कि वह पूरी तरह से तैयार न हो जाए.

‘धर्मशास्त्र विरोधी’

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने विशिष्ट चिंताओं का हवाला देते हुए 22 जनवरी को अयोध्या कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का फैसला किया है, जिसके बारे में द वायर ने 9 जनवरी को अपनी रिपोर्ट में बताया था.

उन्होंने कहा, ‘हम मोदी-विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम धर्मशास्त्र विरोधी भी नहीं होना चाहते.’

इस पोर्टल का कहना है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का दावा है, ‘वेदों में पुरोहितों की भूमिका के लिए एक विशिष्ट प्रावधान है, जो इसे ब्राह्मणों के लिए आरक्षित करता है. वैदिक परंपराओं के अनुसार, पुरोहिती विशेष तौर पर ब्राह्मण जाति के लिए मानी जाती है.’

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती वेदों में उल्लिखित इन स्थापित प्रथाओं का पालन करने के महत्व पर जोर देते हैं.

उन्होंने मंदिर के पुजारी के रूप में शूद्र की नियुक्ति की आलोचना की है और इसे वेदों में उल्लिखित धार्मिक सिद्धांतों से विचलन के रूप में देखते हैं.

पोर्टल लिखता है, ‘यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक बार नरेंद्र मोदी अपनी राजनीतिक समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु शंकराचार्यों के चरणों में देखे गए थे, जो अब सनातन मूल्यों और गरिमाओं को कमजोर करने के लिए एक अधार्मिक की भूमिका निभा रहे हैं.’

इसमें कहा गया है, ‘बहुप्रतीक्षित राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा में हिंदू धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरुओं का शामिल न होना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है. यह न केवल एक धार्मिक झटका है, बल्कि इसके व्यापक सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ भी हैं.’

श्रृंगेरी शंकराचार्य श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी ने अपना आशीर्वाद दिया है कि प्रत्येक आस्तिक को भगवान श्रीराम की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए 22 जनवरी को अयोध्या में सबसे पवित्र और दुर्लभ प्राण-प्रतिष्ठा में भाग लेना चाहिए. लेकिन, पोर्टल का कहना है, ‘संदेश से यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि वह अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा में भाग लेंगे या नहीं.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq