अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख़ को दोहराते हुए पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि राजनेताओं की अपनी सीमाएं हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं, इनका पालन किया जाना चाहिए. नेताओं द्वारा हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करना पागलपन है.
नई दिल्ली: पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख को दोहराते हुए बीते शनिवार (13 जनवरी) को कहा कि धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं है और यहां तक कि संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता है.
शंकराचार्य ने कहा, ‘राजनेताओं की अपनी सीमाएं हैं और संविधान के तहत उनकी जिम्मेदारी है. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं और इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए. नेताओं द्वारा हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करना पागलपन है. संविधान के अनुसार भी यह एक जघन्य अपराध है.’
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, पुरी शंकराचार्य ने ये टिप्पणी पश्चिम बंगाल के गंगा सागर मेले में की, जहां वह मकर संक्रांति के अवसर पर वार्षिक अनुष्ठान स्नान में भाग लेने आए थे.
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि एक शंकराचार्य के तौर पर उनकी भी कुछ सीमाएं हैं कि वह कहां जा सकते हैं, किस चीज में हस्तक्षेप कर सकते हैं और क्या खा सकते हैं.
शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि उनके अनुसार जहां तक ‘मूर्ति प्रतिष्ठा’ का सवाल है तो शास्त्रों के अनुसार निर्धारित नियम हैं और राज्य के प्रमुख या प्रधानमंत्री को इन नियमों का पालन करना होता है.
उन्होंने कहा, ‘किसी के नाम का प्रचार करने के लिए इन नियमों को तोड़ना भगवान के खिलाफ विद्रोह का कार्य है और विनाश के रास्ते पर जाना है.’
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह अयोध्या से नाराज नहीं हैं और वह वहां जाते रहते हैं, लेकिन 22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेंगे.
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि वह केंद्र सरकार से नाराज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के निमंत्रण में उन्हें एक सहयोगी के साथ शामिल होने के लिए कहा गया था.
उन्होंने कहा कि शंकराचार्यों की धार्मिक और आध्यात्मिक श्रेष्ठता के बावजूद उन्हें मंदिर के ‘गर्भगृह’ में जगह नहीं दी जाती और उन्हें बाहर रहने का निर्देश दिया जाता है.
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘यह मुझे स्वीकार्य नहीं है. राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में बैठकर तालियां बजाते देखना मुझे अच्छा नहीं लगता.’
मालूम हो कि चारों शंकराचार्यों के 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने की खबरें आ चुकी है.
बीते 12 जनवरी को गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा था कि वह विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के जुड़े होने के कारण अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे.
इससे पहले पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और ज्योतिष्पीठ (उत्तराखंड) के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे, क्योंकि एक अधूरे मंदिर के अभिषेक ने शास्त्रों का उल्लंघन किया है.
बीते 7 जनवरी को एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ‘द स्ट्रगल फॉर हिंदू एक्ज़िस्टेंस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि क्यों सनातन/हिंदू धर्म के शीर्ष आध्यात्मिक गुरु यानी चारों शंकराचार्य अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का हिस्सा नहीं होंगे.
कार्यक्रम में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने अयोध्या में 22 जनवरी को प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर वरिष्ठ संतों के बीच चिंताएं पैदा कर दी हैं.
पोर्टल की रिपोर्ट कहती है, ‘उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे आयोजन की मुख्य पृष्ठभूमि में आ जाएंगे, जो संभावित रूप से सनातन शास्त्रों द्वारा निर्धारित पारंपरिक अनुष्ठानों को कमजोर कर रहे हैं. राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जन उत्साह के बावजूद, शंकराचार्यों की अनुपस्थिति धर्मनिष्ठ हिंदुओं के बीच विवाद का विषय है.’
पोर्टल के मुताबिक, शंकराचार्यों ने मोदी सरकार पर दोहरा चरित्र अपनाने का आरोप लगाया है. उनका तर्क है कि सरकार, राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद, ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है.’