मस्जिद की विकास समिति के नए प्रमुख ने कहा है कि अब लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक को ‘ताजमहल से भी बेहतर’ बनाने का है. उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अयोध्या, गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण बने. इस हद तक विज्ञापन करेंगे कि जो कोई भी राम मंदिर देखने आएगा, वह मस्जिद भी देखने यहां पहुंचेगा.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बीच शीर्ष अदालत के आदेश के तहत बनाई जा रही मस्जिद के निर्माण की देखरेख करने वाले ट्रस्ट ‘इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन’ (आईआईसीएफ) ने इस परियोजना के वित्तपोषण के लिए एक अलग दृष्टिकोण आजमाने का फैसला किया है, जो पैसे की कमी और प्रशासनिक देरी के कारण अभी तक शुरू नहीं हुई है.
ट्रस्ट इसके निर्माण को लेकर फिर से प्रयास शुरू करने की योजना बना रहा है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2023 में नियुक्त मस्जिद की विकास समिति के नए प्रमुख महाराष्ट्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हाजी अरफात शेख हैं, जो इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं.
इससे पहले दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में वास्तुकला संकाय के संस्थापक डीन प्रोफेसर एसएम अख्तर की योजना में 4,500 वर्ग मीटर में एक अस्पताल, सामुदायिक रसोई, लाइब्रेरी और एक अनुसंधान केंद्र शामिल किया गया था.
हाजी अरफात कहते हैं कि अब लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक को ‘ताजमहल से भी बेहतर’ बनाने का है. साथ ही ‘दुनिया की सबसे बड़ी कुरान, जो लगभग 21 फीट की होगी’, इसमें होगी.
उन्होंने कहा कि पुणे के वास्तुकार इमरान शेख द्वारा तैयार किया गया नया डिज़ाइन फरवरी के अंत तक तैयार हो जाएगा. इसमें अस्पताल और सामुदायिक रसोई के साथ अन्य सुविधाएं शामिल की जाएंगी.
उनके अनुसार, यह भारत की पहली मस्जिद होगी, जिसमें पांच मीनारें होंगी. साथ ही इमें वॉटर एंड लाइट शो की भी योजना बनाई जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘मस्जिद की लाइटें सूर्यास्त के समय जलेंगी और सूर्योदय के समय अपने आप बंद हो जाएंगी. यहां दुबई से भी बड़ा एक विशाल मछली-घर भी होगा.’
मालूम हो कि नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा था.
एक सदी से अधिक पुराने इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि न्यास को 2.77 एकड़ जमीन का मालिकाना हक देते हुए उस स्थान पर मंदिर के निर्माण की अनुमति दे दी थी, जहां दिसंबर 1992 में हिंदू राष्ट्रवादियों ने 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था.
वहीं, शीर्ष अदालत ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ ज़मीन देने का निर्देश दिया था. हालांकि मस्जिद के निर्माण के लिए फरवरी 2020 में अयोध्या से 25 किमी दूर धन्नीपुर में पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया गया था.
बहरहाल मस्जिद विकास समिति के प्रमुख हाजी अरफात का अनुमान है कि विस्तारित दृष्टिकोण के साथ इसका निर्माण रमजान के बाद 2024 की दूसरी छमाही में शुरू होगा.
उन्होंने कहा, ‘कुरान की आयतों वाली एक ईंट सऊदी अरब के मदीना और भारत भर के प्रमुख दरगाहों तक जाएगी.’
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शेख को अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा गठित ट्रस्ट ‘आईआईसीएफ’ के अध्यक्ष जुफर अहमद फारूकी द्वारा नियुक्त किया गया है. उन्हें पिछले साल आईआईएफसी में ट्रस्टी और इसके सलाहकारों में से एक भी बनाया गया था.
महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रह चुके शेख ने मस्जिद के नाम ‘मस्जिद-ए-अयोध्या’ पर आपत्ति जताई और इसे बदलकर ‘मुहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद’ कर दिया है, जो कि पैगंबर के नाम पर रखा गया है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि आईआईएफसी दान के लिए घर-घर नहीं जाएगा, बल्कि आसान दान के लिए क्यूआर कोड के साथ फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत में एक वेबसाइट लॉन्च करेगा.
रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम राम मंदिर के लिए धन जुटाने के लिए 2021 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के 45-दिवसीय राष्ट्रव्यापी राम मंदिर निधि समर्पण अभियान के विपरीत है. विहिप ने घर-घर जाकर करीब 2,100 करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे.
शेख ने कहा, ‘अयोध्या भारत का सबसे बड़ा विषय है और मंदिर और मस्जिद दोनों के निर्माण से समुदायों के बीच तनाव खत्म हो जाएगा. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अयोध्या गंगा-जमुनी तहजीब का बेहतरीन उदाहरण बने.’
उन्होंने कहा कि वह अयोध्या मस्जिद परियोजना का इस हद तक विज्ञापन करेंगे कि जो कोई भी राम मंदिर देखने आएगा, वह मस्जिद भी देखने के लिए यहां पहुंचेगा.