डीयू के दौलतराम कॉलेज की एक एडहॉक शिक्षक डॉक्टर ऋतु सिंह को अगस्त 2020 में अचानक नौकरी से निकाल दिया गया था. उनका दावा है कि इसकी वजह जातिगत भेदभाव है, जिसे लेकर वे कॉलेज की प्रिंसिपल सविता रॉय के ख़िलाफ़ अगस्त 2023 से विरोध प्रदर्शन कर रही हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में काफी अर्से से अस्थायी (एडहॉक) शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर देने का मुद्दा गर्माया हुआ है. इन्हीं हालात में डीयू के दौलतराम कॉलेज की एक एडहॉक शिक्षक डॉक्टर ऋतु सिंह, जिन्हें कोरोना काल के समय विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था, लगभग 140 दिनों से धरने पर हैं.
डॉ. ऋतु का आरोप है कि दौलतराम कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय ने जातिगत आधार पर भेदभाव करते हुए उन्हें नौकरी से निकाल दिया, जिसका विरोध वे पिछले 140 दिनों से कर रही हैं. हालांकि, बीते सप्ताह धरने के 136वें दिन दिल्ली पुलिस की ओर से डॉ. ऋतु और उनके साथियों के साथ बर्बरता की गई और उनके धरने को हटाने का प्रयास किया गया और धरनास्थल से तमाम चीज हटा दी गईं.
क्या है पूरा मामला?
डॉ. ऋतु सिंह दलित समुदाय से आती हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद अगस्त 2019 में एडहॉक शिक्षक के तौर पर उनकी जॉइनिंग डीयू के ही दौलतराम कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग में हुई थी, जहां से उन्हें अचानक अगस्त 2020 में नौकरी से निकाल दिया गया.
डॉ. ऋतु के अनुसार, उस समय दौलतराम कॉलेज में 120 एडहॉक शिक्षक थे, जिनमें से 19 शिक्षकों की जॉइनिंग फिर हुई सिवाय उनके। और तो और, मनोविज्ञान विभाग में भी पांच एडहॉक शिक्षक थे, जिनमें से चार की रिजॉइनिंग हुई, पर डॉ. ऋतु का नाम इस सूची में भी नहीं था.
वे कहती हैं, ‘दौलतराम कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय ने जातिगत आधार पर मेरे साथ यह सब किया. उनका व्यवहार मेरे साथ हमेशा भेदभावपूर्ण रहा है. जब भी वे हमारे विभाग में आती थीं तो सभी शिक्षकों से अच्छी तरह बात करती थीं लेकिन मुझसे उनका व्यवहार हमेशा से अच्छा नहीं रहा है और यही बात मुझे खटकती थी. फिर अचानक कोरोना काल आया और एक लॉकडाउन के बाद जब सभी एडहॉक शिक्षकों की रिजॉइनिंग होने लगी तो उसी समय 10 अगस्त 2020 को लिखित तौर पर मेरी भी जॉइनिंग हो गई. इस पर टीचर्स इंचार्ज के हस्ताक्षर भी शामिल थे. लेकिन अचानक 11 अगस्त 2020 को मुझे क्लास जाने से रोक दिया गया.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘जब मैंने किया तो शैक्षणिक अधिकारी (एओ) मुझे बताते हैं कि एक घंटे पहले ही प्रिंसिपल मैडम ने मेरा नाम निकालने को कहा है. जब मैं कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता राय से सवाल करती हूं तो वे कोई खास जवाब नहीं देतीं और यह कहते हुए टालती हैं कि कॉलेज में वर्क लोड नहीं है जिसके कारण मुझे निकाला जा रहा है जबकि मेरे अलावा 119 एडहॉक शिक्षकों के लिए कॉलेज में वर्कलोड मौजूद है! आख़िर इस बात में कहां का तुक है?’
डॉ. ऋतु का आरोप है कि यह सब उनके साथ इसलिए किया गया कि वे पिछड़ी जाति से आती है और प्रिंसिपल को उनकी सक्रियता और आगे बढ़ना पसंद नहीं है. डॉ. ऋतु कहती हैं कि उनका संबंध छात्र राजनीति से भी रहा है, वे एक सक्रिय छात्र नेता भी रही हैं और आज भी विभिन्न मामलों पर अपनी आवाज उठाती रही हैं, जिसके कारण उनके साथ यह सब हो रहा है.
उनका यह भी आरोप है कि प्रिंसिपल डॉ. सविता राय वर्तमान सरकार और संघ की समर्थक हैं जिसके कारण उन्हें अपने कॉलेज में कोई अन्य विचारधारा बर्दाश्त नहीं होती.
डॉ. ऋतु कहती हैं, ‘देशभर में हमारी सरकार पिछड़े वर्ग के लिए बातें तो बहुत करती है लेकिन न्याय कभी नहीं मिलता. आए दिन दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय होता जिसके नतीजे में कई मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं और वही हमें रोहित वेमुला और पायल तड़वी की शक्ल में नज़र आते हैं जो मानसिक तनाव का शिकार हो आत्महत्या कर लेते हैं. मुझे रोहित बनने मत दीजिए.’
ज्ञात हो कि डॉ. ऋतु द्वारा दौलतराम कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत केस भी दर्ज कराया जा चुका है जिसमें चार्जशीट भी दाख़िल कर दी गई है. हालांकि अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके अलावा भी डॉ. सविता पर कई मामले दर्ज किया जा चुके हैं लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा किसी भी मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी या पूछताछ नहीं की गई है. यहां तक की यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
क्या कहते हैं छात्र
डॉ. ऋतु के आंदोलन को छात्रों का सहयोग भी मिला है. अगस्त 2023 में प्रदर्शन की शुरुआत से उनका साथ दे रहे एक छात्र आशुतोष बताते हैं कि आंदोलन अनिश्चितकाल के लिए शुरू हुआ था. तब से डॉ ऋतु और उनके साथी यूनिवर्सिटी की आर्ट्स फैकल्टी के गेट नंबर चार पर टेंट लगाकर दिन-रात वहीं धरने पर थे. लेकिन अचानक 9 जनवरी को पुलिस ने वहां तोड़फोड़ कर उन्हें हटाने का प्रयास किया।
उन्होंने बताया, ‘उस सुबह 6 बजे के करीब जब मैं और डॉ ऋतु धरनास्थल से निकले तो दिल्ली पुलिस की ओर से हमारे कुछ साथियों, जो उन टेंट्स में सो रहे थे, को बर्बरता से उठाया गया और हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने धरनास्थल पर मौजूद डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, फातिमा शेख, सावित्रीबाई फुले आदि की प्रतिमा को तोड़ा और हमारे सारे सामान को ज़ब्त कर लिया। ऐसा लग रहा था जैसे दिल्ली पुलिस की ओर से कोई डकैती की गई हो!’
आशुतोष आगे बताते हैं, ‘जब हमें इस बात का पता चला तो हम फौरन धरनास्थल पहुंचे और सुबह तक़रीबन 10 बजे हमने वहां फिर से प्रदर्शन शुरू किया। उस समय डॉ ऋतु भी हमारे साथ मौजूद थी लेकिन हमें भी दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया और बुराड़ी थाने में रात के लगभग एक बजे तक बैठाकर रखा. इसके बाद हमने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ बुराड़ी थाने में ही शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन इस मामले में कोई एफआईआर पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की गई बल्कि सिर्फ हमारी शिकायत लिखी गई है.’
एक अन्य छात्रा अंजलि बताती हैं, ‘एडहॉक शिक्षकों का मामला दिल्ली विश्वविद्यालय में बरसों पुराना हो गया है, जिसका फायदा उठाकर विश्वविद्यालय प्रशासन जानबूझकर ऐसे शिक्षकों को निशाना बना रहा है जो उनके या वर्तमान सरकार के खिलाफ या संघ की विचारधारा के खिलाफ बोलते हैं. यहां तक कि डॉ. ऋतु भी उसी कड़ी का एक हिस्सा हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षकों और विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारियों में विशेष रूप से एक विचारधारा को थोपने का काम किया जा रहा है और जो भी इस विचारधारा के विपरीत पाया जाता है उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है या उस पर फर्ज़ी मुकदमे दर्ज कर दिए जाते हैं.’
अंजलि ने जोड़ा कि डॉ. ऋतु शांतिपूर्ण तरीक़े से अपना विरोध जता रही थीं और एक ऐसे स्थान पर थीं, जो हमेशा से छात्रों और शिक्षकों के लिए धरनास्थल रहा है. ‘यहां हम हमेशा किसी भी अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद करने के लिए आते हैं. डॉ. ऋतु भी वही कर रही थीं लेकिन शायद यह बात प्रशासन को हज़म नहीं हुई. 135 दिन तक यह प्रदर्शन चलता रहा, अचानक बिना किसी नोटिस के 136वें दिन धरनास्थल खाली करा लिया जाता है, प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया जाता है और तो और धारा 144 लागू कर दी जाती है.’
वे सवाल करती हैं, ‘यूनिवर्सिटी का एक ऐसा हिस्सा जहां हमेशा छात्रों का हुजूम होता है, एक सार्वजनिक स्थान के साथ-साथ यह एक शिक्षा संस्थान का हिस्सा है, वहां धारा 144 कैसे लागू की जा सकती है? और तो और पुलिस की ओर से धरनास्थल पर जो नोटिस लगाया गया है उस पर तारीख़ 26 दिसंबर 2023 से 23 फरवरी 2024 लिखी गई है. इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि दिल्ली पुलिस किस प्रकार लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन कर रही है और यह नोटिस भी एक तरह से अवैध मालूम होता है, क्योंकि यह प्रदर्शन बीते अगस्त से शुरू हुआ है और अब तक जारी था जबकि धरनास्थल को 9 जनवरी को ख़ाली करवाया गया है.’
दौलतराम कॉलेज की एक अन्य छात्रा हाइफा कहती हैं, ‘डॉ. ऋतु को लगभग 3 साल पहले नौकरी से निकाला गया लेकिन यह देखकर हैरत होती है कि कॉलेज में कोई छात्र या शिक्षक उनके बारे में कभी बात तक नहीं करता. एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि हर कोई डर का शिकार है. हमारे कॉलेज में डॉ. ऋतु के अलावा भी कई ऐसे शिक्षक मौजूद थे जो राजनीतिक तौर पर सक्रिय थे, कई मुद्दों को उठाते थे. विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकारों की ग़लत नीतियों के खिलाफ बात करते थे लेकिन अब ऐसा महसूस होता है कि कोई बोलना नहीं चाहता.’
जब हाइफा से कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय के बारे में जानना चाहा तो उन्होंनेकहा, ‘वे संघ की मानसिकता से प्रेरित हैं या यूं भी कहें कि वे संघ की बड़ी समर्थक हैं तो भी ग़लत नहीं होगा. यहां तक कि वे खुलेआम इसका प्रचार करतीं हैं. कॉलेज में सावरकर के संबंध में कई कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं और वहीं अगर कोई दूसरा प्रोग्राम आयोजित करना हो तो उसके लिए अनुमति नहीं दी जाती. इसके अलावा कई शिक्षक भी उसे मानसिकता के मालूम होते हैं और वे ऐसे शिक्षकों को खूब सराहती हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)