​महाराष्ट्र: ‘शिंदे गुट असली शिवसेना​’ फैसले के ख़िलाफ़ शिवसेना (यूबीटी) सुप्रीम कोर्ट पहुंची

शिवसेना के उद्धव ठाकरे खेमे द्वारा जून 2022 में संविधान की 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी क़ानून) के तहत मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों के ख़िलाफ़ अयोग्यता याचिका दायर करने के लगभग दो साल बाद महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ बताने का निर्णय बीते 10 जनवरी को आया था.

शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे. (फोटो साभार: फेसबुक/ShivSena)

शिवसेना के उद्धव ठाकरे खेमे द्वारा जून 2022 में संविधान की 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी क़ानून) के तहत मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों के ख़िलाफ़ अयोग्यता याचिका दायर करने के लगभग दो साल बाद महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ बताने का निर्णय बीते 10 जनवरी को आया था.

शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे. (फोटो साभार: फेसबुक/ShivSena)

नई दिल्ली: मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और समर्थक विधायकों को ​‘असली​’ शिवसेना बताते हुए उनके खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं खारिज करने के महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे (शिवसेना यूबीटी) ने बीते सोमवार (15 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

उद्धव खेमे द्वारा जून 2022 में संविधान की 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) के तहत शिंदे और उनके समर्थक विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर करने के लगभग दो साल बाद विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का निर्णय बीते 10 जनवरी को आया था.

विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने महसूस किया कि प्रतिद्वंद्वी गुटों के उभरने के समय विधायी बहुमत के आधार पर शिंदे गुट ही ​‘असली राजनीतिक दल​’ था.

उन्होंने घोषणा की थी, ‘21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरे तो ‘शिंदे गुट’ ही ‘असली शिवसेना राजनीतिक दल’ था. शिंदे गुट के पास 55 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था.’

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शिवसेना (यूबीटी) ने शिंदे खेमे के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वे जून 2022 में पार्टी नेतृत्व द्वारा बुलाई गईं तत्काल बैठकों से ‘जान-बूझकर’ अनुपस्थित रहे थे.

अयोग्यता याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि शिंदे गुट ने जून 2022 में अवैध रूप से एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल (एसएसएलपी) नेता के रूप में फिर से नियुक्त करने और भरत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त करने का प्रस्ताव पारित किया था.

शिवसेना यूबीटी ने दलील दी थी कि शिंदे खेमे ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव और विश्वास मत में सुनील प्रभु द्वारा जारी ह्विप के विपरीत मतदान किया था.

पिछले साल 11 मई को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को 10वीं अनुसूची के तहत न्यायाधिकरण के रूप में अयोग्यता याचिकाओं को ‘उचित समय’ के भीतर सुनने और निर्णय लेने का निर्देश दिया था.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, शिवसेना (यूबीटी) ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भी सौंपा है, जिसमें शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ के रूप में मान्यता देने के महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को चुनौती देने वाली अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया है.

शिवसेना (यूबीटी) ने यह आशंका व्यक्त की है कि लागू किए गए निर्णयों के आधार पर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले विधायकों के समूह को अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है, अगर वे महाराष्ट्र विधानसभा में विधायकों द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं करते हैं.

शीर्ष अदालत के समक्ष अपने पत्र में शिवसेना यूबीटी ने वर्तमान मामले की सुनवाई तत्काल करने का अनुरोध किया गया है.

पत्र में कहा गया है कि महाराष्ट्र विधानसभा में शिंदे गुट के विधायकों की लगातार उपस्थिति, मुख्यमंत्री सहित सरकार में उनके वरिष्ठ पदों पर होना संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का अपमान है. इसलिए, मामला अत्यंत तात्कालिक है.

शिवसेना (यूबीटी) ने यह भी आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष का आदेश ​‘स्पष्ट रूप से गैरकानूनी और विकृत​’ है. उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने ​‘10वीं अनुसूची को उल्टा कर दिया है​’.

संविधान की 10वीं अनुसूची, जिसे आमतौर पर ​‘दलबदल विरोधी कानून​’ के रूप में जाना जाता है, यह सुनिश्चित करती है कि निर्वाचित प्रतिनिधि व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीतिक दलों को नहीं बदल सकते हैं.

पत्र में आगे बताया गया है कि ‘आक्षेपित निर्णयों के निष्कर्षों से यह स्पष्ट है’ कि 2018 में शिवसेना की नेतृत्व संरचना, जहां ‘उद्धव ठाकरे को भारी समर्थन प्राप्त था, के खिलाफ एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों ने विद्रोह कर दिया है और खुले तौर पर चुनौती दी है’, जो 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की श्रेणी में आएगी.