मोदी सरकार ने ‘कॉरपोरेट मित्रों’ की मदद के लिए ‘वन’ की परिभाषा में बदलाव किया था: जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने कॉरपोरेट मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को उन्हें सौंपने और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाना चाहते थे. इसलिए सबसे पहले उन्होंने 2017 में नियमों को बदल दिया, ताकि उन परियोजनाओं को वैध बनाया जा सके, जिन्होंने वन मंज़ूरी का उल्लंघन किया था.

जयराम रमेश. (फोटो साभार: फेसबुक/Deshpande Foundation)

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने कॉरपोरेट मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को उन्हें सौंपने और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाना चाहते थे. इसलिए सबसे पहले उन्होंने 2017 में नियमों को बदल दिया, ताकि उन परियोजनाओं को वैध बनाया जा सके, जिन्होंने वन मंज़ूरी का उल्लंघन किया था.

जयराम रमेश. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने मंगलवार (20 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट के उस अंतरिम आदेश की सराहना की, जिसमें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 1996 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित ‘वन’ की परिभाषा के अनुसार कार्य करने के लिए कहा गया है और कहा कि केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर वह वनों और पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर अपने ‘कॉरपोरेट मित्रों’ को लाभ पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को उन्हें सौंपने और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाने के लिए कानूनों में बदलाव करने का आरोप लगाया.

जयराम रमेश ने सोशल साइट एक्स पर एक लंबी पोस्ट में कहा कि चुनावी बॉन्ड घोटाले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की एक और घोर अवैध और विनाशकारी योजना पर रोक लगा दी है.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री अपने कॉरपोरेट पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को सौंपना और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाना चाहते थे. इसलिए सबसे पहले उन्होंने 2017 में नियमों में बदलाव किया, ताकि वन मंजूरी का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को वैध बनाया जा सके.’

उन्होंने आरोप लगाया कि कोयला खदानों, कारखानों और सीमेंट संयंत्रों सहित बड़े कॉरपोरेट कंपनियों की 100 से अधिक परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी का उल्लंघन करते हुए खुलेआम काम शुरू करने की अनुमति दी गई है.

 

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद 2023 में मोदी सरकार वन संरक्षण संशोधन लेकर आई, जिसने 2 लाख वर्ग किमी जंगल से सुरक्षा छीन ली. यह 1996 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह से उल्लंघन था. इस संशोधन से ‘मानित वनों’ के साथ-साथ उत्तर-पूर्व के जंगलों को भी हटाना आसान हो जाता.’

बयान के अनुसार, ‘शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों अवैध कदमों पर रोक लगा दी है. इसने पर्यावरणीय मंजूरी का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को दी गई अवैध अनुमतियों पर रोक लगा दी है और आदेश दिया है कि 1996 के निर्णय के अनुसार, जंगल की परिभाषा का पालन किया जाना चाहिए.’

जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस आदेश की सराहना करती है और केंद्र में सरकार बनने पर भारत के जंगलों और पर्यावरण की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने आगे कहा कि भारत की सर्वोच्च अदालत में एक-एक करके मोदी सरकार के घोटालों और धोखाधड़ी का पर्दाफाश हो रहा है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री रहे जयराम रमेश वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक पर संसदीय समिति की रिपोर्ट के खिलाफ असहमति नोट दायर करने वाले छह विपक्षी सदस्यों में से एक थे, जिसने ‘वन’ की परिभाषा को बदल दिया था.