गंगा और अन्य नदियों का पानी नहाने के लिए भी असुरक्षित: बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट

बिहार के 27 जिलों में गंगा, सोन, कोसी, बागमती आदि नदियों के 98 बिंदुओं पर नमूना जांच पर आधारित रिपोर्ट में पानी में मलीय कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की अत्यधिक उपस्थिति देखी गई, जो नहाने और सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की यह रिपोर्ट हाल ही में विधानसभा में पेश की गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: मनोज सिंह/द वायर)

बिहार के 27 जिलों में गंगा, सोन, कोसी, बागमती आदि नदियों के 98 बिंदुओं पर नमूना जांच पर आधारित रिपोर्ट में पानी में मलीय कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की अत्यधिक उपस्थिति देखी गई, जो नहाने और सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की यह रिपोर्ट हाल ही में विधानसभा में पेश की गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: मनोज सिंह/द वायर)

नई दिल्ली: बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) द्वारा हाल ही में विधानसभा में पेश की गई नदियों के स्वास्थ्य पर वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि राज्य से गुजरने वाली लगभग सभी प्रमुख नदियां नहाने के लिए भी असुरक्षित हैं.

27 जिलों में गंगा, सोन, कोसी, बागमती आदि नदियों के 98 बिंदुओं पर नमूना जांच पर आधारित रिपोर्ट में पानी में मलीय कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया (Faecal Coliform Bacteria) की अत्यधिक उपस्थिति देखी गई. रक्सौल में सिरसिया नदी के पानी के नमूने में लगभग 2,40,000 सबसे संभावित संख्या (एमपीएन)/100 मिलीलीटर की उपस्थिति मिली.

एमपीएन, एक सांख्यिकीय विधि है, जिसका उपयोग किसी नमूने, आमतौर पर भोजन या पानी में किसी विशेष सूक्ष्मजीव की व्यवहार्य कोशिकाओं की संख्या का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानदंड तय करते हैं कि 1000 एमपीएन/100 मिलीलीटर से अधिक मलीय कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया वाले नदी के पानी का उपयोग फसलों की सिंचाई के लिए भी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि कच्चे कृषि उत्पाद लोगों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों की चपेट में ला सकते हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ और पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) के कार्डियोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख यूसी सामल ने कहा कि उच्च स्तर के कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया वाले पानी में तैरने से बुखार, मतली या पेट में ऐंठन जैसी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, अगर यह मुंह, कान, नाक या घावों के माध्यम से प्रवेश करता है.

सामल ने कहा, ‘ऐसे पानी के अत्यधिक सेवन से टाइफाइड, हेपेटाइटिस, गैस्ट्रोएंटेराइटिस और कान में संक्रमण भी हो सकता है.’

बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2023 तक किए गए नमूना सर्वेक्षण के आधार पर गंगा के पानी के नमूनों में लखीसराय को छोड़कर (जहां एफसीबी की गिनती 28,000 दर्ज की गई थी), बक्सर से भागलपुर तक 92,000 एमपीएन/100 मिलीलीटर कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया (एफसीबी) थे. इसी तरह सोन नदी के पानी में रोहतास में 35,000 एफसीबी और अरवल में 3,500 एफसीबी थे, जबकि गंडक के पानी में सारण और वैशाली में 92,000 एफसीबी, मुजफ्फरपुर में 54,000 और गोपालगंज में 13,000 एफसीबी थे.

बूढ़ी गंडक, पुनपुन, कोसी, कमला, बागमती, घाघरा, दाहा, महानंद, सिकहरना, राम रेखा, हरबोरा, लखनदेई, परमार और हरहा जैसी अन्य नदियों के पानी के नमूने एफसीबी द्वारा अत्यधिक प्रदूषित पाए गए. इन नदियों के नमूनों में विभिन्न हिस्सों में 92,000 से 13,000 की रेंज में एफसीबी थे.