राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेल मैनुअल से जाति-आधारित नियम हटाने चाहिए: गृह मंत्रालय

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक एडवाइज़री जारी कर कहा है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके जेल मैनुअल में कैदियों को उनकी जाति और धर्म के आधार पर अलग करने या दायित्व सौंपने का प्रावधान न हो. कुछ जेल मैनुअल ऐसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं का प्रावधान कर रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Tum Hufner/Unsplash)

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक एडवाइज़री जारी कर कहा है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके जेल मैनुअल में कैदियों को उनकी जाति और धर्म के आधार पर अलग करने या दायित्व सौंपने का प्रावधान न हो. कुछ जेल मैनुअल ऐसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं का प्रावधान कर रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Tum Hufner/Unsplash)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार (26 फरवरी) को एक एडवाइजरी जारी कर कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके जेल मैनुअल में कैदियों को उनकी जाति और धर्म के आधार पर अलग करने या कर्तव्य सौंपने का प्रावधान न हो.

रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने कहा कि उसे एहसास हुआ है कि कुछ जेल मैनुअल ऐसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं का प्रावधान कर रहे हैं.

इसने बताया कि 2016 में तैयार किए गए एक मॉडल जेल मैनुअल में कैदियों को उनकी जाति या वर्ग के आधार पर वर्गीकृत करने और जाति या धार्मिक आधार पर जेल की रसोई में उनके भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया था.

मंत्रालय ने कहा कि संविधान धर्म, नस्ल, जाति और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर भी रोक लगाता है.

मंत्रालय की एडवाइजरी में कहा गया है, ‘सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अनुरोध है कि वे उपरोक्त पर ध्यान दें और सुनिश्चित करें कि उनके राज्य जेल मैनुअल/जेल अधिनियम में ऐसे भेदभावपूर्ण प्रावधान नहीं होने चाहिए.’

इसमें कहा गया है, ‘यदि ऐसा कोई प्रावधान मौजूद है, तो मैनुअल/अधिनियम से भेदभावपूर्ण प्रावधान में संशोधन/हटाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.’

इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने जाति-आधारित भेदभाव को मंजूरी देने वाले भारतीय जेल मैनुअल पर द वायर की रिपोर्टर सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में 11 राज्यों और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया था.

शीर्ष अदालत ने तीन पहलुओं, जिनमें जेलों में भेदभाव प्रचलित है: जाति के आधार पर श्रम का विभाजन, जाति के आधार पर उनका अलगाव और विमुक्त जनजातियों के रूप में जाने जाने वाले लोगों के खिलाफ विशेष रूप से उपयोग किए जाने वाले भेदभावपूर्ण प्रावधान, पर ध्यान दिया था.

जेलें राज्य का विषय हैं और अलग-अलग राज्यों के जेल मैनुअल के अनुसार चलाई जाती हैं. हालांकि, पिछले दशकों में इन नियमावली में कुछ बदलाव हुए हैं, लेकिन कुछ ने असंवैधानिक जाति-आधारित श्रम नियमों को बरकरार रखा है.

उदाहरण के लिए 1968 का मध्य प्रदेश जेल मैनुअल कहता है: ‘संरक्षण कार्य या हाथ से मैला ढोने का काम, एक मेहतर कैदी द्वारा किया जाएगा जिसे शौचालयों में मानव मल को संभालने के लिए सौंपा जाएगा.’

मेहतर एक अनुसूचित जाति हैं और लंबे समय से मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं.

इसी तरह, दलित समुदाय के लोगों को सफाई का काम सौंपने के साथ-साथ पश्चिम बंगाल जेल कोड में यह भी कहा गया है कि ‘उच्च जाति’ समूह के लोगों को रसोइया के रूप में नियुक्त किया जाएगा.

वायर  द्वारा ‘क्यों भारतीय जेलें मनु के बनाए जाति नियमों से चल रही हैं‘ शीर्षक से एक रिपोर्ट, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुकन्या शांता की याचिका भी आधारित है- के प्रकाशित होने के तुरंत बाद दिसंबर 2020 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस मामले को स्वत: संज्ञान में लिया और राज्य के गृह विभाग को अपने जेल नियमों को बदलने का निर्देश दिया.

70 वर्षों में पहली बार मैनुअल को अंततः बदल दिया गया और जाति-आधारित प्रथाओं के सभी उल्लेख हटा दिए गए.

कैदियों की चिकित्सा देखभाल और ऑनलाइन रिकॉर्ड

गृह मंत्रालय की एडवाइजरी में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नियमित रूप से कैदियों के स्वास्थ्य की जांच करने और महिलाओं और ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए विशेष जांच करने की सलाह दी गई है.

इसमें कहा गया है कि कैदियों की यौन जनित बीमारियों सहित संक्रामक बीमारियों के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य की भी जांच की जानी चाहिए.

एडवाइजरी में ई-प्रिज़न प्लेटफॉर्म पर डेटाबेस को नियमित रूप से अपडेट करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि जानकारी सभी कॉलम में दर्ज की गई है और कोई भी फ़ील्ड खाली नहीं छोड़ा गया है.

मंत्रालय ने कहा कि इस प्लेटफॉर्म पर की जाने वाली अपडेट में कैदियों के स्वास्थ्य जांच का विवरण भी शामिल होना चाहिए.

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