गिग श्रमिक रोज़ाना 14 घंटे, बिना छुट्टी के काम कर रहे हैं; तनख़्वाह भी उचित नहीं: अध्ययन

पीपुल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स द्वारा किए अध्ययन में पाया गया कि गिग वर्क भी सामाजिक असमानताओं से प्रभावित है. जहां अनारक्षित श्रेणी के केवल 16% ड्राइवर 14 घंटे से अधिक काम करते हैं, वहीं ऐसा करने वाले एससी-एसटी ड्राइवर 60% हैं.

ज़ोमैटो कर्मचारी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Twitter/@ZomatoIN)

पीपुल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स द्वारा किए अध्ययन में पाया गया कि गिग वर्क भी सामाजिक असमानताओं से प्रभावित है. जहां अनारक्षित श्रेणी के केवल 16% ड्राइवर 14 घंटे से अधिक काम करते हैं, वहीं ऐसा करने वाले एससी-एसटी ड्राइवर 60% हैं.

ज़ोमैटो कर्मचारी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Twitter/@ZomatoIN)

नई दिल्ली: लगभग 83% ऐप-आधारित कैब ड्राइवर प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक काम करते हैं, जबकि लगभग एक तिहाई के लिए काम के घंटे प्रतिदिन 14 घंटे से अधिक होते हैं.

यह जानकारी 10,000 से अधिक भारतीय गिग वर्कर्स (स्वतंत्र तौर पर काम करने वाले श्रमिकों) के एक अध्ययन से पता चला है.

रिपोर्ट के अनुसार, पीपुल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक असमानताएं गिग वर्क में दोहराई जाती हैं. जहां अनारक्षित श्रेणी के केवल 16% ड्राइवर 14 घंटे से अधिक काम करते हैं, वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति के ड्राइवर्स के लिए यह आंकड़ा 60% है.

इस अध्ययन में आठ शहरों – दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, लखनऊ, कोलकाता, जयपुर और इंदौर – में 5,302 कैब ड्राइवरों और 5,028 डिलीवरी करने वाले शामिल थे.

आर्थिक संघर्ष

रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन में भाग लेने वाले 43 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागी सभी खर्चों को काटने के बाद 500 रुपये प्रतिदिन या 15,000 रुपये/महीने से कम कमाते हैं.

अध्ययन में पाया गया कि लगभग 34% ऐप-आधारित डिलीवरी कर्मचारी प्रति माह 10,000 रुपये से कम कमाते हैं, जबकि 78 प्रतिशत प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक काम करते हैं.

विभिन्न जातियों के श्रमिकों के बीच अंतर बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘ये आय असमानताएं पहले से मौजूद सामाजिक असमानताओं को और बढ़ा देती हैं और इन समुदायों के भीतर गरीबी और संकट के चक्र को कायम रखती हैं.’

इसमें कहा गया है कि लंबे समय तक काम करने के कारण ड्राइवर शारीरिक रूप से थक जाते हैं और सड़क यातायात दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है. कुछ ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों की ‘दरवाजे पर 10 मिनट की डिलीवरी’ नीति से यह और बढ़ गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 86% डिलीवरी व्यक्तियों ने ऐसी नीतियों को ‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’ बताया. सामाजिक और नौकरी सुरक्षा की कमी अतिरिक्त तनाव पैदा करती है और संभावित स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती है.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि लगभग 72% कैब ड्राइवर और 76% डिलीवरी कर्मचारी बहुत मुश्किल से गुजरा कर रहे हैं, वहीं 68% ऐसे हैं, जिन्होंने उनकी अपनी आय से कहीं अधिक खर्चे होने की बात स्वीकारी हैं. रिपोर्ट इन ऐप-आधारित श्रमिकों के लिए बेहतर पैसे और समर्थन की पुरजोर वकालत करती है.

पर्याप्त पैसे नहीं, कोई छुट्टी नहीं

रिपोर्ट के मुताबिक, 80 प्रतिशत से अधिक ऐप-आधारित कैब ड्राइवरों और 73% डिलीवरी व्यक्तियों ने क्रमशः अपने किराए और दरों को लेकर असंतोष व्यक्त किया. उनका मानना है कि कंपनियां प्रति सवारी कमीशन दर का 31-40% के बीच काटती हैं, जो आधिकारिक तौर पर 20% के दावे के विपरीत है. 68% ने इन कटौतियों को मनमाना, अस्पष्ट और अनुचित पाया.

कम वेतन के अलावा श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा छुट्टी लेने के लिए संघर्ष करता है. अध्ययन के अनुसार, 41% ड्राइवर और 48% डिलीवरी कर्मचारी सप्ताह में एक भी दिन की छुट्टी लेने में असमर्थ हैं.

रिपोर्ट में आईडी डीएक्टिवेट होने और ग्राहकों द्वारा दुर्व्यवहार के मुद्दे पर भी बात की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘83% ड्राइवरों ने बताया कि आईडी ब्लॉक हो जाने का मुद्दा उन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, वहीं 47% ने कहा कि यह मुद्दा उन्हें बेहद प्रभावित करता है. डिलीवरी व्यक्तियों के मामले में यह प्रतिशत 87% से भी अधिक है. ग्राहकों का व्यवहार ड्राइवरों के एक महत्वपूर्ण हिस्से (72%) को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है, जबकि 68% डिलीवरी पर्सन कथित तौर पर इससे नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं.’

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