हरियाणा: मुख्यमंत्री खट्टर का इस्तीफ़ा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष-सांसद नायब सैनी बने मुख्यमंत्री

इस कदम के पीछे का तात्कालिक कारण जननायक जनता पार्टी के साथ भारतीय जनता पार्टी के साढ़े चार साल के गठबंधन का टूटना बताया जा रहा है. आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सीट आवंटन में मतभेद को भाजपा-जजपा गठबंधन में दरार का मुख्य कारण माना जा रहा है.

कुरुक्षेत्र सांसद नायब सिंह सैनी मनोहर लाल खट्टर के साथ. (फोटो साभार: एक्स)

इस कदम के पीछे का तात्कालिक कारण जननायक जनता पार्टी के साथ भारतीय जनता पार्टी के साढ़े चार साल के गठबंधन का टूटना बताया जा रहा है. आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सीट आवंटन में मतभेद को भाजपा-जजपा गठबंधन में दरार का मुख्य कारण माना जा रहा है.

कुरुक्षेत्र सांसद नायब सिंह सैनी मनोहर लाल खट्टर के साथ. (फोटो साभार: एक्स)

चंडीगढ़: एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने अपने मंत्रिमंडल के साथ मंगलवार (12 मार्च) को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने स्वतंत्र उम्मीदवारों के साथ मिलकर नई सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी.

इसके बाद, चंडीगढ़ के सेक्टर 3 स्थित हरियाणा निवास में शुरू हुई विधायक दल की बैठक के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और लोकसभा सांसद नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री चुना गया. शाम को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.

द टेलीग्राफ के मुताबिक, पांच विधायकों – चार भाजपा के और एक निर्दलीय – ने भी मंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, पूर्व गृह मंत्री और अंबाला कैंट से छह बार के विधायक अनिल विज को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है.

भाजपा के कंवर पाल, मूलचंद शर्मा, जय प्रकाश दलाल और बनवारी लाल और निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला ने मंत्री पद की शपथ ली. ये पांचों निवर्तमान खट्टर कैबिनेट में भी मंत्री थे.

इस घटनाक्रम के पीछे का तात्कालिक कारण जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ भाजपा के साढ़े चार साल के गठबंधन का टूटना प्रतीत होता है.

जजपा, जो इंडियन नेशनल लोकदल के चौटाला परिवार में विभाजन के बाद अस्तित्व में आई थी, ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के खिलाफ लड़ा था, लेकिन बाद में भाजपा के बहुमत से दूर रहने के बाद गठबंधन में सरकार बनाने के लिए राजी हो गई थी.

आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सीट आवंटन में मतभेद को भाजपा-जजपा गठबंधन में दरार का मुख्य कारण माना जा रहा है. पिछले छह महीने से गठबंधन में तनाव की स्थिति बनी हुई थी.

हालांकि, सूत्र बताते हैं कि भाजपा का हरियाणा कैडर भी जजपा के साथ गठबंधन से असंतुष्ट था.

कई लोगों का यह भी मानना है कि जजपा से अलग होने और नई सरकार बनाने का भाजपा का हालिया फैसला आगामी आम चुनावों में सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए किया गया है. इस कदम का मकसद जजपा को अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने और इसे जाट वोटों के लिए कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा करने देकर प्रभुत्वशाली जाट वोटों में विभाजन पैदा करना भी है.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी 10 संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन पार्टी के लिए अपने पिछले चुनाव के प्रदर्शन को दोहराना एक चुनौती बना हुआ है.

ध्यान रहे कि आम चुनाव के तुरंत बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी होंगे.

नेतृत्व में संभावित बदलाव के साथ, भाजपा पिछले साढ़े नौ साल से मुख्यमंत्री रहे खट्टर के खिलाफ बढ़ती अलोकप्रियता को बेअसर करने की भी कोशिश करेगी और उम्मीद है कि गुजरात जैसा कदम उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद करेगा.

मानते हैं कि भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले वहां भी सरकार बदल दी थी.

निर्दलीय विधायकों ने दिया समर्थन

भाजपा के पास 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में वर्तमान में 41 विधायक हैं. उसे सत्ता में बने रहने के लिए 5 और विधायकों के समर्थन की जरूरत है.

सूत्रों ने बताया कि सभी पांच निर्दलीय विधायक पहले ही भाजपा को समर्थन दे चुके हैं. इसके अलावा, सिरसा विधायक और हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा ने भी पार्टी को समर्थन दिया है.

कांडा ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, ‘मुझे लगता है कि गठबंधन (भाजपा-जजपा) लगभग टूट चुका है. जजपा के बिना भी हरियाणा सरकार बनी रहेगी और सभी स्वतंत्र उम्मीदवार भाजपा का समर्थन करना जारी रखेंगे.’

सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई निर्दलियों को नई भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री पद से पुरस्कृत किया जा सकता है.

इस बीच, भाजपा नेता कंवर पाल गुज्जर ने पुष्टि की कि मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है, और राज्यपाल ने इस्तीफे स्वीकार कर लिए हैं. विधायक दल की बैठक के बाद अगला कदम तय किया जाएगा.

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