आसियान के लिए भारत ‘न्यूनतम रणनीतिक प्रासंगिकता वाले साझेदारों’ में शामिल: सर्वे

साउथ ईस्ट एशिया सर्वे-2024 के मुताबिक़, दक्षिण पूर्व एशिया से निकटता के बावजूद भारत आसियान के लिए रणनीतिक प्रासंगिकता के क्रम में 11 साझेदारों में औसतन नौवें स्थान पर है.

20वें आसियान-भारत सम्मलेन की एक प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: Twitter@narendramod)

नई दिल्ली: भारत 11.0 में से 5.04 स्कोर के साथ एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के सदस्य देशों के लिए सबसे कम रणनीतिक प्रासंगिकता वाले तीन साझेदारों में से एक है, जबकि चीन 8.98 के औसत स्कोर के साथ सूची में सबसे ऊपर है. यह निष्कर्ष साउथ ईस्ट एशिया सर्वे-2024 का हिस्सा हैं, जो क्षेत्रीय मुद्दों पर नीति को प्रभावित करने प्रचलित दृष्टिकोण की एक छवि प्रस्तुत करता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वेक्षण आईएसईएएस – युसोफ इशाक इंस्टिट्यूट के आसियान अध्ययन केंद्र द्वारा प्रकाशित किया गया है. सर्वेक्षण में 10 दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के कुल 1,994 उत्तरदाताओं ने भाग लिया. यह 3 जनवरी 2024 से 23 फरवरी 2024 तक सात सप्ताह की अवधि में आयोजित किया गया था.

दक्षिण पूर्व एशिया से निकटता के बावजूद भारत आसियान के लिए रणनीतिक प्रासंगिकता के क्रम में 11 साझेदारों में औसतन नौवें (5.04) स्थान पर है. भारत के पक्ष में म्यांमार (पांचवा स्थान) और सिंगापुर (छठा स्थान) अधिक अनुकूल धारणाएं रखते हैं, जबकि कंबोडिया, लाओस, फिलिपींस और वियतनाम (नौवां स्थान) जैसे देश जो क्रमश: चीन, अमेरिका और रूस के साथ करीबी राजनयिक संबंध रखते हैं, भारत को रणनीतिक रूप से कम महत्वपूर्ण मानते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के महत्व की धारणा पर भू-राजनीतिक गठबंधन और क्षेत्रीय गतिशीलता के प्रभाव को दर्शाता है.

सर्वेक्षण में शामिल केवल 0.6% लोगों ने कहा कि भारत दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे प्रभावशाली आर्थिक शक्ति है. इस सूची में चीन (59.5%) सबसे आगे है, इसके बाद अमेरिका (14.3%), जापान (3.7%) और यूरोपीय संघ (2.8%) का नंबर आता है. यहां तक कि कोरिया (1%) और ब्रिटेन (0.8%) को भी इस क्षेत्र में भारत की तुलना में आर्थिक रूप से अधिक प्रभावशाली देखा गया है.

जब दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव वाले देशों की सूची की बात आती है तो भारत का प्रदर्शन बदतर है, क्योंकि सर्वेक्षण में शामिल केवल 0.4% लोगों ने इसका नाम लिया. चीन फिर से सूची में शीर्ष पर है, जिसे सर्वेक्षण में शामिल 43.9% लोगों ने चुना. इसके बाद अमेरिका (25.8%), जापान (3.7%) और यूरोपीय संघ (3.4%) का नंबर आता है.

जब पूछा गया कि क्या भारत वैश्विक शांत, सुरक्षा, संपन्नता और शासन में योगदान देने के लिए ‘सही काम करेगा’, इस पर अविश्वास का स्तर इस साल उच्च (44.7%) बना रहा. विश्वास के स्तर में भी 1.5% की मामूली गिरावट देखी गई. भारत को लेकर संदेह बढ़े हुए हैं, विशे, रूप से इंडोनेशिया (62.2%), कंबोडिया (57.2%), सिंगापुर (56.4%), मलेशिया (55.5%) और ब्रुनेई (54.6%) में. इस बीच, केवल वियतनाम, थाईलैंड ओर लाओस ऐसे देश हैं जिनका भारत के प्रति विश्वास का स्तर अविश्वास के स्तर से अधिक हो गया है.

भारत पर अविश्वास करने वालों में से 40.6% का मानना है कि भारत के पास वैश्विक नेतृत्व के लिए क्षमता या राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है. यह धारणा वियतनाम (57.1%), थाईलैंड (48.4%), लाओस (46.5%), और कंबोडिया (43.5%) में अधिक स्पष्ट है. इस समूह में एक चौथाई से अधिक (26.4%) को लगता है कि भारत अपने आंतरिक और उपमहाद्वीपीय मामलों से विचलित है और इस प्रकार वैश्विक चिंताओं और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है.

भारत क्षेत्र के 1.1% विश्वास के साथ उन देशों की सूची में सबसे नीचे है जिन्हें वैश्विक मुक्त व्यापार के पैरोकार के रूप में देखा जाता है. जब नियम-आधारित व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय कानून को बनाए रखने की बात आती है तो भारत केवल 1.0% क्षेत्र का विश्वास जीत पाता है.

जब उनसे पूछा गया कि वे किस देश में रहना चाहेंगे तो सर्वेक्षण में शामिल केवल 0.7% लोगों की पसंद के रूप में भारत फिर से सूची में सबसे नीचे रहा.

बता दें कि साउथ ईस्ट एशिया सर्वे-2024 का यह छठा वर्ष है.यह दक्षिण पूर्व एशियाई लोगों के विचारों और धारणाओं को जानने का प्रयास करता है.

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