भारतीय ज़मीन पर चीनी अतिक्रमण को ख़ारिज करने वाला अमित शाह का दावा तथ्यों से कोसों दूर है

बीते दिनों एक चुनावी सभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह में दावा किया कि 'चीन भारत की एक इंच ज़मीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सकता.' हालांकि, तथ्यों की पड़ताल बताती है कि साल 2020 में गलवान घाटी में भारतीय-चीनी सेना के बीच झड़प के बाद से सीमा पर 2020 से पहले की स्थिति बनाए रखने के लिए भारत ने चीन के साथ कम से कम 21 दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता की है.

अमित शाह. बैकग्राउंड में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों की झड़प का वीडियो स्क्रीनग्रैब. (फोटो साभार: एक्स और चाइना सेंट्रल टेलीविजन)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 9 अप्रैल को एक चुनावी रैली में लखीमपुर संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं को संबोधित करते हुए दावा किया कि ‘चीन भारत की एक इंच जमीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सकता. इस तरह का शासन (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी ने दिया है.’

हालांकि, शाह का दावा तथ्यों की जांच (फैक्ट-चेक) में टिक नहीं पाता है.

उनका यह कथन इन ठोस सबूतों कि कि चीन ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया है, के बावजूद उनकी सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से इस बात से इनकार करने के निरंतर प्रयास का विस्तार है.

जून 2020 में चीन द्वारा लद्दाख में जमीन हड़पने और चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत के कम से कम 20 जवानों को खोने और कई के कथित तौर पर बंदी बना लिए जाने की खबर जैसे ही दिल्ली पहुंची, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक में चीन का नाम लिए बगैर जोर देकर कहा कि ‘न तो उन्होंने हमारी सीमा में घुसपैठ की है और न ही किसी पोस्ट पर उन्होंने (चीन) कब्जा किया है. हमारे 20 जवान शहीद हो गए, लेकिन जिन्होंने भारत माता को चुनौती दी, उन्हें सबक सिखाया गया. ‘

उनका कथन था, ‘न कोई घुसा था, न कोई घुसा है.’

10 जून 2020 की बैठक में उन्होंने विपक्षी नेताओं को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘आज हमारे पास वो क्षमता है कि हमारी एक इंच जमीन पर भी कोई नजर नहीं गढ़ा सकता. भारत के सशस्त्र बलों में एक बार में कई क्षेत्रों में मोर्चा लेने की क्षमता है.’

  • जुलाई 2020 में, विपक्ष से किए मोदी के इस दावे कि चीनी न तो हमारे क्षेत्र में घुसे और न ही हमारी जमीन पर अतिक्रमण किया, के कुछ दिनों बाद रणनीतिक मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने सेना के अग्रिम पंक्ति के सूत्रों के हवाले से द वायर को बताया था कि ‘चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र और ‘गोगरा हाइट्स में पीछे हटने से इनकार कर दिया है… दोनों तरफ के लगभग 1,500 सैनिक टकराव की मुद्रा में हैं.’

द वायर से शुक्ला ने कहा था कि चीनी भारतीय दावे वाले क्षेत्र में 2-4 किलोमीटर तक घुसपैठ कर चुके हैं और भारतीय क्षेत्र को खाली करने से इनकार कर रहे हैं.

मोदी सरकार ने तब पूर्व सैन्यकर्मी के दावों से इनकार नहीं किया था.

  • शुक्ला के कथन को इस बात से बल मिलता है कि तब से भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 2020 से पहले की स्थिति पर लौटने के लिए चीन के साथ कम से कम 21 दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता की है, लेकिन सफलता नहीं मिली है.

फरवरी 2024 में आखिरी दौर की वार्ता के बाद द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया था, ‘भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस (जनवरी 2023 में) के दौरान कहा था कि वार्ता का उद्देश्य वार्ता का उद्देश्य 2020 के मध्य में मौजूद ‘यथास्थिति’ पर लौटना था, जो गलवान टकराव से पहले के स्थिति की ओर इशारा करता था.’

यदि चीन ने भारत की किसी भी जमीन पर अतिक्रमण नहीं किया है तो मोदी सरकार चीन के साथ क्या चर्चा कर रही है? 21 चरण की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है.

  • अगस्त 2020 में, द हिंदू ने मोदी सरकार को मिले खुफिया इनपुट का हवाला देते हुए बताया था कि झड़प के बाद लद्दाख का लगभग 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र चीनी नियंत्रण में आ गया.

एक ‘वरिष्ठ सरकारी अधिकारी’ ने अखबार से देपसांग के मैदानी इलाके में गश्त बिंदु 10-13 से 900 वर्ग किलोमीटर पर चीनी नियंत्रण की बात कही थी.

रिपोर्ट में कहा गया था, ‘चीन अप्रैल-मई (2020) से एलएसी पर सैनिकों को इकट्ठा कर रहा है और अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है.’

अधिकारी ने कहा था, ‘गलवान घाटी में लगभग 20 वर्ग किमी और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में 12 वर्ग किमी में चीनी कब्जा बताया जाता है… पैंगोंग त्सो में चीनी नियंत्रण वाला क्षेत्र 65 वर्ग किमी है, जबकि चुशुल में यह 20 वर्ग किमी है.’

दूसरे शब्दों में कहें तो अधिकारी ने जुलाई में किए गए कर्नल शुक्ला के दावों को सही बताया था.

मोदी सरकार ने भी इसकी सत्यता पर सवाल नहीं उठाया है.

  • इसके अतिरिक्त, जनवरी 2023 में, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) द्वारा आयोजित वार्षिक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सम्मेलन में लेह एसपी द्वारा प्रस्तुत एक शोध पत्र में यह भी उजागर किया गया था कि भारतीय सुरक्षा बलों (आईएसएफ) द्वारा सीमित या कोई गश्त न करने का परिणाम यह हुआ कि भारत को पूर्वी लद्दाख में 65 गश्ती बिंदुओं (पीपी) में से 26 तक पहुंच खोनी पड़ी.

द हिंदू ने कहा था कि शोध पत्र में बताया गया है कि ‘वर्तमान में काराकोरम दर्रे से चुमुर तक 65 पीपी हैं, जहां आईएसएफ (भारतीय सुरक्षा बलों) द्वारा नियमित रूप से गश्त की जानी है. 65 पीपी में से, आईएसएफ द्वारा सीमित या कोई गश्त न करने के कारण 26 पीपी (यानी पीपी नंबर 5-17, 24-32, 37, 51,52,62) में हमने अपनी उपस्थिति खो दी है. बाद में, चीन ने हमें इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि चूंकि ऐसे क्षेत्रों में लंबे समय से आईएसएफ या नागरिकों की उपस्थिति नहीं देखी गई है, चीनी इन क्षेत्रों में मौजूद थे.’

अखबार ने कहा, इस तरह के दृष्टिकोण के कारण ‘चीन ने धीरे-धीरे भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है.’ अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘इससे आईएसएफ के नियंत्रण वाली सीमा भारत की तरफ खिसक जाती है और ऐसे सभी इलाकों में एक बफर जोन बन जाता है, जिससे अंततः भारत को इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खोना पड़ता है. इंच-दर-इंच जमीन हड़पने की पीएलए की इस रणनीति को ‘सलामी स्लाइसिंग (Salami Slicing)’ के नाम से जाना जाता है’

वैसे अमित शाह भी पुलिस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे. यह पेपर वेबसाइट से हटा लिया गया था.

  • जनवरी में इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी थी कि चीनी सैनिकों ने एलएसी के पास भारतीय चरवाहों को अपने मवेशी चराने से रोक दिया था.

चुशुल के काउंसलर स्टैनज़िन ने अखबार से इसकी पुष्टि की थी. द हिंदू ने भी यह बताया था कि भारतीय चरवाहे अपनी चरागाह भूमि का उपयोग करने की अनुमति नहीं देने पर चीनी सैनिकों से भिड़ गए और उन पर पत्थर फेंके.

मोदी सरकार ने उन ख़बरों पर सवाल नहीं उठाया था.

2020 में सीमा पर हुआ टकराव पिछले कई दशकों में सीमा पर भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच सबसे गंभीर कहा जा सकता है.

17 जून की एक रिपोर्ट में टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे ’53 वर्षों में भारत और चीन के बीच सबसे खराब टकराव’ कहा था. दूसरे शब्दों में, रिपोर्ट 1962 में नेहरू युग के दौरान चीनी आक्रमण का जिक्र कर रही थी.

वहीं, फरवरी 2022 में संसद में एक लिखित जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने एक साथी सांसद द्वारा 2020 में भारत से चीन द्वारा हड़पी गई ज़मीन के आकार के बारे में पूछे गए सीधे सवाल को टाल दिया और इसके बजाय जवाब दिया कि चीन 1962 से 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा किए हुए है.

इस 9 अप्रैल को गुवाहाटी में मतदाताओं को संबोधित करते हुए शाह ने 1960 के दशक के नेहरूवादी भारत का जिक्र किया – जो मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के लिए ऐसा मुद्दा है, जिसे वह समय-समय पर अपनी सुविधा के अनुसार उठाती रही है. शाह ने दावा किया था, ‘1962 के चीनी आक्रमण के दौरान नेहरू ने असम को छोड़ दिया. लेकिन मोदी सरकार में चीन भारत की एक इंच जमीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सका.’

चुनाव के इस माहौल में शाह का उद्देश्य असम के मतदाताओं में इस पुरानी भावना को जगाना है कि नेहरू ने 1962 के आक्रमण के दौरान लगभग उन्हें छोड़ ही दिया था.

उस भावना की जड़ जनसंघ और समाजवादियों में खोजी जा सकती है जो नेहरू की चीन नीति के विरोधी थे. इन नेहरू-विरोधी ताकतों ने चतुराई से नेहरू के ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) के माध्यम से दिए गए उस लंबे भाषण से एक पंक्ति निकाल ली थी, जो नेहरू ने चीनियों द्वारा (आज के आरुणाचल प्रदेश में) घुसपैठ करने से कुछ घंटे पहले दिया था. वह पंक्ति थी, ‘मेरा दिल असम के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है…’

उस पंक्ति को तब से भाजपा के वैचारिक स्रोत आरएसएस और क्षेत्र की अन्य कांग्रेस विरोधी ताकतों द्वारा प्रसारित किया जाता है, ताकि यह बात फैला सकें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने असम को ‘अलविदा’ कह दिया था और राज्य को चीनियों के लिए छोड़ दिया था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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