नई दिल्ली: त्रिपुरा के लगभग 700 स्नातक शिक्षकों ने 2017 और 2020 में राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए उनके बर्खास्तगी आदेशों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, त्रिपुरा के शिक्षकों ने यह कहते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया कि उनकी बर्खास्तगी के आदेश गैर कानूनी और असंवैधानिक है.
याचिका में कहा गया है कि 2014 में त्रिपुरा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा जारी एक निश्चित रोजगार नीति, 2003 को ‘कानून की दृष्टि से खराब’ घोषित किया था और इसके तहत कथित तौर पर की गई 10,000 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था, जिसके तहत याचिकाकर्ताओं को भी बर्खास्त कर दिया गया.
शिक्षकों ने उनकी सेवाओं के लिए उक्त नीति की प्रासंगिता पर सवाल उठाया है और आग्रह किया है कि उनकी भर्ती उस समय लागू भर्ती नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए की गई थी, इसलिए यह 2014 के उच्च न्यायालय के फैसले के दायरे से बाहर है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें कभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के बारे में सूचित नहीं किया गया और उक्त निर्णय उनकी पीठ पीछे दिया गया है. उन्होंने याचिका में कहा कि त्रिपुरा सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर घोटाला किया जा रहा है.
याचिका में दावा किया गया है कि ऐसे सभी बर्खास्त शिक्षकों के रोजगार और वेतन कोड को अभी भी सक्रिय रखे गए हैं और इसलिए, ऐसे शिक्षकों का मासिक पारिश्रमिक राज्य के खजाने में डाला जा रहा है और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों/नौकरशाहों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा है कि प्रधान महालेखाकार (अतिरिक्त), त्रिपुरा कथित धोखाधड़ी की जांच कर रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं ने राज्य में स्कूली शिक्षा प्रणाली की जर्जर स्थिति पर भी प्रकाश डाला है, जिसमें उनका कहना है कि शिक्षकों की भारी कमी का खामियाजा मासूम छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.
याचिका वकील अमृत लाल साहा, टीके नायक और आदित्य मिश्रा द्वारा तैयार की गई थी.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, टीके नायक ने कहा कि 2014 में त्रिपुरा उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका खारिज करने के बाद त्रिपुरा के लगभग 700 स्नातक शिक्षकों ने शीर्ष अदालत का रुख किया.
नायक ने कहा, ‘उनके सामने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं है. उन्हें अपनी नौकरी वापस पाने और इस तरह खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की जरूरत है.’
याचिका में कहा गया है कि, ‘इन शिक्षकों के परिवारों की गंभीर स्थिति है जो रोजमर्रा के खर्चों और अन्य कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. बर्खास्त किए गए 160 से अधिक शिक्षकों की मृत्यु हो गई है, उनमें से कई ने बुनियादी जीविका की सुविधाओं के अभाव के कारण आत्महत्या कर ली.’
शीर्ष अदालत के समक्ष 700 शिक्षकों में से मुख्य याचिकाकर्ता सुभाष सिन्हा और मासेद मिया हैं.