इंदौर: सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कॉलेज में पढ़ाई गई कथित विवादित किताब का केस ‘बेतुका’ बताकर रद्द किया

दिसंबर 2022 में इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में पढ़ाई जा रही एक किताब को लेकर एबीवीपी ने आरोप लगाया था कि इसमें हिंदू समुदाय और आरएसएस के ख़िलाफ़ बेहद आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं, जिनसे धार्मिक कट्टरता को बल मिलता है. इसे लेकर किताब के लेखक, प्रकाशक के अलावा कॉलेज प्रिंसिपल और एक प्रोफेसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई थी.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 मई) को इंदौर शहर स्थित शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय (Government New Law College) की लाइब्रेरी में मिली कथित हिंदूफोबिक और राष्ट्र-विरोधी किताब पर दर्ज मध्य प्रदेश पुलिस की एफआईआर को रद्द कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए मध्य प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई, साथ ही हाईकोर्ट की खिंचाई भी की.

जस्टिस गवई ने कहा कि फरहत खान की पुस्तक ‘कलेक्टिव वॉयलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ पर एफआईआर एक ‘बेतुकी बात’ है, क्योंकि ये किताब सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में भी मिल सकती हैं.

वहीं, जस्टिस संदीप मेहता ने कहा, ‘एफआईआर को देखने से पता चलता है कि एफआईआर एक बेतुकेपन के अलावा और कुछ नहीं है… एफआईआर किसी भी अपराध की सामग्री का खुलासा नहीं करती है.’

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह एक उपयुक्त मामला है जहां अदालत अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारक्षेत्र का प्रयोग कर कानून के दुरुपयोग और अन्याय को रोकने के लिए इस कार्यवाही बंद कर देगी.’

गौरतलब है कि दिसंबर 2022 में शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में एक विवादित किताब पढ़ाए जाने को लेकर पुलिस ने किताब की लेखक डॉ. फ़रहत ख़ान, प्रकाशक अमर लॉ पब्लिकेशन, प्रिंसिपल डॉ. इनामुर्रहमान और संस्थान के प्रोफेसर मिर्ज़ा मोजिज बेग के ख़िलाफ़ दर्ज की थी. सुप्रीम कोर्ट ने तब रहमान की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.

हालांकि इनामुर्रहमान ने मध्यप्रदेश की इंदौर खण्डपीठ से एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया था.

एफआईआर महाविद्यालय के एक विद्यार्थी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना), 295ए (किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जान-बूझकर किए गए विद्वेषपूर्ण कार्य) और अन्य संबद्ध प्रावधानों के तहत दर्ज की गई थी.

तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का आरोप था कि कानून के विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही इस किताब में हिंदू समुदाय और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं, जिनसे धार्मिक कट्टरता को बल मिलता है.