बिहार: पटना हाईकोर्ट ने आरक्षण कोटा बढ़ाने वाले संशोधित क़ानून को ख़ारिज किया

बिहार सरकार द्वारा पिछले साल जाति जनगणना के बाद संशोधित आरक्षण अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण सीमा 50%से बढ़ाकर 65% की गई थी. अदालत ने इसे संविधान में दिए समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया है.

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नई दिल्ली: पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार (20 जून) को बिहार सरकार द्वारा पिछले साल जाति जनगणना कराने के बाद बढ़ाए गए आरक्षण प्रतिशत को रद्द कर दिया है.

बीते साल नवंबर में विधानसभा में पारित बिहार आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रावधान किया गया था.

ज्ञात हो कि बिहार जाति सर्वेक्षण की पूरी रिपोर्ट पेश होने के कुछ घंटों बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस संशोधन का प्रस्ताव रखा था. सर्वे में सामने आया था कि बिहार के 13.1 करोड़ लोगों में से 36 फीसदी लोग ईबीसी से हैं और 27.1 फीसदी लोग ओबीसी से हैं. 9.7 प्रतिशत अनुसूचित जाति और जनजाति जनसंख्या का 1.7 प्रतिशत है. सामान्य वर्ग की आबादी 15.5 प्रतिशत है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि संशोधन भारतीय संविधान के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और इसलिए उन्हें रद्द कर दिया गया.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील रितिका रानी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा ,’हमने कहा था कि आरक्षण कानून में संशोधन संविधान का उल्लंघन है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब अंतिम आदेश आया है और हमारी याचिकाओं को स्वीकार कर लिया गया है.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के प्रचार में विपक्षी दलों ने सत्ता में आने पर देश भर में जाति जनगणना कराने और जनगणना के नतीजों के आधार पर आरक्षण नीतियों में बदलाव का वादा किया था. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी जनगणना की जरूरत की खिलाफत की है.