भारत में निर्मित 50 जीवनरक्षक दवाओं की गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं मिली: रिपोर्ट

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने जिन दवाओं को निम्न क्वालिटी का पाया है, उनमें पैरासिटामोल 500 एमजी, हाईबीपी की दवा टेल्मिसर्टन, कफटिन कफ सीरप, दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक, मल्टी-विटामिन और कैल्शियम की गोलियां शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Unsplash)

नई दिल्ली: भारत में बनने वाली दवाएं पिछले कुछ सालों से अपनी गुणवत्ता को लेकर सवालों के घेरे में हैं.

इस बीच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने पाया है कि भारत में उत्पादित 50 जीवनरक्षक दवाओं, जिसमें पैरासिटामोल 500 मिलीग्राम, कुछ विटामिन और कैल्शियम की गोलियों के साथ ही कुछ बेहद सामान्य दवाएं शामिल हैं, की क्वालिटी सही नहीं है.

लाइवमिंट के अनुसार, जिन दवाओं को निम्न क्वालिटी का पाया गया है, उसमें पैरासिटामोल 500 मिलीग्राम के अलावा टेल्मिसर्टन एंटी-हाइपरटेंशन दवा, कफटिन कफ सीरप, सीज़र अटैक को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली क्लोनाज़ेपम गोलियां, दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक, मल्टी-विटामिन और कैल्शियम की गोलियों के नाम शामिल हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 50 दवाओं में से 22 का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में होता है. राज्य दवा प्राधिकरण ने कथित तौर पर संबंधित दवा कंपनियों को नोटिस भेजा है और उनसे संबंधित दवा के पूरे बैच को बाजार से वापस लेने को कहा गया है.

‘देश में उत्पादित हर तीसरी दवा में से एक हिमाचल में निर्मित होती है’

राज्य औषधि नियंत्रक मनीष कपूर ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्हें फेल हुई दवाओं के सैंपल पर सीडीएससीओ से अलर्ट मिला है. उनके अनुसार, समय-समय पर उनके औषधि निरीक्षक दवाओं के नमूने लेते रहते हैं और दोषी दवा कंपनियों के खिलाफ कॉस्मेटिक और ड्रग अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई की जाती है.

मनीष कपूर ने आगे कहा, ‘देश में उत्पादित हर तीसरी दवा में से एक हिमाचल में निर्मित होती है. ऐसे में दवाओं की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जा सकता.’

मालूम हो कि सीडीएससीओ ने वाघोडिया (गुजरात), सोलन (हिमाचल प्रदेश), जयपुर (राजस्थान), हरिद्वार (उत्तराखंड), अंबाला, इंदौर और हैदराबाद समेत अन्य स्थानों के बाज़ार से इन दवाओं के परीक्षण के लिए सैंपल लिए थे.

लाइवमिंट की रिपोर्ट बतात है कि पैरासिटामोल 500 एमजी की जो गोलियां ख़राब क्वालिटी की पाई गईं, उनका निर्माण मध्य प्रदेश के उज्जैन की एस्कॉन हेल्थकेयर द्वारा किया गया था.

कई दवाएं बिना लेबल के पाई गईं, तो कुछ नकली भी मिली

वहीं, हिंदुस्तान टाइम के अनुसार, हिमाचल में निर्मित दवाओं के फेल हुए नमूनों में गले में संक्रमण, उच्च रक्तचाप (बीपी), कैंसर, दर्द, बैक्टेरियल इन्फेक्शन, अल्सर, खांसी, एलर्जी, वायरस संक्रमण, एसिडिटी, दर्द निवारक, खुजली और बुखार से संबंधित दवाएं शामिल हैं. इनमें से कई दवाएं बिना लेबल के पाई गईं और उनमें से कुछ नकली भी थीं.

गौरतलब है कि साल 2022 में हरियाणा की एक कंपनी द्वारा बनाई गईं चार दवाओं के कारण गांबिया में 66 बच्चों की मौत हो गई थी. तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह जानकारी देते हुए घोषणा की थी कि मेडन फार्मास्युटिकल द्वारा बनाए गए कफ सीरप में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल थे, जो मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं. डब्ल्यूएचओ ने कंपनी की उन चारों दवाओं के खिलाफ अलर्ट जारी किया था.

इसके बाद पिछले साल मई 2023 में भी एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि गांबिया  में 70 बच्चों की मौत भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा बनाए गए एक उत्पाद, जिसमें विषाक्त पदार्थ (टॉक्सिन) थे, के चलते गुर्दे को पहुंचे गंभीर नुकसान के कारण हुई थी.

हालांकि भारत सरकार उक्त दवाओं में टॉक्सिन की मौजूदगी की बात से लगातार इनकार करती रही थी.