नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया है, जिसमें नगालैंड सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की गई है. याचिका में 30 सैन्यकर्मियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से केंद्र के इनकार को चुनौती दी गई है, जिनके असफल ऑपरेशन के कारण दिसंबर 2021 में 13 नागरिकों की मौत हो गई थी.
रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने नगालैंड सरकार के बयान दर्ज किए और केंद्रीय गृह और रक्षा मंत्रालयों को भी नोटिस जारी किए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नागालैंड सरकार ने अदालत को सूचित किया कि केंद्र ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा), 1958 के तहत उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, भले ही आरोपी सैन्य अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हों.
ज्ञात हो कि 4-5 दिसंबर 2021 को नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. ऐसा दावा किया गया था कि यह घटना नागिरकों की गलत पहचान किए जाने का नतीजा थी.
गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब 4 दिसंबर (2021) की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे. सुरक्षा बलों ने उन्हें उग्रवादी समझ लिया.
सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.
इस घटना से व्यापक आक्रोश फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप 5 दिसंबर 2021 को मोन जिले में हिंसक झड़पें हुईं, जिनके चलते दो और नागरिकों की मौत हो गई. 5 दिसंबर दोपहर को 1,000 लोगों के एक उग्र समूह ने मोन शहर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के पीछे स्थित असम राइफल्स कैंप के एक हिस्से में आग लगा दी और पास में स्थित कोन्याक यूनियन कार्यालय में भी तोड़फोड़ की. उस घटना में भी सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कई नागरिक घायल हुए थे.
स्थानीय पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज की, जिसके बाद नगालैंड सरकार ने हिंसा की जांच के लिए एडीजीपी (कानून और व्यवस्था) संदीप तमगाड़े की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया.
नगालैंड पुलिस ने मामले में मेजर रैंक के एक अधिकारी सहित ‘21 पैरा स्पेशल फोर्स’ के 30 कर्मचारियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था. हालांकि, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2023 में आरोपी सैन्यकर्मियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया.
जुलाई 2022 में शीर्ष अदालत ने भी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी थी, जब इसमें शामिल सैन्यकर्मियों की पत्नियों ने अदालत का रुख किया और उल्लेख किया कि नगालैंड पुलिस केंद्र सरकार से अपेक्षित मंजूरी प्राप्त किए बिना उनके पतियों पर मुकदमा चला रही है.