नई दिल्ली: मणिपुर के हिंसा प्रभावित चूड़ाचांदपुर जिले में केंद्र सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला है, जहां बीते दिनों केंद्र सरकार ने इस संवेदनशील जिले में असम राइफल्स की जगह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को तैनात करने का फैसला किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने दिल्ली में सीआरपीएफ के स्थापना दिवस पर कहा था कि मणिपुर में अर्धसैनिक बलों की भागीदारी बढ़ रही है. भल्ला ने कहा, ‘राज्य में हिंसा को रोकने और विस्थापितों के लिए आश्रय गृहों (राहत शिविरों) की सुरक्षा सुनिश्चित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है.’
पिछले साल राज्य में शुरू हुई हिंसा के बाद से वर्तमान में करीब 60,000 लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं, जिन्होंने जातीय संघर्ष में अपने घर खोए हैं.
स्थानीय खबरों के अनुसार, कुकी-ज़ो समुदाय के लोग 31 जुलाई की देर रात जिले के गोथोल, खौसाबुंग और कांगवई इलाकों में बड़ी संख्या में एकत्र हुए और असम राइफल्स को हटाने के कदम के विरोध में मोमबत्ती जलाकर विरोध जताया.
एक स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार, ‘प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के दौरान ‘एआर हमारी जान बचाओ और रक्षा करो’, ‘एआर वापस मत जाओ’, ‘मेईतेई उग्रवादी समस्या हैं, एआर नहीं’ आदि लिखे हुए तख्तियां पकड़े हुए थे.’
नरेंद्र मोदी सरकार का कथित निर्णय मेईतेई समुदाय की मांग के अनुरूप है, जिनमें से अधिकांश राज्य के घाटी क्षेत्रों में रहते हैं और सीमावर्ती राज्य में जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से वहीं रह रहे हैं.
असम राइफल्स पर कुकी समुदाय, जिनमें से अधिकांश चूड़ाचांदपुर जिले में रहते हैं, के प्रति पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया गया है. ऐसा कहा जाता है क्योंकि असम राइफल्स, जो परंपरागत रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात है, वहां के निवासियों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है.
खुद राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह उन कई भारतीय जनता पार्टी नेताओं में शामिल हैं, जो मेईतेई समुदाय से आते हैं और जिन्होंने असम राइफल्स पर कुकी समुदाय के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.
पिछले साल अगस्त में उनकी मांग पर ध्यान देते हुए राज्य सरकार ने कुकी बहुल चूड़ाचांदपुर जिले के कई चेक-पोस्टों, जहां जिले की सीमा मेईतेई बहुल बिष्णुपुर जिले से मिलती है, पर असम राइफल्स की जगह सीआरपीएफ और राज्य पुलिस को तैनात किया था. इस इलाके से जातीय हिंसा के कई मामले सामने आए थे.
बीते 30 जुलाई को जातीय संघर्ष में सबसे आगे रहने वाले मेईतेई महिलाओं के समूह, मीरा पाइबीज़ ने इंफाल में एक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें राज्य के सुरक्षा बलों से असम राइफल्स को हटाने की मांग की गई और सेना इकाई पर राज्य में संघर्ष को लंबा खींचने का आरोप लगाया.
असम राइफल्स भारतीय सेना का एक हिस्सा है, जिसने मेईतेई समुदाय के इस आरोप का कई बार खंडन किया है.
पिछले साल अगस्त में असम राइफल्स ने मणिपुर हिंसा के दौरान बल के खिलाफ ‘अपमानजनक आरोप’ लगाने और उसे राज्य से हटाने की मांग करने के लिए रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के नेता महेश्वर थौनाओजम को कानूनी नोटिस जारी किया था.
दूसरी ओर, कुकी समुदाय ने मेईतेई मुख्यमंत्री सिंह के नियंत्रण में राज्य पुलिस पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने और राज्य की राजधानी इंफाल सहित घाटी के इलाकों में कुकियों पर हमले के दौरान दूसरे पक्ष का साथ देने आरोप लगाया है.
इसमें दो कुकी महिलाओं की गवाही भी शामिल है कि संघर्ष के दौरान राज्य पुलिस के जवान उन्हें तब तक बचाने के लिए नहीं आए, जब तक कि उन्हें मेईतेई भीड़ ने घेर नहीं लिया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया नहीं गया. आरोप है कि 3 मई, 2023 को जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से मेईतेई भीड़ द्वारा कथित तौर पर घाटी के जिलों में विभिन्न राज्य पुलिस स्टेशनों से सैकड़ों हथियार और गोला-बारूद लूटे गए, ताकि कुकियों पर हमला किया जा सके.
राज्य के सीमांत क्षेत्रों, जिसमें चूड़ाचांदपुर जिला भी शामिल है, में सीआरपीएफ को लाने के केंद्र सरकार के ताजा निर्णय को कुकी-जो समुदाय द्वारा गहरी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, क्योंकि असम राइफल्स के विपरीत, जो भारत के पूर्वोत्तर की सुरक्षा में विशेषज्ञता रखती है, सीआरपीएफ एक अर्धसैनिक इकाई है, जिसकी ऐसी कोई विशेषज्ञता नहीं है और इसलिए, जातीय दृष्टि से संवेदनशील राज्य के सुरक्षा मुद्दों को संभालने के लिए वह मुख्यमंत्री की कमान के तहत राज्य बल पर निर्भर होगी.
इस निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुकी छात्र संगठन (केएसओ) ने एक प्रेस बयान में इसे ‘असामयिक’ बताया और कहा कि यह ‘महंगा’ साबित हो सकता है.
केएसओ ने कहा, ‘असम राइफल्स ने वर्षों के प्रयास और समर्पण के बाद पहाड़ी लोगों के दिल को जीता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके साथ आपसी सम्मान और शांतिपूर्ण माहौल बने हुए है. असम राइफल्स इकाइयों की जगह सीआरपीएफ को लाने का निर्णय बेतुका है और स्थानीय आबादी की इच्छा के विरुद्ध है… सरकार को इस निर्णय पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार करने और संबंधित स्थानीय लोगों और जिला नागरिक समाज निकायों की राय लेने की जरूरत है.’
जनजातीय एकता समिति (सीओटीयू) ने इस फैसले को क्षेत्र में कड़ी मेहनत से अर्जित शांति के लिए हानिकारक करार दिया और केंद्र सरकार से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया.
एक बयान में हमार महिला एसोसिएशन, हमार महिला संघ (एचडब्ल्यूयू) और कुकी महिला संघ सहित जिले की कई महिला निकायों ने भी इस फैसले का विरोध किया और मोदी सरकार से चूड़ाचांदपुर में शांति और स्थिरता के हित में इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया.