नई दिल्ली: मणिपुर की पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके ने रविवार को कहा कि हिंसा प्रभावित राज्य के लोग इस बात से दुखी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक वहां नहीं आए हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स से खास बातचीत में उइके ने कहा, ‘उस समय जिस तरह के हालात थे, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने शायद कोई ऐसा फैसला ले लिया हो. मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है. मणिपुर के लोग प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करते हैं. वहां किए गए विकास कार्यों की वजह से लोग उनका सम्मान करते हैं. वे थोड़े दुखी हैं और कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को मणिपुर का दौरा करना चाहिए.’
जब उनसे पूछा गया कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर के लोगों को निराश किया है, इस पर अनुसुइया उइके ने कहा कि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता. मुझे लगता है कि उस समय प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस गए थे. भारत लौटने के बाद उन्होंने कैबिनेट मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा भी की थी.’
उन्होंने कहा, ‘केंद्र मणिपुर में स्थिति पर लगातार नज़र रख रहा है. गृह मंत्री स्थिति पर नियंत्रण बनाए हुए हैं, जो लगातार बदल रही है. स्थिति धीरे-धीरे शांतिपूर्ण हो रही है. प्रधानमंत्री ने भी मणिपुर में हो रही घटनाओं पर चिंता जताई है.’
पूर्व राज्यपाल ने कहा, ‘मणिपुर में स्थिति पर काफ़ी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है. मैंने राहत शिविरों में दोनों समुदायों के कई लोगों से मुलाक़ात की है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र ने एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार को अप्रासंगिक बना दिया है?
उइके ने कहा, ‘केंद्र और राज्य के बीच समन्वय है. मैंने भी मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और अन्य शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठकें की हैं. हमने भविष्य की घटनाओं, राहत शिविरों में रह रहे लोगों की कठिनाइयों पर चर्चा की. हमने हिंसा से प्रभावित लोगों के लिए घर भी बनाए और रहने की जगह भी मुहैया कराई.’
उन्होंने कहा कि केंद्र ने बचे हुए लोगों को 10 लाख रुपये, 7 लाख रुपये और 5 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया है.
इस सवाल पर कि क्या केंद्र मणिपुर के मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है, पूर्व राज्यपाल ने कहा, ‘दो समुदायों के बीच टकराव का मुद्दा है. यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने मुझसे मुलाकात की. मैंने उनसे कहा कि हिंसा राजनीतिक नहीं है. मैंने उनसे समुदाय के सदस्यों को शांति सुनिश्चित करने के लिए मनाने का आग्रह किया.’
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने की मांग पर उइके ने कहा कि सीएम ने कुछ ऐसे फैसले नहीं लिए जो हिंसा प्रभावित राज्य में नाटकीय रूप से स्थिति बदल सकते थे.
ज्ञात हो कि राज्य में जिस समय हिंसा शुरू हुई थी तब उइके राज्यपाल का पद संभाल रही थीं. बाद में इस साल जुलाई में असम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने मणिपुर का अतिरिक्त प्रभार संभाला है.
मालूम हो कि 3 मई, 2023 को कुकी और मेईतेई जातीय समुदायों के बीच भड़की हिंसा में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. सीमावर्ती राज्य में कम से कम 60,000 लोग तब से विस्थापित हो चुके हैं, उनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी राहत शिविरों में रह रहा है. इसके बाद से कई लोग अपने इलाके छोड़कर मिजोरम, असम और मेघालय चले गए हैं.
बता दें कि 3 मई 2023 से मणिपुर में शुरू हुए जातीय संघर्ष के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल मई तक देश के अन्य राज्यों के ‘162’ आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दौरे किए थे. 14 विदेश दौरे भी किए थे, लेकिन मणिपुर नहीं गए.
मणिपुर में पीएम की गैर-मौजूदगी पर विपक्ष हमेशा से ही सवाल उठाता रहा है. जब मणिपुर हिंसा की चपेट में था तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राज्य का दौरा किया था. बाद में उन्होंने अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ की शुरुआत भी मणिपुर से ही की थी.
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बीते 15 अगस्त को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर का दौरा करने का आग्रह किया था.
इस वर्ष जुलाई में मणिपुर के सांसद अल्फ्रेड कान-नगाम आर्थर ने संसद में अपने भाषण के दौरान मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि मणिपुर में हिंसा और गृहयुद्ध जैसी स्थिति के प्रति भारतीय राज्य मूकदर्शक बना हुआ है. सांसद 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान बोल रहे थे. उन्होंने कहा था, ‘फिर भी हमारे प्रधानमंत्री मौन हैं, एक शब्द भी नहीं बोलते. राष्ट्रपति के अभिभाषण में इसका ज़िक्र तक नहीं है. मैं कहता हूं कि यह चुप्पी सामान्य नहीं है.’
उन्होंने मोदी सरकार की चुप्पी की तुलना औपनिवेशिक युग से करते हुए सदन से पूछा था, ‘क्या इसका मतलब यह है कि पूर्वोत्तर और विशेष रूप से मणिपुर के लोगों का कोई महत्व नहीं है?’
मणिपुर से अन्य कांग्रेस सांसद अंगोमचा बिमोल अकोईजाम ने भी सत्तारूढ़ भाजपा और मोदी पर राज्य में जारी हिंसा के कारण विस्थापित हुए 60,000 लोगों की ‘पीड़ा और गुस्से’ को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया, जिसके कारण उन्हें दयनीय परिस्थितियों में राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.