नई दिल्ली: मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा की जांच कर रहे तीन सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग की समय सीमा गृह मंत्रालय ने शुक्रवार (13 सितंबर) को एक अधिसूचना जारी कर छह महीने बढ़ा दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने 15 महीने पहले गठित इस पैनल को अब 20 नवंबर से पहले अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है.
मालूम हो कि इससे पहले आयोग को अपनी पूर्ण बैठक की पहली तारीख 20 नवंबर, 2023 से छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया था.
मंत्रालय ने पिछले साल 4 जून को गौहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में आईएएस हिमांशु शेखर (सेवानिवृत्त) और आईपीएस आलोक प्रभाकर (सेवानिवृत्त) की तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था.
इस संबंध में शुक्रवार को जारी एक गजट अधिसूचना में गृह मंत्रालय ने कहा कि आयोग अपनी रिपोर्ट यथाशीघ्र, लेकिन 20 नवंबर, 2024 से पहले केंद्र सरकार को सौंप देगा.
इससे पहले, गृह मंत्रालय ने कहा था कि जांच आयोग मणिपुर में 3 मई, 2023 को शुरू हुई हिंसा और उसके बाद भी जारी रही तमाम घटनाओं के श्रृंखला की जांच करेगा, जिसमें विभिन्न समुदायों को निशाना बनाने वाली हिंसा, दंगें के कारण शामिल हैं. आयोग यह भी जांच कर रहा है कि क्या राज्य अधिकारियों की ओर से कोई चूक या कर्तव्य में लापरवाही हुई थी.
गौरतलब है कि हाल ही में मणिपुर में बढ़ती हिंसा के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अन्य राज्यों में राजनीतिक रैलियां कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना की थी और इसे उनके द्वारा अपने संवैधानिक कर्तव्यों की उपेक्षा करना बताया था
खरगे के बयान हाल ही में हुई हिंसा के बाद आए हैं, जिसमें जिरीबाम जिले में कम से कम पांच लोग मारे गए हैं. बिष्णुपुर जिले में कथित रॉकेट हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिसके बाद प्रतिद्वंद्वी समुदायों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में खरगे ने मणिपुर की पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके की टिप्पणियों को दोहराया था, जिन्होंने कहा था कि हिंसा प्रभावित राज्य के लोग इस बात से दुखी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक वहां नहीं आए हैं.
मालूम हो कि 3 मई, 2023 को कुकी और मेईतेई जातीय समुदायों के बीच भड़की हिंसा में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. सीमावर्ती राज्य में कम से कम 60,000 लोग तब से विस्थापित हो चुके हैं, उनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी राहत शिविरों में रह रहा है. इसके बाद से कई लोग अपने-अपने क्षेत्र छोड़कर मिजोरम, असम और मेघालय चले गए हैं.