पैरासिटामोल, पैन डी समेत 50 से अधिक दवाइयां गुणवत्ता परीक्षण में फेल हुईं

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने अपनी अगस्त 2024 की रिपोर्ट में बताया है कि इसके क्वालिटी टेस्ट में 53 दवाइयां तय मानकों के अनुरूप नहीं पाई गईं. इनमें पैरासिटामोल, विटामिन डी, कैल्शियम सप्लीमेंट समेत मधुमेह और हाई ब्लड प्रेशर के लिए ज़रूरी दवाइयां शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: बीते कुछ समय से भारत में बनने वाली दवाएं अपनी गुणवत्ता को लेकर लगातार सवालों के घेरे में रही हैं. इस बीच, सामने आया है कि पैरासिटामोल, पैन डी और कैल्शियम सप्लीमेंट सहित 53 दवाएं केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के गुणवत्ता परीक्षण में फेल पाई गई हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नियामक ने अपनी हालिया मासिक रिपोर्ट में इन दवाओं को मानक गुणवत्ता वाला नहीं पाया है, जिससे अब इनके इस्तेमाल संबंधित सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं.

अगस्त 2024 की रिपोर्ट में सीडीएससीओ ने पैरासिटामोल, विटामिन डी, कैल्शियम सप्लीमेंट समेत मधुमेह और हाई ब्लड प्रेशर के लिए जरूरी कई तरह की दवाईयोंं को तय मानकों के अनुरूप नहीं बताया है. संस्था ने इन दवाइयों को लेकर अलर्ट जारी किया है.

गुणवत्ता जांच में विफल रहने वाली दवाओं में विटामिन सी और डी3 टैबलेट, शेल्कल, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन सी सॉफ़्टजैल, एंटी-एसिड पैन-डी, पैरासिटामोल टैबलेट (आईपी 500 मिलीग्राम), मधुमेह संबंधी दवा ग्लिमेपाइराइड और उच्च रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन शामिल हैं.

इन उत्पादों का निर्माण कई बड़ी कंपनियों द्वारा किया गया है, जिनमें हेटेरो ड्रग्स, अल्केम लेबोरेटरीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एचएएल), कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर और मेग लाइफसाइंसेज शामिल हैं.

पेट के संक्रमण के इलाज के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवा मेट्रोनिडाजोल, जिसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निर्मित किया जाता है, भी उन दवाओं में से एक है, जिसकी क्वालिटी सही नहीं पायी गई है.

कोलकाता की एक दवा-परीक्षण प्रयोगशाला ने क्लैवम 625 और पैन डी जैसे एंटीबायोटिक्स को नकली बताया. सेपोडेम एक्सपी 50 ड्राई सस्पेंशन, बच्चों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक सामान्य संक्रमण दवा का भी उसी लैब में परीक्षण किया गया था, जो फेल हो गई.

दवा नियामक ने गुणवत्ता परीक्षण में विफल होने वाली दवाओं की दो सूचियां साझा की हैं. इसके एक सूची में 48 लोकप्रिय दवाएं हैं. वहीं दूसरी सूची में अतिरिक्त 5 दवाएं हैं. जो टेस्ट में फेल पाई गई हैं और इनकी निर्मामता कंपनियों ने जिम्मेदारी लेने से इनकार करते हुए कहा कि जिन दवाओं का परीक्षण हुआ है, वे उनकी नहीं हैं बल्कि ‘नकली’ हैं.

गौरतलब है कि अगस्त में नियामक ने एक से ज्यादा संयोजन वाली 156 फिक्स डोज दवाओं (एफडीसी) पर प्रतिबंध लगा दिया था.

एफडीसी उन दवाओं को कहा जाता है, जिनमें 2 या 2 से अधिक दवाओं के केमिकल (साल्ट) को निश्चित अनुपात में मिलाकर बनाया जाता है. इस सूची में एसेक्लोफेनाक 50 एमजी और पैरासिटामोल 125 एमजी टैबलेट, पैरासिटामोल और ट्रामाडोल, टारिन और कैफीन के संयोजन और एसिक्लोफेनाक 50 एमजी और पैरासिटामॉल 125 एमजी टैबलेट समेत कई दवाओं पर रोक लगा दी थी.

इससे पहले जून में भी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने पैरासिटामोल 500 एमजी, हाईबीपी की दवा टेल्मिसर्टन, कफटिन कफ सीरप, दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक, मल्टी-विटामिन और कैल्शियम की गोलियों को निम्न क्वालिटी का पाया था.

गौरतलब है कि साल 2022 में हरियाणा की एक कंपनी द्वारा बनाई गईं चार दवाओं के कारण गांबिया में 66 बच्चों की मौत हो गई थी. तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह जानकारी देते हुए घोषणा की थी कि मेडन फार्मास्युटिकल द्वारा बनाए गए कफ सीरप में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल थे, जो मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं. डब्ल्यूएचओ ने कंपनी की उन चारों दवाओं के खिलाफ अलर्ट जारी किया था.

इसके बाद पिछले साल मई 2023 में भी एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि गांबिया  में 70 बच्चों की मौत भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा बनाए गए एक उत्पाद, जिसमें विषाक्त पदार्थ (टॉक्सिन) थे, के चलते गुर्दे को पहुंचे गंभीर नुकसान के कारण हुई थी.

हालांकि भारत सरकार उक्त दवाओं में टॉक्सिन की मौजूदगी की बात से लगातार इनकार करती रही थी.