असम: अखिल गोगोई को जिस केस में एनआईए कोर्ट ने बरी किया, उसी में उन पर यूएपीए के तहत आरोप तय

असम के शिवसागर से निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई के ख़िलाफ़ यह मामला 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध में हुए आंदोलन से जुड़ा है. यह राज्य में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उनके खिलाफ दर्ज उन दो मामलों में से एक है, जो हिंसक हो गया था.

असम के सिवसागर से विधायक अखिल गोगोई. (फोटो साभार:फेसबुक/@AkhilGogoiRD)

नई दिल्ली: मंगलवार (22 अक्टूबर) को असम के शिवसागर से निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई और तीन अन्य के ख़िलाफ़ विशेष एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने आरोप तय कर दिए हैं. एनआईए की विशेष अदालत ने यह कदम एक अन्य एनआईए कोर्ट द्वारा इस मामले में गोगोई को सभी आरोपों से बरी किए जाने के तीन साल से अधिक समय बाद उठाया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, विशेष न्यायाधीश एसके शर्मा ने यूएपीए की धारा 18 के तहत गोगोई के खिलाफ आरोप तय किए, जो आतंकवादी कृत्य की साजिश या प्रयास से संबंधित है. साथ ही जज ने आपराधिक साजिश, विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय एकता के लिए अहितकारी बयानों से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत भी आरोप तय किए हैं.

हालांकि, विशेष अदालत ने एनआईए के आरोपपत्र में लगाए गए दो महत्वपूर्ण आरोपों को हटा दिया. पहला- यूएपीए की धारा 39, जो एक आतंकवादी संगठन को दिए गए समर्थन से संबंधित है. दूसरा- आईपीसी की धारा 124ए, जो राजद्रोह से संबंधित है.

विशेष अदालत के इस कदम पर गोगोई ने कहा है, ‘गृह मंत्रालय और असम की सरकार मुझे आतंकवादियों की तरह हमेशा के लिए जेल में रखना चाहती है.’ विशेष कोर्ट के इस फैसले को गोगोई गौहाटी हाईकोर्ट में चुनौती देने की योजना बना रहे हैं.

क्या है पूरा मामला?

यह पूरा मामला साल 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध में हुए आंदोलन से जुड़ा है. गोगोई और उनके सहयोगियों के खिलाफ दिसंबर 2019 में चांदमारी पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया था. यह राज्य में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उनके खिलाफ दर्ज दो मामलों में से एक है, जो हिंसक हो गया था.

एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया था कि गोगोई ने अपने संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति का ‘गुप्त रूप से’ रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट सेंटर के साथ विलय कर दिया और बाद में इसे प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के साथ मिला दिया गया.

12 दिसंबर, 2020 को गिरफ्तारी के बाद गोगोई डेढ़ साल से अधिक समय (567 दिन) तक जेल में रहे. 1 जुलाई, 2021 को उन्हें एक विशेष एनआईए अदालत द्वारा सभी आरोपों से मुक्त करने के बाद रिहा कर दिया गया था.

एनआईए ने इसके खिलाफ पिछले साल फरवरी में गौहाटी उच्च न्यायालय में अपील की थी और उच्च न्यायालय ने एनआईए को आरोप तय करने की अनुमति दे दी थी.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीएए ने पूरे असम में व्यापक सार्वजनिक आक्रोश पैदा कर दिया था, जिससे राज्य भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान छिटपुट हिंसा हुई थी. इस तरह के विरोध प्रदर्शनों में कई संगठनों ने भी भाग लिया. यह भी सही है कि जनता को ऐसे मामलों में शांतिपूर्ण विरोध का सहारा लेने का संवैधानिक अधिकार है. हालांकि, तथ्य यह है कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर भरोसा कर रहा है कि उस समय आरोपी व्यक्तियों द्वारा किए गए विरोध और आंदोलन कुछ स्थानों पर हिंसक हो गए थे.’

अदालत ने कहा था कि गोगोई ने अपने समर्थकों के सहयोग से न केवल जनता को लामबंद और उन्हें सीएए विरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए राजी किया, बल्कि कई जगहों पर इस तरह के आंदोलन का नेतृत्व भी किया. आंदोलन के दौरान कई जगहों पर हिंसा की घटनाएं हुईं.

एक मामले में हाईकोर्ट से भी बरी हो चुके हैं गोगोई

ज्ञात हो कि एनआईए पहले गोगोई के खिलाफ सीएए विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े दो मामलों की जांच कर रही थी. एक मामले में विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी, जिसे जांच एजेंसी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने विशेष एनआईए अदालत के आदेश को बरकरार रखा था.