असम: सीएए विरोधी प्रदर्शन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अखिल गोगोई की गिरफ़्तारी पर रोक लगाई

असम के सिवसागर से निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने गौहाटी उच्च न्यायालय के 9 फरवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी, जिसमें राज्य की एक विशेष एनआईए अदालत को दो मामलों में से एक में आरोप तय करने के लिए आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी.

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असम के सिवसागर से विधायक अखिल गोगोई. (फोटो साभार:फेसबुक/@AkhilGogoiRD)

असम के सिवसागर से निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने गौहाटी उच्च न्यायालय के 9 फरवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी, जिसमें राज्य की एक विशेष एनआईए अदालत को दो मामलों में से एक में आरोप तय करने के लिए आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी.

असम के सिवसागर से विधायक अखिल गोगोई. (फोटो साभार:फेसबुक/@AkhilGogoiRD)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असम के निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई को सीएए विरोधी प्रदर्शनों और संदिग्ध माओवादी लिंक से संबंधित एक मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की है और उनकी याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अखिल गोगोई, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर रहे हैं, ने गौहाटी उच्च न्यायालय के 9 फरवरी के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें असम के एक विशेष एनआईए अदालत को दो मामलों में से एक में आरोप तय करने के लिए आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी.

अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करने पर विचार करने के सीमित उद्देश्य के लिए राज्य के स्थायी वकील (एनआईए) को नोटिस दिया जाए.’

जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और पंकज मिथल की पीठ ने मंगलवार को दलीलें सुनने के बाद आदेश दिया, ‘इस बीच, याचिकाकर्ता (गोगोई) को 14 दिसंबर, 2019 को गुवाहाटी के एनआईए थाने में दर्ज मामले में गिरफ्तारी से राहत प्रदान की जाए.’ अखिल गोगोई  की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी पेश हुए.

इससे पहले, उच्च न्यायालय ने एनआईए को गोगोई और उनके तीन सहयोगियों के खिलाफ विशेष अदालत में सीएए विरोधी प्रदर्शनों और संदिग्ध माओवादी लिंक के संबंध में आरोप तय करने की अनुमति दी थी.

उच्च न्यायालय का आदेश एनआईए की उस अपील पर आया था जिसमें जुलाई 2021 में चारों व्यक्तियों को आरोपमुक्त करने के एनआईए की विशेष अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीएए ने असम राज्य भर में व्यापक सार्वजनिक आक्रोश पैदा कर दिया था, जिससे राज्य भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान छिटपुट हिंसा हुई थी. इस तरह के विरोध प्रदर्शनों में कई संगठनों ने भी भाग लिया. यह भी सही है कि जनता को ऐसे मामलों में शांतिपूर्ण विरोध का सहारा लेने का संवैधानिक अधिकार है. हालांकि, तथ्य यह है कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर भरोसा कर रहा है कि उस समय आरोपी व्यक्तियों द्वारा किए गए विरोध और आंदोलन कुछ स्थानों पर हिंसक हो गए थे.’

अदालत ने कहा था कि गोगोई ने अपने समर्थकों के सहयोग से न केवल जनता को लामबंद और उन्हें सीएए विरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए राजी किया, बल्कि कई जगहों पर इस तरह के आंदोलन का नेतृत्व भी किया. आंदोलन के दौरान कई जगहों पर हिंसा की घटनाएं हुईं.

इस आदेश के खिलाफ विधायक शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अन्य तीन आरोपी ढैज्या कोंवर, बिट्टू सोनोवाल और मानश कोंवर हैं, इन सभी को एनआईए मामले में जमानत मिल गई और वे जेल से रिहा हो गए.

गोगोई अकेले थे जिनकी जमानत अदालत ने खारिज कर दी थी और 567 दिन जेल में बिताने के बाद उन्हें तब रिहा किया गया था, जब विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रांजल दास ने उन्हें तीन अन्य के साथ सभी आरोपों से बरी कर दिया था.

ज्ञात हो कि एनआईए गोगोई के खिलाफ सीएए विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े दो मामलों की जांच कर रही है. उनमें से एक में विशेष एनआईए अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी, जिसे गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भी अप्रैल 2021 में जांच एजेंसी द्वारा चुनौती दिए जाने के बाद बरकरार रखा था.

एक जुलाई, 2021 को विशेष एनआईए अदालत ने गोगोई और उनके तीन सहयोगियों को दिसंबर 2019 में सीएए के विरोध में असम में हुए हिंसक प्रदर्शनों में उनकी कथित भूमिका के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था.

गोगोई को 12 दिसंबर 2019 को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था. उस दौरान प्रदेश में सीएए का विरोध पूरे जोरों पर था. गोगोई की गिरफ्तारी कानून व्यवस्था के मद्देनजर एहतियात के तौर पर की गई थी. इसके अगले दिन उनके तीन सहयोगियों को हिरासत में लिया गया था.

गोगोई और उनके साथी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत दो मामलों में आरोपी थे. गोगोई और उनके दो अन्य साथियों को पहले मामले में 22 जून 2021 को आरोपों से मुक्त कर दिया गया था.

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