नई दिल्ली: गुजरात पुलिस द्वारा अहमदाबाद में द हिंदू के संवाददाता महेश लांगा के खिलाफ दर्ज किए गए दूसरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए मीडिया निकायों ने कहा कि गोपनीय दस्तावेज रखने के आरोप में पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई शुरू करना ‘चिंताजनक’ और ‘चौंकाने वाला’ है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से संबंधित कथित रूप से ‘संवेदनशील’ दस्तावेजों की ‘चोरी’ के लिए दर्ज एफआईआर की वरिष्ठ वकीलों और कानूनी विशेषज्ञों ने भी आलोचना की है और इसे ‘खतरनाक मिसाल’ बताया है, जिसका पत्रकारों और ह्विसिलब्लोअर्स पर भयावह प्रभाव पड़ सकता है.
इस बीच, लांगा के वकीलों ने आरोप लगाया कि एफआईआर में प्रक्रियागत खामियां हैं.
इसी बीच, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन विमेंस प्रेस कॉर्प्स और अन्य पत्रकार यूनियनों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘यह चौंकाने वाला है कि महज दस्तावेजों के आधार पर राज्य द्वारा एफआईआर दर्ज की जा सकती है.’
बयान में एफआईआर की निंदा की गई और इसे वापस लेने की मांग की गई.
एडिटर्स गिल्ड ने सोमवार को एक बयान में कहा, ‘पत्रकारों को अक्सर अपने काम के दौरान संवेदनशील दस्तावेजों तक पहुंचने और उनकी समीक्षा करने की आवश्यकता होती है, उनके काम के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू करना चिंताजनक है.’
साथ ही, गिल्ड ने गुजरात पुलिस द्वारा ‘संवेदनशीलता’ के कारण दर्ज एफआईआर को ऑनलाइन उपलब्ध न कराने के निर्णय को गंभीर चिंता का विषय बताया.
वहीं, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई ‘स्वतंत्रता के हनन के साथ सेंसरशिप’ का संकेत देती है. उन्होंने कहा, ‘यह परेशान करने वाली बात है कि ह्विसिलब्लोअर एक्ट होने के बावजूद इसे कभी भी इस्तेमाल में नहीं लाया गया, क्योंकि यह ऐसे मामलों में पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करेगा.’
उन्होंने बताया कि केवल आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम द्वारा संरक्षित दस्तावेजों को ही किसी के पास पाए जाने पर प्रतिबंध है.
ज्ञात हो कि बीते 8 अक्टूबर को दर्ज दूसरे मामले में गांधीनगर पुलिस ने जीएमबी की शिकायत के बाद चोरी, आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं का हवाला दिया, जिसमें लांगा का नाम है. जीएमबी ने कहा कि उसे 8 अक्टूबर को अपराध शाखा से एक गोपनीय पत्र मिला था, जिसमें पुलिस को मिले 215 पन्नों के दस्तावेज़ के बारे में बताया गया था.
कानून के तहत पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 378 (2) में चोरी को किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके कब्जे से किसी भी चल संपत्ति को बेईमानी से छीनने के इरादे से किया गया कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है, और कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि इस मामले में अपराध कैसे बनाया जा सकता है, क्योंकि एक गैर-गोपनीय दस्तावेज़ की फोटोकॉपी पाई गई है.
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, ‘भारत में जहां खोजी पत्रकारिता ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और व्यापम घोटाले जैसे बड़े घोटालों को उजागर किया है, विश्वसनीय रिपोर्टिंग के लिए प्रामाणिक दस्तावेजों तक मुफ्त पहुंच आवश्यक है.’
उन्होंने कहा, ‘शक्तिशाली हितों से उत्पन्न खतरों को देखते हुए संवेदनशील दस्तावेज रखने के लिए पत्रकारों को विशेष संरक्षण प्रदान करने से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी तथा निर्भीक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहन मिलेगा.’
इस बीच, लांगा के वकीलों ने प्रक्रियागत कागजी कार्रवाई में भी चूक की ओर इशारा किया. लांगा के वकील वेदांत राजगुरु ने बताया कि लांगा के खिलाफ जीएमबी के दस्तावेजों की कथित चोरी के संबंध में दर्ज एफआईआर में यह उल्लेख नहीं है कि दस्तावेज कहां से बरामद किए गए, न ही जब्ती ज्ञापन में दस्तावेज का उल्लेख है.
इसके अलावा, 8 अक्टूबर को लांगा की गिरफ़्तारी के बाद अहमदाबाद क्राइम ब्रांच द्वारा तैयार किए गए जब्ती ज्ञापन में कहा गया है कि पुलिस ने उनके घर से दो लैपटॉप और एक डेस्कटॉप, एक आईफोन, एक पेन ड्राइव, लांगा और उनकी पत्नी के टैक्स रिटर्न, कलोल तालुका से संबंधित ज़मीन के दस्तावेज़, 1.8 लाख रुपये, आईएएस अधिकारियों के फोन नंबर वाली 2022 फोन डायरेक्टरी और क्रिस्टोफर जैफ़रलॉ की किताब ‘गुजरात अंडर मोदी’ की पांडुलिपि बरामद की है.
घर से जब्त किए गए फोन और लैपटॉप का इस्तेमाल लांगा की पत्नी और उनके बच्चे कर रहे थे. जब्ती ज्ञापन में न तो लांगा के निजी फोन और न ही गोपनीय जीएमबी दस्तावेज़ों का ज़िक्र है.
लांगा को एक पारिवारिक कंपनी द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें वे बोर्ड के सदस्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं हैं. शुक्रवार को उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया.
एफआईआर में कहा गया है कि आंतरिक जांच के बाद जीएमबी का मानना है कि उसके किसी कर्मचारी ने बोर्ड के चार्टर से संबंधित नीति-संबंधी दस्तावेज़ की प्रतियां बनाकर लांगा को दी होंगी.
एफआईआर में कहा गया है कि चूंकि दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं है और सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है, इसलिए इसे अपराध करने के इरादे से चुराया गया है और प्रतियां अवैध रूप से बनाई गई हैं.
फाइलें रखने के आधार पर पत्रकार की गिरफ्तारी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर हमला: कांग्रेस
कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) की गोपनीय फाइलों को कथित तौर पर अपने पास रखने को लेकर द हिंदू के पत्रकार महेश लांगा के खिलाफ दर्ज एफआईआर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर खुलेआम हमला है.
पार्टी महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक लंबी पोस्ट में कहा कि अहमदाबाद में ‘द हिंदू’ के वरिष्ठ पत्रकार पर गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) की आधिकारिक दस्तावेज रखने का आरोप लगाया गया है. यह स्पष्ट रूप से उस कुत्सित तरीक़े से ध्यान हटाने के लिए किया गया है जिसमें जीएमबी को सरकारी खज़ाने की क़ीमत पर ‘मोदानी’ को विशेष लाभ देने के लिए मजबूर किया गया है.
रमेश ने कहा, ‘असली अपराध गुजरात सरकार के शीर्ष स्तर पर हो रहा है. इसीलिए हम बार-बार कह रहे हैं कि ‘मोदानी’ मामले की व्यापक रूप से संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच करवाने की आवश्यकता है. वर्ष 2024 की शुरुआत में अडानी पोर्ट्स ने गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से ‘बिल्ड-ऑपरेट-ओन-ट्रांसफर’ (बूट) के आधार पर निजी बंदरगाहों के लिए रियायत की अवधि को मौजूदा 30 साल से बढ़ाकर 75 साल करने का अनुरोध किया, जो कि 50 वर्ष की अधिकतम स्वीकार्य अवधि से काफ़ी अधिक है.’
रमेश के अनुसार, 12 मार्च, 2024 को जीएमबी की बैठक हुई और सिफ़ारिश की गई कि बंदरगाहों की संपत्तियों और संचालन के लिए अधिक बोलियां आमंत्रित की जाएं, मौजूदा ऑपरेटर (अडानी पोर्ट्स) के साथ वित्तीय शर्तों पर फिर से बातचीत की जाए और बंदरगाहों के लिए अलग-अलग दर संरचनाएं तैयार और लागू की जाएंगी.
उन्होंने दावा किया, ‘कुछ दिनों बाद जीएमबी की सिफ़ारिशों को ‘गुजरात इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड’ (जीआईडीबी) और स्वयं मुख्यमंत्री ने ख़ारिज़ कर दिया. ऐसा होने से अडानी पोर्ट्स को मुंद्रा, हजीरा और दहेज बंदरगाहों पर 75 वर्षों के लिए नियंत्रण पाने का रास्ता साफ हो गया.’
रमेश का कहना है कि ये सभी तथ्य 14 अगस्त, 2024 को सार्वजनिक रूप से सामने आए.
उन्होंने कहा, ‘राज्य के वित्त विभाग ने मौजूदा रियायत अवधि 2027-28 में समाप्त होने के बाद अडानी पोर्ट्स द्वारा राज्य को मिलने वाली रॉयल्टी राजस्व की राशि पर जीएमबी से कुछ स्पष्टीकरण मांगे. अडानी पोर्ट्स द्वारा राज्य को किए जाने वाले भुगतान का जीएमबी का प्रारंभिक अनुमान लगभग 1,700 करोड़ रुपये प्रति वर्ष था जबकि कंपनी का दावा था कि यह प्रति वर्ष केवल 394 करोड़ रुपये था.
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘इसके बाद भारी बवाल मचा. अधिकारियों के तबादले कर दिए गए और कंपनी के लिए सुविधाजनक तरीक़े से नंबरों पर फिर से काम किया गया. मामला फिलहाल वित्त विभाग के पास है. देखते हैं आगे क्या होता है.’