गुजरात पुलिस ने पत्रकार महेश लांगा के ख़िलाफ़ तीसरा केस दर्ज किया, अब लगाया धोखाधड़ी का आरोप

द हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार महेश लांगा के ख़िलाफ़ पहली एफआईआर कथित जीएसटी चोरी के मामले में दर्ज की गई थी और दूसरी गुजरात मैरीटाइम बोर्ड से संबंधित कथित ‘संवेदनशील’ दस्तावेज़ों की ‘चोरी’ के लिए. अब एक व्यवसायी द्वारा धोखाधड़ी का आरोप लगाने के बाद तीसरी एफआईआर दर्ज की गई है.

पत्रकार महेश लांगा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर जीएस मलिक ने मंगलवार (29 अक्टूबर) को बताया कि एक व्यवसायी द्वारा धोखाधड़ी का आरोप लगाने के बाद गुजरात पुलिस ने द हिंदू के पत्रकार महेश लांगा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

लांगा के खिलाफ यह तीसरी एफआईआर है – पहली एफआईआर कथित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) चोरी के मामले में दर्ज की गई थी और दूसरी गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से संबंधित कथित रूप से ‘संवेदनशील’ दस्तावेजों की ‘चोरी’ के लिए दर्ज की गई थी.

लांगा 9 अक्टूबर से जीएसटी चोरी के मामले में जेल में बंद हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, धोखाधड़ी के मामले के बारे में मंगलवार को पत्रकारों से बात करते हुए जीएस मलिक ने बताया कि विज्ञापन उद्योग के एक व्यवसायी ने लांगा पर 28.68 लाख रुपये की धोखाधड़ी करने और पैसे वापस मांगने पर उनके कारोबार को बदनाम करने की धमकी देने का आरोप लगाया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने मलिक के हवाले से बताया, ‘लांगा ने अपने संपर्कों और पॉजिटिव समाचार कवरेज के ज़रिये शिकायतकर्ता को उसके विज्ञापन व्यवसाय में मदद करने की पेशकश की. इसके बाद उसने जून में व्यवसायी से 23 लाख रुपये उधार लिए और उसे नकद में चुकाने का वादा किया.’

मलिक ने कहा कि लांगा ने व्यवसायी को उसकी पत्नी के जन्मदिन की पार्टी के लिए 5.68 लाख रुपये का बिल दिया और पार्टी के दिन राशि वापस करने का वादा किया.

मलिक ने कहा, ‘लेकिन जब व्यवसायी ने लांगा से पैसे वापस करने का अनुरोध किया, तो उन्होंने धमकी दी और अपने संबंधों का हवाला देते हुए परिणाम भुगतने की चेतावनी दी और कथित तौर पर कहा कि वह नकारात्मक मीडिया कवरेज के माध्यम से उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचा सकते हैं.’

समाचार एजेंसी ने पुलिस अधिकारी के हवाले से यह भी बताया कि व्यवसायी ने लांगा के खिलाफ अन्य मामलों के बारे में जानने के बाद पुलिस में शिकायत करने का फैसला किया.

जीएसटी चोरी के मामले में, जहां यह आरोप लगाया गया है कि 200 फर्जी फर्मों के एक नेटवर्क ने जीएसटी में सरकार को धोखा देने के लिए काम किया, लांगा पर डीए एंटरप्राइज नामक एक फर्म संचालित करने का आरोप है, जिसका नाम एफआईआर में है.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दावा किया कि लांगा डीए एंटरप्राइज को नियंत्रित करते हैं और उसके परिसरों से बेहिसाब नकदी पाई गई.

मलिक ने मंगलवार को आरोप लगाया, ‘डीए एंटरप्राइज का इस्तेमाल फर्जी बिलिंग के रूप में खर्च को कृत्रिम रूप से बढ़ाकर और बदले में नकद प्राप्त करके पैसे को रूट करने के लिए किया जा रहा था. धन को ध्रुवी एंटरप्राइज में स्थानांतरित किया गया और फिर इसे नकद के रूप में वापस ले लिया गया और हवाला नेटवर्क के माध्यम से महेश को वापस भेज दिया गया.’

मलिक ने बताया कि लांगा की पत्नी और उनके चचेरे भाई मनोज – जो कथित तौर पर डीए एंटरप्राइज के मालिक हैं – ने दावा किया है कि लांगा फर्म चलाते थे और पुलिस ने दोनों को ‘निर्दोष’ पाया. मामले में दोनों में से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यह भी दावा किया कि लांगा और उनकी पत्नी सालाना 15 लाख रुपये कमाते हैं, इसके बावजूद वे ‘शानदार’ जीवनशैली जीते हैं.

हालांकि, लांगा के वकील वेदांत राजगुरु ने इस महीने की शुरुआत में द हिंदू को बताया था कि उनके मुवक्किल न तो डीए एंटरप्राइज का निदेशक है और न ही प्रमोटर है और उसके नाम पर कोई लेनदेन या हस्ताक्षर नहीं किए गए थे.

राजगुरु ने यह भी कहा कि लांगा, जिन्होंने मामले में अपनी गिरफ्तारी को कथित तौर पर ‘राजनीति से प्रेरित’ बताया है, का नाम प्राथमिक एफआईआर में नहीं था.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद की एक अदालत ने सोमवार को इस मामले में लांगा को ज़मानत देने से इनकार कर दिया, यह पाते हुए कि उसने इस अपराध में सक्रिय भूमिका निभाई है. जांच चल रही है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना है.

लांगा की गिरफ़्तारी और उनके ख़िलाफ़ दर्ज मामलों ने मीडिया में संदेह पैदा कर दिया है. लांगा के ख़िलाफ़ गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के गोपनीय दस्तावेज़ रखने के आरोप में भी एक केस दर्ज है.

सोमवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया समेत चार मीडिया संगठनों ने उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई दूसरी एफ़आईआर की निंदा की.

मीडिया संगठनों ने कहा कि गोपनीय दस्तावेज रखने के आरोप में पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई शुरू करना ‘चिंताजनक’ और ‘चौंकाने वाला’ है. बयान में कहा, ‘यह चौंकाने वाला है कि महज दस्तावेजों के आधार पर राज्य द्वारा एफआईआर दर्ज की जा सकती है.’

बयान में इस बात पर जोर दिया गया कि पत्रकारों को अक्सर अपने काम के दौरान संवेदनशील दस्तावेजों तक पहुंचने और उनकी समीक्षा करने की आवश्यकता होती है, उनके काम के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू करना चिंताजनक है.