श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर सरकार के सूचना और जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत डोडा स्थित एक एक्टिविस्ट की हिरासत के बारे में रिपोर्ट करने पर एक समाचार पोर्टल को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है.
इस संबंध में मंगलवार (12 नवंबर) को एक पत्र (आईएनएफ/डी-45/2024) जारी किया गया, जिसमें डोडा के जिला सूचना अधिकारी (डीआईओ) ने डोडा निवासी रहमतुल्ला की हिरासत के बारे में एक वीडियो रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए ‘द चिनाब टाइम्स’ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है.
मालूम हो कि रहमतुल्ला एक स्थानीय एक्टिविस्ट हैं, जिन पर कथित तौर पर नागरिकों की आवाज़ बनने, उनके मुद्दे उठाने के लिए पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है.
उल्लेखनीय है कि चेतावनी वाला यह पत्र जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जो केंद्र शासित प्रदेश के सूचना मंत्री भी हैं, के उस आश्वासन के कुछ दिनों बाद सामने आया है, जिसमें उन्होंने खुद मीडिया को आश्वास्त किया था कि उनकी सरकार पत्रकारों के खिलाफ ‘अत्याचार का सहारा नहीं लेगी.’
अब्दुल्ला ने यह भी कहा था कि अगर मीडिया को ‘स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति नहीं दी गई तो… हम लोकतंत्र को मजबूत नहीं कर पाएंगे.’
2019 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी हरविंदर सिंह, जो वर्तमान में डोडा के जिला प्रशासन का नेतृत्व करने वाले डिप्टी कमिश्नर (डीसी) हैं, ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिये मीडिया को एक्टिविस्ट की ‘सुरक्षा के तहत हिरासत’ की ‘गलत रिपोर्टिंग’ को लेकर चेतावनी दी थी.
उन्होंने इसे लेकर परिणाम भुगतने की भी बात कही गई थी, हालांकि बाद में अधिकारी द्वारा इस पोस्ट को हटा दिया गया था.
एक अन्य सोशल मीडिया पोस्ट में प्रशासन ने कहा है कि रहमतुल्लाह आतंकवादियों के ‘ओवरग्राउंड वर्कर’ थे और उसकी हिरासत का आधार ‘सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही बातों से बिल्कुल अलग है.’
हालांकि, इस संबंध में डीसी सिंह से टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं हो सका है.
ज्ञात हो कि जम्मू संभाग के डोडा जिले से संचालित ‘द चिनाब टाइम्स’ एक स्वतंत्र डिजिटल समाचार पोर्टल है, जो डिजिटल न्यूज़ संस्थानों के संगठन डिजीपब के साथ पंजीकृत और संबद्ध है. डिजीपब की अपनी शिकायत समीक्षा प्रक्रिया है, जिसे केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आईटी नियम, 2021 की आवश्यकताओं के अनुरूप माना जाता है.
द चिनाब टाइम्स की इस वीडियो रिपोर्ट को रिपोर्टर राजा शकील द्वारा तैयार किया गया है और इसे पोर्टल के फेसबुक पेज पर सोमवार (11 नवंबर) को जारी किया गया था. इसे 18,700 से अधिक बार देखा गया, वहीं 44 टिप्पणियां भी मिली हैं.
रिपोर्टर शकील ने लगभग 16 मिनट लंबे इस वीडियो में बताया है कि रहमतुल्ला पर दूसरी बार पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है और उनकी हिरासत की आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और डोडा से नवनिर्वाचित विधायक मेहराज मलिक ने भी निंदा की है.
शकील ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पीएसए डोजियर में पांच में से दो मामलों में पुलिस ने रहमतुल्लाह को देश के खिलाफ बोलने को लेकर आरोप लगाए है, लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का तर्क है कि पीएसए के तहत पहली बार अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को अदालत द्वारा रद्द कर दिया जाता है, तो उसे फिर से दूसरी बार उन्हीं मामलों का इस्तेमाल कर हिरासत में नहीं लिया जा सकता है.
बता दें कि रहमतुल्लाह पर 2016 में पीएसए लगाया गया था, जिसे एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ‘अराजक कानून’ करार दिया था. हालांकि, 2017 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी इन आरोपों को खारिज कर दिया था.
चिनाब टाइम्स की रिपोर्ट में रहमतुल्ला के भाई फैयाज अहमद के साथ टेलीफोन पर बातचीत भी शामिल है, जिसमें अहमद को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि रविवार के तड़के जब उनके भाई को हिरासत में लिया गया, तब वह घर पर मौजूद नहीं थे.
अहमद ने डीसी सिंह के इस दावे को भी गलत बताया, जिसमें रहमतुल्ला को आतंकवादियों का ‘ओवरग्राउंड वर्कर’ बताया गया है. उन्होंने कहा, ‘मेरे भाई को 2016 से जिला प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा परेशान किया जा रहा है, जबकि अदालतों ने उन्हें सभी मामलों में जमानत दे दी है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उनका सिर्फ एक ही अपराध है कि वह गरीबों के लिए बोलते हैं. नगर पालिका हमारे घर के पास कूड़ा फेंकती है, जो पूरे मोहल्ले के लिए परेशानी का सबब बन गया है. वह इस मुद्दे को हाल ही में उठा रहे थे, यही वजह है कि उन्हें निशाना बनाया गया.’
उन्होंने आगे कहा कि उनके भाई के खिलाफ कोई गंभीर आरोप लंबित नहीं हैं. पीएसए डोजियर में उन पर आतंकवादियों से बात करने के लिए वीपीएन का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है, लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं है.
इस पर रिपोर्टर ने सवाल उठाया कि क्या बिना सबूत के किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना उचित है?
इस संबंध में जम्मू-कश्मीर में पीएसए मामलों की जांच के लिए ‘निष्पक्ष न्यायिक और कानूनी समीक्षा समिति’ की वकालत करने वाले एक ट्वीट को भी स्क्रीन पर दिखाया गया.
हालांकि, प्रशासन ने इस संबंध में आधिकारिक दावों पर सवाल उठाने के लिए पोर्टल को दोषी माना है, जो कि पत्रकारों का नैतिक दायित्व है. डीआईओ के पत्र में आरोप लगाया गया कि रिपोर्ट के ‘टोन और सामग्री’ ने ‘प्रशासनिक प्रक्रिया को गलत तरीके से पेश किया और जिस व्यक्ति के खिलाफ कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके मामला दर्ज किया गया है उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त की गई है.’
इसमें आगे कहा गया है कि उक्त वीडियो में पोर्टल ने कानून की उचित प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की कोशिश की है, जिससे संभावित कानून-व्यवस्था का मसला खड़ा हो गया है. इसके अलावा पत्र में ये भी कहा गया है कि पोर्टल ने प्रशासन की कार्रवाई की व्याख्या अपनी सुविधा के अनुसार की है, जिससे आम जनता में अफवाहें पैदा हुई हैं.
इस पूरे मामले को लेकर द वायर से बात करते हुए द चिनाब टाइम्स के संपादक अंजर अयूब ने कहा कि उनकी रिपोर्ट के माध्यम से उनके पत्रकार द्वारा उठाई गई चिंताओं पर बोलने के बजाय प्रशासन ने पोर्टल के पंजीकरण की वैधता पर सवाल उठाया है, जो उत्पीड़न जैसा है.
उन्होंने कहा, ‘हमें डोडा प्रशासन द्वारा बार-बार पंजीकरण और अन्य प्राधिकरण दस्तावेज जमा करने के लिए कहा गया है और हमने हर बार इन आदेशों का पालन किया है. हमारे संगठन की वैधता को लेकर कोई सवाल नहीं है. सरकार को रिपोर्ट में उठाए गए सवालों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए.’
ताज़ा मामले में चिनाब टाइम्स के संपादक को बुधवार (13 नवंबर) सुबह 11 बजे तक डीआईओ के पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए कहा गया था. अयूब ने कहा कि उनका पोर्टल आईटी अधिनियम, 2000 और आईटी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में उल्लिखित नैतिक मानकों से पूरी तरह अवगत है, जो देश में डिजिटल समाचार पोर्टलों के वैध और नैतिक संचालन के लिए आवश्यक हैं.
उन्होंने ये भी बताया, ‘हम लगातार इन सिद्धांतों के पाबंद रहे हैं और ऐसी सामग्री देने का प्रयास करते हैं जो तथ्यात्मक रूप से सटीक, निष्पक्ष हो. वीडियो रिपोर्ट में जिला प्रशासन के साथ-साथ बंदी के परिवार दोनों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए. रिपोर्ट में कहीं भी (प्रशासन की) कार्रवाई की गलत व्याख्या नहीं की गई है.’
अयूब ने आगे कहा कि किसी व्यक्ति की हिरासत के आसपास की परिस्थितियों को बताने का मतलब यह नहीं है कि हम हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ सहानुभूति रखते हैं. तथ्यों के बारे में रिपोर्ट करना पक्ष लेने या सहानुभूति दिखाने के बराबर नहीं है. मूल लेख में गलती से उल्लेख किया गया था कि द चिनाब टाइम्स ने रिपोर्ट किया था कि रहमतुल्ला को दो मामलों में आरोपों से मुक्त कर दिया गया था. अब इस संदर्भ को हटा दिया गया है और गलती के लिए खेद है.
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