कांग्रेस ने पूछा- क्या प्रधानमंत्री मोदी जाति जनगणना को विभाजनकारी मानते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से पहले कांग्रेस ने पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि जाति जनगणना विभाजनकारी है और क्या वह अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर मनमानी 50% की सीमा को हटाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे.

जयराम रमेश. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने बुधवार (13 नवंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बिहार को लेकर सवाल पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि जाति जनगणना विभाजनकारी है और क्या वह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर मनमानी 50% की सीमा को हटाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री के बिहार दौरे से पहले कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने कहा कि दरभंगा दौरे पर जा रहे प्रधानमंत्री से उनके चार सवाल हैं.

रमेश ने पूछा कि दरभंगा में एम्स लाने में इतनी देरी क्यों हुई.

उन्होंने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा, ‘दरभंगा में एम्स की घोषणा तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-2016 के केंद्रीय बजट में की थी. स्थानीय लोग तब से अस्पताल का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन काम शुरू होने में ही नौ साल लग गए. ऐसा प्रतीत होता है कि इसके लिए राजनीतिक श्रेय लेने की केंद्र सरकार की जिद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह सुनिश्चित करने की साजिश के कारण देरी हुई कि उन्हें इसका लाभ मिले.’

रमेश ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, ‘क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री इस देरी पर कुछ बोलेंगे?’ उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 20 वर्षों में भाजपा ने मैथिली भाषा के विकास, संरक्षण या संवर्धन के लिए कुछ नहीं किया है.

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मैथिली एक अनुसूचित भाषा है, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है. 1968 में राजभाषा संकल्प ने केंद्र और राज्यों को अनुसूचित भाषाओं के ‘पूर्ण विकास’ के लिए ‘ठोस उपाय’ करने के लिए बाध्य किया ताकि उनका तेज़ी से प्रसार हो और आधुनिक ज्ञान के संचार के प्रभावी साधन बनें.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने केंद्र में अपने 10 साल और बिहार में 13 साल की सत्ता में इस संकल्प की पूरी तरह से अवहेलना की है. उन्होंने प्राथमिक विद्यालयों में भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने से इंकार कर दिया. राज्य की मैथिली अकादमी एक टूटे-फूटे संगठन में बदलकर रह गई है, जिसके पास वर्षों से न तो कोई फंड है, न अध्यक्ष और न ही कोई कर्मचारी. नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और भाजपा ने इस भाषा की उपेक्षा क्यों की?’

उन्होंने आगे पूछा कि मुजफ्फरपुर, पूर्णिया या भागलपुर के लिए जिन हवाई अड्डों का वादा किया गया था, वे कहां हैं?

रमेश ने कहा, ‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने 18 अगस्त, 2015 को पूर्णिया में एक हवाई अड्डे का वादा किया था. छह साल हो गए हैं और इस बीच नीतीश कुमार तीन-तीन बार ‘यू-टर्न’ ले चुके हैं, लेकिन उनकी सरकार ने अभी तक वादा पूरा नहीं किया है. 2019 की रैली में मोदी जी ने मुजफ्फरपुर में पताही हवाई अड्डा खोलने का वादा किया था. 2023 में गृह मंत्री अमित शाह ने भी पताही हवाई अड्डे पर परिचालन शुरू करने का वादा किया था, वहीं भाजपा ने पिछले साल दिवाली तक हवाई अड्डे पर पूरी तरह परिचालन शुरू करने का वादा किया था.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन, मार्च 2024 में एएआई ग्राउंड टीम ने पाया कि इसकी भूमि की चारदीवारी टूटी हुई है और भैंसें रनवे पर घूमती हैं. आखिर सरकार 10 वर्षों से क्या कर रही है? मुजफ्फरपुर भी पूर्णिया और भागलपुर के साथ उन शहरों में शामिल हो गया है, जिन्हें हवाई अड्डों की ज़रूरत है और वे इसके हकदार भी हैं, लेकिन भारतीय जुमला पार्टी ने उन्हें केवल झूठे और टूटे वादे दिए हैं.’

रमेश ने कहा कि क्या प्रधानमंत्री सोचते हैं कि जाति जनगणना विभाजनकारी है?

उन्होंने कहा कि कांग्रेस देशव्यापी सामाजिक और आर्थिक जाति जनगणना के लिए प्रतिबद्ध है और तेलंगाना में उसकी राज्य सरकार ने जनगणना कराना शुरू कर दिया है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस और राजद के दबाव में नीतीश सरकार को अक्टूबर 2023 में बिहार की जाति जनगणना के आंकड़ों को जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय देश को जाति के नाम पर विभाजित करने का आरोप लगाया. अपने पुराने/नए सहयोगी से हाथ मिलाने के बाद प्रधानमंत्री उनके द्वारा ज़ारी किए गए जाति आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के बारे में क्या सोचते हैं?’

उल्लेखनीय है कि बिहार के जाति आधारित सर्वे के नतीजे जारी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2023 में कहा था कि विपक्ष देश को जाति के नाम पर विभाजित करने की कोशिश कर रहा है.

रमेश ने सवाल किया, ‘क्या वह इसे दशकीय जनगणना में आगे बढ़ाएंगे जो कि 2021 में होनी थी लेकिन अब आयोजित होने की संभावना है? और क्या वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण पर मनमाने ढंग से लगाए गए 50% की सीमा को हटाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे?’

ज्ञात हो कि बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर 2023 को जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए थे, जिसके अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है, जिसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) सबसे बड़ा हिस्सा (36%) है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें पिछड़ा वर्ग 27.13 फीसदी है, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी और सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी है.

इन आंकड़ों के जारी होने के बाद से विपक्षी दलों द्वारा देशभर में जाति जनगणना की मांग तेज हो गई.