नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार (3 दिसंबर) को लोकसभा में जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद आलोक कुमार सुमन ने शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ होने वाले भेदभाव को लेकर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार से सवाल पूछा, जिसके जवाब में मंत्री ने बताया कि इस तरह का कोई केंद्रीय डेटा रखा ही नहीं जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, आलोक कुमार सुमन का प्रश्न इस बात पर केंद्रित था कि क्या पिछले एक दशक में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर केंद्रीय संस्थानों जैसे विश्वविद्यालयों, आईआईटी, एम्स और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में.
इस सवाल का जवाब देते हुए, वीरेंद्र कुमार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला दिया, जिसमें 2013 से 2022 तक एससी और एसटी के खिलाफ अपराध/अत्याचार के तहत दर्ज मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है.
कुमार ने ऐसे भेदभाव को रोकने और इसे संबोधित करने के लिए दो अधिनियमों का उल्लेख किया, जिसमें पहला नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 है, जिसका उद्देश्य अस्पृश्यता जैसी कुप्रथाओं को खत्म करना और ऐसे किसी मामले में सज़ा देने के प्रावधान से जुड़ा है. दूसरा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, है, जो एससी और एसटी समुदाय के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को रोकने और उनके लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के मकसद से लाया गया था.
कुमार ने ये भी स्पष्ट किया कि एससी/एसटी अधिनियम, 1989 के प्रावधान केंद्रीय कार्यालयों/संस्थानों पर भी लागू हैं. कुमार ने कहा कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग इन अधिनियमों के कार्यान्वयन के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना और एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन संचालित करता है.
हालांकि, उन्होंने ये भी बताया कि शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में एससी/एसटी के खिलाफ भेदभाव से संबंधित डेटा केंद्रीय रूप से एकत्र नहीं रखा जाता है.
कुमार ने उच्च शिक्षा में भेदभाव से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें एससी/एसटी छात्र सेल की स्थापना, समान अवसर सेल, शिकायत निवारण समितियां और उच्च शिक्षण संस्थानों में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति शामिल है.
उन्होंने कहा कि एससी/एसटी छात्रों के हितों की रक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, जिनमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के ‘सख्त मानदंड’ भी शामिल हैं.
गौरतलब है कि बीते साल राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने बताया था कि पिछले पांच सालों में 6,901 ओबीसी, 3,596 एससी और 3,949 एसटी छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ड्रॉपआउट किया. इसी अवधि में 2,544 ओबीसी, 1,362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी छोड़कर गए.
वहीं, पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने भी शैक्षणिक संस्थानों में कथित जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं की याचिका पर इसे ‘बहुत गंभीर मुद्दा’ करार देते हुए यूजीसी से शैक्षणिक संस्थानों में कथित जाति-आधारित भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं की याचिका पर उठाए गए कदमों का विवरण देने लिए कहा था.