आरक्षण के बावजूद आईआईटी, आईआईएम में 80 फीसदी से अधिक शिक्षक सामान्य श्रेणी से: आरटीआई

आईआईटी और आईआईएम सहित लगभग सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत फैकल्टी पद ओबीसी, 15% एससी और 7.5 % एसटी के लिए आरक्षित हैं. हालांकि, सामने आया है कि कम से कम दो आईआईटी और तीन आईआईएम में 90% से अधिक फैकल्टी पदों पर सामान्य वर्ग के लोग काबिज़ हैं.

आईआईटी दिल्ली. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दाखिल एक आवेदन से पता चला है कि प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के फैकल्टी पदों पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सरकार द्वारा अनिवार्य आरक्षण की व्यवस्था के बावजूद सामान्य वर्ग के लोगों का दबदबा बना हुआ है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौड़ किरण कुमार द्वारा सितंबर 2024 में इन संस्थानों से व्यक्तिगत रूप से प्राप्त आरटीआई अनुरोधों के जवाब में ये खुलासा हुआ है कि कम से कम दो आईआईटी और तीन आईआईएम में 90 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों का कब्जा है. इसके अतिरिक्त, छह आईआईटी और चार आईआईएम में यह आंकड़ा 80-90 प्रतिशत के बीच है.

आईआईएम इंदौर में 109 में 106 पद यानी 97.2 प्रतिशत पद सामान्य श्रेणी के लोगों के पास हैं. दिलचस्प बात यह है कि इंदौर में एससी और एसटी की श्रेणी से कोई अध्यापक भी नहीं है. आईआईएम उदयपुर और आईआईएम लखनऊ में भी 90 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं.

ज्ञात हो कि फैकल्टी भर्ती में इसी तरह की असमानताओं को लेकर आईआईएम बेंगलुरु में बाकायदा प्रदर्शन हो चुका है, इस संस्थान में 85 फीसदी फैकल्टी सामान्य श्रेणी से हैं. वहीं, आरटीईआई का जवाब देने वाले  छह आईआईएम में कोई अनुसूचित जाति का फैकल्टी सदस्य नहीं है.

आईआईटी मुंबई और आईआईटी खड़गपुर में 700 अध्यापकों में से 90 फीसदी संख्या सामान्य श्रेणी के अध्यापकों की है. जबकि मंडी, गांधीनगर, कानपुर, गुवाहाटी और दिल्ली आईआईटी में यह आंकड़ा 80-90 फीसदी है.

जिन संस्थानों से जवाब मिला है, उनमें 13 आईआईएम में 82.8 फीसदी फैकल्टी के सदस्य सामान्य श्रेणी से हैं. 5 फीसदी एससी और 1 फीसदी एसटी श्रेणी से जुड़े हैं. जबकि 9.6 फीसदी फैकल्टी सदस्य ओबीसी तबके से हैं. बाकी ईडब्ल्यूएस और शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों के लिए है.

डेटा प्रदान करने वाले 21 आईआईटी में 80 फीसदी फैकल्टी सदस्य सामान्य श्रेणी से हैं. जबकि 6 फीसदी एससी और 1.6 फीसदी एसटी श्रेणी के लिए है. इसके साथ ही इनमें 11.2 फीसदी ओबीसी कटेगरी के शिक्षक हैं. बाकी ईडब्ल्यूएस और विकलांग श्रेणी के लिए आरक्षित हैं.

हालांंकि, कुछ आईआईटी और आईआईएम ने आरक्षण नीतियों का बेहतर कार्यान्वयन भी किया है. आईआईटी पटना में 38 फीसदी फैकल्टी ओबीसी समुदाय से हैं. उसके बाद 22 फीसदी एससी और 13 फीसदी एसटी समुदाय से आते हैं. और यहां केवल 12 फीसदी सामान्य श्रेणी से हैं. आईआईटी भिलाई और इंदौर में भी 50 फीसदी फैकल्टी सामान्य श्रेणी से हैं.

उसी तरह से आईआईएम के बीच आईआईएम जम्मू में 51 फीसदी फैकल्टी सामान्य श्रेणी से हैं. 19 फीसदी एससी, 5 फीसदी एसटी और 23 फीसदी ओबीसी तथा 2 फीसदी ईडब्ल्यूएस कटेगरी से हैं.

जिन संस्थानों ने डाटा मुहैया कराया उनमें 7 आईआईएम में कुल 256 रिक्तियां थीं, जिनमें सभी श्रेणियों में सबसे ज्यादा ओबीसी श्रेणी की थीं जिनकी संख्या 88 है. इसके अलावा 54 पद एससी समुदाय के खाली हैं. जबकि एसटी के 30 पद रिक्त हैं.

इसी तरह से 11 आईआईटी में 1557 रिक्तियां हैं. इनमें सबसे ज्यादा 415 ओबीसी से जुड़ी हैं जबकि 223 एससी और 129 एसटी समुदाय से जुड़ती हैं.

केंद्र की नीति के अनुसार, आईआईटी और आईआईएम सहित लगभग सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत फैकल्टी पद ओबीसी के लिए, 15 प्रतिशत एससी के लिए और 7.5 प्रतिशत एसटी के लिए आरक्षित हैं.

हालांकि, ये डेटा अनुपालन में महत्वपूर्ण अंतराल को इंगित करता है और विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों में हाशिए पर रहने वाले समूहों के प्रतिनिधित्व में चल रही असमानताओं को उजागर करता है.