नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर सैकड़ों शिक्षकों के प्रदर्शन को लेकर इस वक्त सुर्खियों में है. शिक्षकों ने जहां, निदेशक वीके तिवारी पर पक्षपात, मनमाने ढंग से फैकल्टी भर्ती और परिसर में अस्पताल न बनाने का आरोप लगाया है, वहीं प्रशासन ने 85 फैकल्टी सदस्यों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, आईआईटी-खड़गपुर प्रशासन ने संस्थान के तीन विभागों के प्रमुखों को भी बदलने का आदेश जारी किया है, जिन्होंने एक सामूहिक याचिका पर हस्ताक्षर किए थे.
मालूम हो कि प्रशासन और आईआईटी शिक्षक संघ (आईआईटीटीए) के बीच ये संघर्ष इस साल सितंबर में शुरू हुआ था, जब संघ ने कई शिकायतें उठाते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को एक पत्र भेजा था. इस पत्र में संस्थान के वर्तमान निदेशक वीके तिवारी पर अपने कार्यकाल में मनमानी भर्ती और अन्य अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था. साथ ही ये मांग की गई थी कि मंत्रालय जनवरी 2025 में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक नया निदेशक नियुक्त करे.
इसके जवाब में संस्थान ने आईआईटीटीए के चार पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी थी. शिक्षक संघ के अध्यक्ष, महासचिव, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष को 12 नवंबर को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था और उनसे निदेशक के खिलाफ लगाए आरोपों को साबित करने के लिए कहा गया.
सूत्रों के मुताबिक, पदाधिकारियों को एक सप्ताह के भीतर दस्तावेज पेश करने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने एक महीने का समय मांगा. नोटिस जारी करने के प्रशासन के फैसले से तनाव और बढ़ गया है.
86 फैकल्टी सदस्यों को संस्थान ने कारण बताओ नोटिस जारी किया
हालांकि, इस मामले ने तब तूल तब पकड़ लिया, जब 28 नवंबर को 86 फैकल्टी सदस्यों ने संस्थान को एक सामूहिक याचिका लिखकर चेतावनी दी गई कि अगर आईआईटीटीए के चार पदाधिकारियों के कारण बताओ नोटिस को वापस नहीं लिया जाता, तो वे भूख हड़ताल पर चले जाएंगे.
हालांकि, संस्थान ने और सख्त कदम उठाया और 29 नवंबर को इन 86 सदस्यों को भी कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
प्रशासन द्वारा जारी इस नोटिस में लिखा था, ‘आपके कार्य ने संस्थान के आचरण नियमों का उल्लंघन किया है… जिसमें कहा गया है कि कोई भी कर्मचारी किसी भी संयुक्त प्रतिनिधित्व पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं होगा.’
इसके बाद संस्थान द्वारा 3 दिसंबर को जारी एक बयान में कहा गया कि वह सभी आरोपों को खारिज करने के अपने रुख पर कायम है. 800 से अधिक फैकल्टी सदस्यों में से इन 85 लोगों के प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करने की मंशा पर सवालिया निशान खड़ा होता है. इसका उद्देश्य प्रशासन को धमकाना, सामूहिक घृणास्पद सोच को बढ़ावा देना और बिना किसी निश्चित एजेंडे के संस्थान के सामान्य शैक्षणिक कामकाज को बाधित करने के लिए समर्थन जुटाना है.
संस्थान ने कहा, ‘कुछ को छोड़कर अधिकांश हस्ताक्षरकर्ता एजेंडे के उद्देश्य से अनजान हैं. उनके पास कोई सबूत नहीं है.’
इसमें आगे ये भी कहा गया कि यह एक शैक्षणिक संस्थान है और इस प्रकार के प्रचार और दृष्टिकोण को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए.
अखबार के टिप्पणी मांगने वाले ईमेल का तिवारी और निदेशक कार्यालय के मीडिया कार्यकारी ने जवाब नहीं दिया.
तीन विभागाध्यक्षों को पद से हटाया गया
इसी बीच, प्रशासन ने बुधवार (4 दिसंबर) को तीन विभाग- गणित, कृत्रिम मेधा (एआई) और जैव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अध्यक्षों को भी बदल दिया. ये सभी उन फैकल्टी सदस्यों में शामिल हैं जिन्हें नोटिस दिया गया था.
अधिकारियों ने हालांकि यह नहीं बताया कि उन्हें उनके पदों से हटाया जाना हालिया तनाव से जुड़ा है या नहीं और न ही कार्यालय के आदेश में इस कदम की वजह बताई गई है.
सूत्रों का कहना है कि निदेशक को विभागों में बदलाव करने का अधिकार है, लेकिन इन तीनों ने आमतौर पर विभागाध्यक्ष के कार्यकाल के तीन साल पूरे नहीं किए हैं. इसके अलावा, यह कदम ऐसे समय में आया है जब सेमेस्टर परिणाम आ रहे हैं और पीएचडी प्रवेश चल रहे हैं, ऐसे में फैकल्टी व्यस्त है.
प्रशासन के इस सख्त रवैये के खिलाफ करीब 100 फैकल्टी सदस्यों ने बुधवार (4 दिसंबर) और गुरुवार(5 दिसंबर) को काली पट्टी पहनी और परिसर में एक मौन विरोध मार्च निकाला. सूत्रों का कहना है कि फैकल्टी के सदस्य और आईआईटीटीए इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि संस्थान के खिलाफ अदालत में जाना है या नहीं.
सितंबर के पत्र में संघ ने क्या लिखा था?
गौरतलब है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिखे गए आईआईटीटीए के पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्तमान निदेशक तिवारी का कार्यकाल जनवरी 2025 में समाप्त हो रहा है. उनके कार्यकाल के दौरान पक्षपात किया जा रहा है. यहां तक कि एक ही व्यक्ति को बार-बार पदोन्नत करने के लिए कई अच्छे और अधिक विवेकवान वरिष्ठ शिक्षकों को दरकिनार किया जा रहा है.
पत्र में आगे दावा किया गया कि संस्थान के सभी नियमों और कानूनों का उल्लंघन करते हुए डीन, विभागाध्यक्ष और विभिन्न समितियों के अध्यक्ष जैसे प्रमुख प्रशासनिक पदों का चयन मनमाने ढंग से किया गया है. फैकल्टी में मनमानी तरीके से भर्ती की जा रही. साथ ही बदला लेने की भावना से परेशान होकर कई मौजूदा सदस्य संस्थान छोड़कर चले गए हैं.
पत्र में यह इस बात का जिक्र भी था कि संस्थान इसके परिसर के अंदर मल्टी सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल शुरू करने में भी विफल रहा है.