भाजपा ने दिया था फ्रांसीसी मीडिया रिपोर्ट का हवाला, संस्थान ने ‘फ़र्ज़ी ख़बर’ फैलाने के लिए पार्टी की निंदा की

भाजपा ने फ्रांसीसी मीडिया संस्थान मेदियापार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ओसीसीआरपी और कांग्रेस पर मोदी सरकार गिराने की साज़िश का आरोप लगाया है. अब संस्थान ने कहा है कि भाजपा ने उसकी रिपोर्ट का ग़लत इस्तेमाल ऐसी फ़र्ज़ी खबरें फैलाने के लिए किया, जो उसने कभी प्रकाशित नहीं की.

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मेदियापार का लोगो. (फोटो साभार: मेदियापार वेबसाइट)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बीते दिनों फ्रांसीसी खोजी मीडिया आउटलेट ‘मेदियापार’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए अमेरिका और खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय मीडिया नेटवर्क– ओसीसीआरपी पर मोदी सरकार को अस्थिर करने और संसद न चलने देने की साजिश रचने का आरोप लगाया था.

इस रिपोर्ट को आधार बनाकर भाजपा ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को अव्वल दर्जे का ‘गद्दार’ तक कह दिया था, जिसके बाद संसद के अंदर और बाहर काफी हंगामा देखने को मिला था.

रिपोर्ट के मुताबिक, अब फ्रांस के मीडिया आउटलेट मेदियापार ने खुद अपनी रिपोर्टिंग का गलत इस्तेमाल करने के लिए भाजपा की निंदा की है और कहा है कि ऐसा कोई तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, जिससे अमेरिकी विदेश विभाग, अरबपति जॉर्ज सोरोस और भारतीय विपक्ष की मिलीभगत द्वारा भारत सरकार को अस्थिर करने के आरोप साबित होते हों.

मालूम हो कि भाजपा ने संसद और अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर ओसीसीआरपी के बारे में प्रकाशित मेदियापार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस और उसके नेताओं पर सोरोस और अमेरिकी विदेश विभाग के कथित समर्थन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के का आरोप लगाया था.

मेदियापार की प्रकाशक और निदेशक कैरीन फ़ूटो ने रविवार (7 दिसंबर) को एक बयान में कहा, ‘मेदियापार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा द्वारा ओसीसीआरपी के बारे में अपने हाल ही में प्रकाशित खोजी लेख को राजनीतिक एजेंडे के लिए गलत इस्तेमाल करने और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करने की कड़ी निंदा करता है.’

उन्होंने आगे कहा कि भाजपा ने मेदियापार के लेख का गलत इस्तेमाल ऐसी फर्जी खबरें फैलाने के लिए किया, जिसे हमने कभी प्रकाशित नहीं किया.’

मेदियापार के प्रकाशक ने कहा, ‘भाजपा द्वारा प्रचारित साजिश का समर्थन करने वाले कोई तथ्य उपलब्ध नहीं हैं.’ इसके साथ ही उन्होंने ‘भारत और दुनिया के उन पत्रकारों के साथ अपना पूरा समर्थन जाहिर किया, जो भारत में रिपोर्टिंग और पड़ताल करते हैं.’

ज्ञात हो कि इससे पहले गुरुवार (5 दिसंबर) को भाजपा सांसदों ने लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आलोचना करने के लिए मेदियापार की रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें उन पर ओसीसीआरपी और अमेरिकी अरबपति सोरोस के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया गया था.

इसे पार्टी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भी दोहराया था और आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी पर लक्षित हमलों और ‘भारत को अस्थिर करने’ के प्रयासों के पीछे अमेरिकी विदेश विभाग का हाथ है. इसके लिए मेदियापार की एक रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें दावा किया गया है कि ओसीसीआरपी को अमेरिकी विदेश विभाग के यूएसएआईडी द्वारा फंड मिलता है.

भाजपा सांसद संबित पात्रा ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी ये आरोप दोहराए थे.

इन आरोपों के संबंध में भारत में अमेरिकी दूतावास ने शनिवार (7 दिसंबर) को एक बयान जारी कर भाजपा के इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि यह निराशाजनक है कि भारत में सत्तारूढ़ पार्टी इस तरह के आरोप लगा रही है.

गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है, जब मेदियापार और भाजपा आमने-सामने हैं.

इससे पहले 2018 में मेदियापार ने भारत को 36 रफाल लड़ाकू जेट की बिक्री में क्रोनी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विशेष जांच रिपोर्टों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी, जिसे तब की मोदी सरकार और भाजपा दोनों ने खारिज कर दिया था.

रफाल मुद्दे पर मेदियापार की आखिरी रिपोर्ट 14 दिसंबर 2023 में आई थी, जब संगठन ने अपनी जांच में दावा किया था कि भारत भ्रष्टाचार के आरोपों में फ्रांसीसी न्यायाधीशों द्वारा जांच को रोक रहा था.

मेदियापार ने 14 दिसंबर 2023 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था, ‘यह अब एक स्थापित तथ्य है: अति-राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भारत को फ्रांसीसी रक्षा और विमानन कंपनी दासो द्वारा निर्मित 36 रफाल लड़ाकू विमानों की बिक्री से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले को हर कीमत पर दफनाने की इच्छुक है.’

ताज़ा मामले में एम्स्टर्डम स्थित ओसीसीआरपी में मेदियापार की नवीनतम जांच काफी हद तक सार्वजनिक दस्तावेजों और ओसीसीआरपी के संस्थापक ड्रू सुलिवन और कई वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों द्वारा जर्मन ब्रॉडकास्टर एनडीआर को दिए गए साक्षात्कारों पर निर्भर थी. हालांकि, एनडीआर ने बाद में इस जांच के प्रकाशन से खुद को अलग कर लिया.

मेदियापार की रिपोर्ट में कहा गया है कि ओसीसीआरपी ने कई मामलों में अमेरिकी सरकारी चंदे को स्वीकार किया है, जिसे वह कुछ देशों में पड़ताल पर खर्च करने के लिए बाध्य है, जिसे अमेरिका प्राथमिकता में रखता है.

इसमें अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं की रूपरेखा दी गई है, जो रूस, वेनेजुएला, माल्टा और साइप्रस में टैक्स हेवेन और मैक्सिको में ड्रग कार्टेल पर केंद्रित थी.

हाहालांकि, मेदियापार की रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग के भारत को निशाना बनाने वाले किसी भी अनुदान का जिक्र नहीं है.

मेदियापार के लेख के प्रकाशन के बाद ओसीसीआरपी ने मेदियापार के इन आरोपों का खंडन करते हुए इस रिपोर्ट को ‘बिल्कुल गलत’ बताया था.

इस संबंध में ओसीसीआरपी ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान प्रकाशित कर कर कहा था कि ओसीसीआरपी की पत्रकारिता पर कोई दबाव नहीं है और कोई भी चंदादाता हमारी रिपोर्टिंग को प्रभावित नहीं करता है.’

इसने आगे कहा, ‘डोनेशन से चलने वाले मीडिया संगठन के तौर पर ओसीसीआरपी ने अपनी संपादकीय प्रक्रिया में कई सेफगार्ड इस्तेमाल किए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम स्वतंत्रता बनाए रखें और दुनिया भर में हमारे पत्रकार और सदस्य केंद्र उन ख़बरों को सामने ला सकें, जो उनके अनुसार महत्वपूर्ण और बताने लायक हैं.’