2013 बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम को अंतरिम ज़मानत दी

2013 में सूरत की एक महिला ने आसाराम और सात अन्य के ख़िलाफ़ बलात्कार का मामला दर्ज कराया था, जिसके बाद साल 2023 में गुजरात की एक अदालत ने आसाराम को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत दी है.

आसाराम. (फाइल फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी) को स्वयंभू बाबा आसाराम को 2013 में एक पूर्व महिला शिष्य के बलात्कार मामले में मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत दे दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, जस्टिस एमएम.सुंदरेश और जस्टिस राजेश निंदल की पीठ से आसाराम को 31 मार्च तक अंतरिम ज़मानत मिली है.

मालूम हो कि 86 वर्षीय आसाराम को स्वास्थ्य कारणों के चलते ये राहत दी गई है. अपनी गिरफ्तारी के लगभग एक दशक बाद वे पहली बार जमानत पर बाहर आएंगे. हालांकि, कोर्ट ने आसाराम को निर्देश दिए हैं कि वे ज़मानत पर जेल से बाहर रहने के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे. इसके अलावा वो अपने अनुयायियों से भी नहीं मिल सकेंगे.

ज्ञात हो कि सूरत की एक महिला ने 2013 में आसाराम और सात अन्य लोगों के ख़िलाफ़ बलात्कार और अवैध रूप से बंधक बनाने का मामला दर्ज कराया था, जिसके बाद साल 2023 में गुजरात के गांधीनगर की एक अदालत ने स्वयंभू बाबा आसाराम को इस मामले में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

इस मामले में अहमदाबाद के चांदखेड़ा थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, आसाराम ने 2001 से 2006 के बीच सूरत की रहने वाली महिला से कई बार बलात्कार किया था, जब वह शहर के बाहरी इलाके मोटेरा में स्थित उसके आश्रम में रहती थी.

अदालत ने अभियोजन के मामले को स्वीकार करते हुए आसाराम को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (2) (सी), 377 (अप्राकृतिक यौनाचार) और अवैध रूप से बंधक बनाने से जुड़ी धाराओं के अलावा कई अन्य सुसंगत धाराओं के तहत दोषी ठहराया था.

हालांकि, तब अदालत ने सबूतों के अभाव में आसाराम की पत्नी समेत छह अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था.

आसाराम ने आजीवन कारावास की सजा को रद्द करने की मांग करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद आसाराम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. शीर्ष अदालत ने इस मामले में पिछले साल 22 नवंबर को गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया था.

आसाराम बापू की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, राजेश गुलाब इनामदार और शाश्वत आनंद ने अदालत से केस की मेरिट के साथ आसाराम की मेडिकल स्थिति देखने का अनुरोध किया.

उन्होंने तर्क दिया कि दोषसिद्धि बिना सबूतों की पुष्टि के केवल अभियोजन पक्ष की गवाही पर आधारित थी. आसाराम के वकीलों ने अभियोजन पक्ष के मामले में विसंगतियों की ओर इशारा भी किया. हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका इरादा इस मामले में गुण-दोष पर जाने और सजा को निलंबित करने का नहीं है. अदालत ने इस राहत को केवल मेडिकल आधार तक ही सीमित रखा.

आसाराम के वकील कामत ने कहा कि उनकी बढ़ती उम्र और अन्य बीमारियां उनके जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं और अदालत से जेल के बाहर इलाज के लिए अंतरिम जमानत देने का आग्रह किया.

गुजरात राज्य की ओर से पेश होते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हिरासत में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं.

गौरतलब है कि आसाराम को इंदौर से गिरफ्तार कर एक सितंबर 2013 को जोधपुर लाया गया था और जेल भेज दिया गया था. इसके बाद अप्रैल 2018 में उसे अदालत ने उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

आसाराम वर्तमान में जोधपुर जेल में बंद है. एनडीटीवी के अनुसार, जेल में आजीवन कारावास के अलावा उस पर दो अन्य कानूनों के तहत भी आरोप लगाए गए है, जिसके लिए उसे और 20 साल की जेल हुई है.

मालूम हो कि अप्रैल 2022 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में आसाराम के आश्रम में एक लड़की का शव मिलने के बाद उसके द्वारा बलात्कार की शिकार शाहजहांपुर की लड़की के पिता ने अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी. पीड़िता के पिता ने दावा किया था कि 21 मार्च 2022 को आसाराम के एक अनुयायी द्वारा उनके घर के बाहर धमकी भरा पत्र भी छोड़ा गया था, जिसे लेकर उनका पूरा परिवार खौफ में आ गया था.

यह मामला गोंडा जिले से जुड़ा था, जहां आठ अप्रैल 2022 को तड़के बहराइच रोड पर स्थित आसाराम के आश्रम के परिसर में खड़ी एक कार से एक लड़की का शव बरामद किया गया था.

ज्ञात हो कि आसाराम का बेटा नारायण साई भी समान आरोपों में दोषी पाया गया था. अक्टूबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम के बेटे एवं बलात्कार के दोषी नारायण साई को 14 दिन की फर्लो दिए जाने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया था.

सूरत की एक अदालत ने साई को 26 अप्रैल, 2019 को आईपीसी की धाराओं 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506 (2) (आपराधिक धमकी) और 120बी (षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

साई और उसके पिता आसाराम के खिलाफ सूरत की रहने वाली दो बहनों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था.