सिक्किम: बिना जन सुनवाई के तीस्ता बांध को पुनर्निर्माण के लिए पर्यावरण मंत्रालय की मंज़ूरी

वर्ष 2023 में सिक्किम में दक्षिण ल्होनक ग्लेशियल झील फटने से बाढ़ आई थी, जिससे चार ज़िलों में 40 लोगों की मौत हो गई थी और 1,200 मेगावाट तीस्ता-III चुंगथांग बांध भी बह गया था. अब नई जन सुनवाई के बिना पर्यावरण मंत्रालय के पैनल ने इसकी जगह पर 118.64 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाने का प्रस्ताव मंज़ूर किया है.

तीस्ता नदी. (प्रतीकात्मक फोटो: विकीपीडिया)

नई दिल्ली: अक्टूबर 2023 में सिक्किम के कई हिस्सों में ग्लेशियल झील के फटने से आई बाढ़ (जीएलओएफ) ने तबाही मचाई थी और 1200 मेगावाट की तीस्ता-III पनबिजली परियोजना का 60 मीटर ऊंचा रॉकफिल कंक्रीट बांध बह गया था. इसके एक साल बाद पर्यावरण मंत्रालय के पैनल ने इसकी जगह पर 118.64 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

उल्लेखनीय है कि यह काम नई जन सुनवाई के बिना किया गया है और बांध के डिजाइन पहलुओं को अभी मंजूरी मिलनी बाकी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, परियोजना संचालक मेसर्स सिक्किम ऊर्जा लिमिटेड के प्रस्ताव को पर्यावरण मंत्रालय की नदी घाटी और जलविद्युत परियोजनाओं पर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा 10 जनवरी को मौजूदा परियोजनाओं में ‘विस्तार या आधुनिकीकरण’ के प्रावधानों के तहत मंजूरी दी गई है.

4 अक्टूबर, 2023 को सिक्किम में दक्षिण ल्होनक ग्लेशियल झील फटने से बाढ़ आई थी, जिससे राज्य के चार जिलों में 40 लोगों की मौत हो गई थी. बाढ़ से 55 किलोमीटर नीचे स्थित 1,200 मेगावाट तीस्ता-III चुंगथांग बांध को भी बह गया था.

नए बांध के लिए ईएसी की मंजूरी उस चिंता की पृष्ठभूमि में आई है, जो पैनल ने स्वयं संरचना की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर जताई थी.

दिसंबर 2024 के अंत में ईएसी उप-समिति जिसमें पैनल के अध्यक्ष, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के एक अधिकारी, मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी और केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के एक अधिकारी शामिल थे, ने पहले के कंक्रीट रॉक-भरे बांध के स्थान पर प्रस्तावित कंक्रीट ग्रेविटी बांध (gravity dam) की योजना और व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिए साइट का दौरा किया.

कंक्रीट ग्रेविटी बांध पूरी तरह से कंक्रीट से बना होता है और इसे आम तौर पर कंक्रीट रॉकफिल बांध से ज़्यादा मज़बूत माना जाता है, लेकिन इसका निर्माण ज़्यादा महंगा होता है. कंक्रीट रॉकफिल बांध में कंक्रीट का एक कोर होता है जो रॉकफिल सामग्री से घिरा होता है.

दिसंबर के साइट दौरे के कुछ दिनों बाद 10 जनवरी 2025 को हुई बैठक में ईएसी ने सिक्किम ऊर्जा के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जबकि उसने नोट किया – उस दिन की बैठक के मिनट्स के अनुसार – सीडब्ल्यूसी के डिजाइन निदेशालय ने पीएमएफ (संभावित अधिकतम बाढ़) और डायवर्जन बाढ़ का संशोधित अध्ययन करने और सीडब्ल्यूसी के संबंधित जल विज्ञान निदेशालय के माध्यम से इसे मंजूरी दिलाने का सुझाव दिया है.

ईएसी ने नए बांध के लिए शर्तें भी निर्धारित कीं- जिसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना और हिमनद झीलों और भूस्खलन स्थलों का मानचित्रण शामिल है – जबकि यह भी कहा गया कि डिजाइन के पहलुओं को अभी सीडब्ल्यूसी, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान स्टेशन द्वारा अनुमोदित किया जाना बाकी है.

प्रस्ताव के दस्तावेजों और 10 जनवरी की बैठक के मिनट्स से पता चला है कि ईएसी की मुख्य चिंताओं में से एक अक्टूबर 2023 जीएलओएफ जैसी घटना की स्थिति में बाढ़ को झेलने के लिए नए बांध की क्षमता पर केंद्रित थी.

हालांकि, अपने जवाब में सिक्किम ऊर्जा लिमिटेड ने कहा कि प्रस्तावित बांध की स्पिलवे क्षमता (जो अतिरिक्त पानी की निकासी होने देती है) को 7,000 क्यूमेक (घन मीटर/सेकेंड) से बढ़ाकर 19,946 क्यूमेक कर दिया गया है, जबकि दोनों संभावनाओं – संभावित अधिकतम बाढ़ और एक अन्य जीएलओएफ घटना- को ध्यान में रखा गया है.

2000 के दशक के मध्य से अंत तक- जब परियोजना का मूल्यांकन किया जा रहा था, तो चेतावनी दी गई थी कि कम स्पिलवे क्षमता के कारण पानी के ऊपर जाने का खतरा है, और अंततः 4 अक्टूबर, 2023 की सुबह यही हुआ, जब दक्षिण ल्होनक झील फट गई.

जब ईएसी ने सिक्किम ऊर्जा से नदी के ऊपर की ओर स्थित ग्लेशियल झीलों के खतरों के बारे में पूछा, तो कंपनी ने दावा किया कि जलग्रहण क्षेत्र में पहचानी गई 119 ग्लेशियल झीलों में से 10 हेक्टेयर या उससे अधिक के विस्तार वाली 50 बड़ी झीलों को मूल्यांकन के लिए चुना गया था.

कंपनी ने ईएसी को बताया, ‘विस्तृत अध्ययन के बाद जल प्रसार क्षेत्र (40 हेक्टेयर या उससे अधिक), मात्रा और दूरी के आधार पर 13 संभावित खतरनाक ग्लेशियल झीलों की पहचान की गई.’

ईएसी के मिनट्स में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ग्लेशियल झीलों पर अध्ययन किसने किया है.

अखबार के अनुसार, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के स्वतंत्र विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने आपदा के इतिहास वाली परियोजना को मंजूरी देने में ‘जल्दबाजी’ पर सवाल उठाया, खासकर तब जब संशोधित संभावित अधिकतम बाढ़ अध्ययनों का इंतजार किया जा रहा था.

ठक्कर ने कहा, ‘इस प्रस्ताव को बारिश के बदलते पैटर्न, जीएलओएफ की कमज़ोरियों के संदर्भ में एक नए प्रस्ताव के रूप में माना जाना चाहिए. जब ​​केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण और सीडब्ल्यूसी इस पर नए तरीके से विचार कर रहे हैं, तो ईएसी को नए सिरे से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का आदेश देना चाहिए था. वे खुद भी बाढ़ के लिए पुराने डेटा का इस्तेमाल कर रहे हैं. हाल के डेटा के आधार पर बाढ़ के उच्च स्तर के लिए नए सिरे से गणना होनी चाहिए.’

ईएसी ने इस आधार पर पुनः सार्वजनिक सुनवाई की मांग नहीं की कि इसमें कोई नया भूमि अधिग्रहण या विस्थापन शामिल नहीं है और सार्वजनिक सुनवाई अगस्त 2006 में आयोजित की गई थी.