सुप्रीम कोर्ट ने छह महानगरों में मैनुअल सीवर सफाई, स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाया

सुप्रीम कोर्ट ने देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन में अस्पष्टता को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सभी शीर्ष महानगरों- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद में मैनुअल सीवर सफाई और मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/@manualscavenging1)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 जनवरी) को देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग) के उन्मूलन में अस्पष्टता को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई और छह महानगरों में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार और शुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 (Dry Latrines (Prohibition) Act) का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि वह अनुपालन की मांग से ‘तंग आ गया’ है, जो केवल अकादमिक प्रकृति की है.

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘इसलिए हम आदेश देते हैं कि सभी शीर्ष महानगरीय शहरों – दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद में मैनुअल सीवर सफाई और मैनुअल स्कैवेंजिंग बंद कर दी जाएगी.’

अदालत ने प्रत्येक महानगरीय शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी या समकक्ष पद के अधिकारी को 13 फरवरी तक एक स्पष्ट हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह विवरण हो कि उनके शहर में यह प्रथा कैसे और कब रोकी जाएगी.

अदालत का यह आदेश बलराम सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने 1993 के अधिनियम और इसके अब तक क्रियान्वयन न होने के संबंध में मुद्दे उठाए थे.

अदालत ने कहा, ‘क्या हम आज यह कह सकते हैं कि आज से हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है?…हम आदेश से तंग आ चुके हैं. हम निर्देश दे रहे हैं. या तो ऐसा करो या परिणाम भुगतो.’

सरकार की निष्क्रियता

पिछले साल 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाथ से मैनुअल स्केवेंजिंग और सीवर, सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई की खतरनाक प्रथा को समाप्त करने के लिए ‘किसी भी हद तक’ जाने की बात कही थी.

जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार की पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह दो सप्ताह के भीतर संबंधित राज्यों के हितधारकों के साथ केंद्रीय निगरानी समिति की बैठक बुलाए ताकि अदालत के अक्टूबर 2023 के आदेश के अनुपालन की सीमा का आकलन किया जा सके.

2023 के आदेश के आधार पर केंद्र सरकार ने एक स्थिति रिपोर्ट दायर की थी, जिसे अदालत ने ‘बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं’ पाया था.

बुधवार (29 जनवरी) को केंद्र सरकार ने एक नया हलफनामा दाखिल किया जिसमें कहा गया कि देश के 775 जिलों में से 456 में अब हाथ से मैला ढोने की प्रथा नहीं है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जब जस्टिस कुमार ने पूछा कि एनसीटी दिल्ली ने कैसा प्रदर्शन किया है, तो उन्हें बताया गया कि उसने आदेश का पालन नहीं किया है.

एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेशर ने कहा कि डेटा एक ‘गलत तस्वीर’ पेश करता है क्योंकि कुछ जिलों ने कानून द्वारा अनिवार्य समिति का गठन नहीं किया है, जबकि अन्य ने समितियों की स्थापना से पहले डेटा प्रदान किया था.

परमेशर ने कहा कि केंद्रीय समिति की पिछली बैठक 19 अक्टूबर, 2024 को हुई थी. उन्होंने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक समिति गठित करने और मैनुअल स्कैवेंजरों का राष्ट्रीय सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

अक्टूबर 2023 के अपने आदेश में अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि उनके दिशानिर्देश और रूपरेखा केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों को प्रतिबिंबित करें.

आदेश में कहा गया था, ‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि सभी विभाग, एजेंसियां, निगम और अन्य एजेंसियां ​​(चाहे किसी भी नाम से पुकारी जाएं) यह सुनिश्चित करें कि केंद्र द्वारा तैयार दिशानिर्देश और निर्देश उनके अपने दिशानिर्देशों और निर्देशों में सन्निहित हों; राज्यों को विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि ऐसे निर्देश सभी नगर पालिकाओं और उनके क्षेत्रों में काम करने वाले स्थानीय निकायों पर लागू हों.’

परमेशर ने कहा कि ये दिशानिर्देश आज तक लागू नहीं हुए हैं.

‘ख़ुद से सीवर में प्रवेश करने वाले पेशेवर’

वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने केंद्र सरकार के हलफनामे पर सवाल उठाया, जिसमें ऐसे मामलों का हवाला दिया गया है, जहां किसी व्यक्ति को सीवर में प्रवेश करना पड़ता है, अगर वह इतना छोटा हो कि उसे किसी अन्य तरीके से साफ नहीं किया जा सकता.

कोठारी ने पूछा, ‘उन्होंने (अपने हलफनामे में) ‘ख़ुद से सीवर में प्रवेश करने वाले पेशेवर’ (motivated sewer entry professionals) का उल्लेख किया है. क्या हम उन लोगों को, जो मारे जा रहे हैं, इस नाम से पुकारते हैं?’

अतिरिक्त महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने जवाब दिया कि सभी राज्य इस प्रथा को समाप्त करने की स्थिति में नहीं हैं और इसीलिए अदालत के आदेश को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए.

जस्टिस कुमार ने कहा कि जब तक मैनुअल स्कैवेंजिंग पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाती, तब तक लोगों को सीवर में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और यदि वे ऐसा करते हैं, तो उनके पास सभी पर्याप्त उपकरण होने चाहिए.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.