उत्तराखंड: लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण के लिए धार्मिक नेता का प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य

यूसीसी नियम के अनुसार, सभी लिव-इन रिलेशनशिप को शुरू होने के एक महीने के भीतर पंजीकृत करना होगा. जोड़े को एक 16 पृष्ठ का फॉर्म भरना होगा और धार्मिक नेता से एक प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा, जिसमें यह बताया जाएगा कि यदि वे विवाह करना चाहते हैं तो वे इसके योग्य हैं.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: उत्तराखंड सरकार ने सोमवार (27 जनवरी) को लिव-इन रिलेशनशिप को विनियमित करने के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) नियम लागू किए, जिसके तहत अन्य बातों के अलावा जोड़े को एक 16 पृष्ठ का फॉर्म भरना होगा और धार्मिक नेता से एक प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा, जिसमें यह दर्शाया जाएगा कि यदि वे विवाह करना चाहते हैं तो वे इसके योग्य हैं.

मालूम हो कि उत्तराखंड ऐसा कानून लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है.

यूसीसी नियमों के अनुसार, सभी लिव-इन रिलेशनशिप को शुरू होने के एक महीने के भीतर पंजीकृत होना चाहिए. नियमों के अनुसार लिव-इन रिलेशनशिप को एक पुरुष और एक महिला के बीच के रिश्ते के रूप में परिभाषित किया गया है जो विवाह की प्रकृति के रिश्ते के माध्यम से एक साझा घर में रहते हैं.

हालांकि, केवल विषमलैंगिक जोड़ों को ही इसके दायरे में आते हैं, जिसमें विवाह के लिए 74 निषिद्ध संबंध शामिल हैं, जिनमें पहले चचेरे भाई-बहन भी शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, संबंध सहमति से होना चाहिए, बिना किसी बल, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव न हो.

यूसीसी नियमों के मुख्य प्रावधान

पंजीकरण प्रक्रिया: जोड़े ऑनलाइन या ऑफलाइन पंजीकरण करा सकते हैं, उम्र, निवास और पिछले संबंधों का प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं.

प्रमाणपत्र की आवश्यकता: जोड़े की शादी के लिए पात्रता की पुष्टि करने के लिए धार्मिक नेता से प्रमाण पत्र आवश्यक है.

पंजीकरण के लाभ

भरण-पोषण अधिकार: यदि किसी महिला को उसके साथ रहने वाले साथी ने छोड़ दिया है, तो वह भरण-पोषण की मांग कर सकती है.

बच्चों की वैधता: लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को वैध माना जाता है और वे संपत्ति के वारिस हो सकते हैं.

किराएदारी अधिकार: मकान मालिक केवल इसलिए किराएदारी से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि दंपति विवाहित नहीं हैं, बशर्ते उनके पास लिव-इन रिलेशनशिप प्रमाणपत्र हो.

पंजीकरण न कराने के परिणाम

जेल की सजा: पंजीकरण न कराने पर तीन महीने तक की जेल या 10,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.

झूठी शिकायतों के लिए सजा: झूठी शिकायतें दर्ज करने वाले व्यक्तियों को जुर्माना और दंड का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा, रजिस्ट्रार के पास लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिए नोटिस जारी करने का अधिकार है, या तो अपनी पहल पर या किसी शिकायत के जवाब में. यदि व्यक्ति इस नोटिस का पालन करने में विफल रहता है, तो उसे कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है. एक मजिस्ट्रेट जुर्माना लगा सकता है, जिसमें छह महीने तक की जेल की सजा, 25,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों शामिल हो सकते हैं.

राजस्थान

इस बीच, राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार (29 जनवरी) को राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य किया जाए.

स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, इस समझौते में यह बताया जाना चाहिए कि वे रिश्ते से पैदा होने वाले बच्चों की देखभाल कैसे करेंगे, साथ ही अगर महिला साथी कमाई नहीं कर रही है तो पुरुष साथी वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना बना रहा है.

अदालत ने राज्य सरकार को कानून बनने तक लिव-इन संबंधों को पंजीकृत करने के लिए एक प्राधिकरण या न्यायाधिकरण स्थापित करने का भी निर्देश दिया. जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने इस बात पर जोर दिया कि समाज लिव-इन संबंधों को अनैतिक मान सकता है, लेकिन वे अवैध नहीं हैं. उन्होंने ऐसे संबंधों से पैदा हुए नाबालिग बच्चों के अधिकारों की रक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला, खासकर उन मामलों में जहां मां कमजोर हो सकती है.

न्यायाधीश के हवाले से कहा गया, ‘ऐसे संबंधों से पैदा हुए नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण उनके माता-पिता और विशेष रूप से पिता द्वारा किया जाना अपेक्षित है, क्योंकि ऐसे संबंधों से उत्पन्न महिलाएं भी अक्सर पीड़ित पाई जाती हैं.’

उच्च न्यायालय ने कहा कि कई लिव-इन जोड़े अपने परिवारों और समाज से स्वीकृति न मिलने के कारण न्यायपालिका का रुख करते हैं. इस पर ध्यान देने के लिए न्यायालय ने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों को लिव-इन संबंधों को विनियमित करने के लिए कानून बनाना चाहिए.

दिलचस्प बात यह है कि न्यायाधीश ने बताया कि उत्तराखंड ने पहले ही अपने यूसीसी के हिस्से के रूप में लिव-इन संबंधों पर नियम जारी कर दिए हैं और अन्य राज्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया है.

राज्य सरकार को 1 मार्च तक अदालत में अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है. इस रिपोर्ट में पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना और लिव-इन रिश्तों को नियंत्रित करने के लिए कानून का मसौदा तैयार करने सहित अदालत के निर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण होना चाहिए.