पुलिस द्वारा यौन उत्पीड़न मामले में पत्रकारों के फोन ज़ब्त करना प्रेस पर हमला है: मद्रास हाईकोर्ट

अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले में पत्रकारों के मोबाइल फोन ज़ब्त करने के लिए एक महिला विशेष जांच दल को दोषी पाते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि पत्रकारों को उनके व्यक्तिगत और निजी डेटा तक पहुंच प्रदान करने के लिए मजबूर करना उन पर अत्याचार करने के अलावा और कुछ नहीं है.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

नई दिल्ली: अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले में पत्रकारों के मोबाइल फोन जब्त करने के लिए एक महिला विशेष जांच दल (एसआईटी) को दोषी पाते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने प्रेस की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए एक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि निगरानी का डर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ, मीडिया पर हमला है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जी के इलानथिरायन ने कहा, ‘पत्रकारों को उनके व्यक्तिगत और निजी डेटा तक पहुंच प्रदान करने के लिए मजबूर करना और उनसे निजी और गोपनीय जानकारी प्रकट करने के लिए कहना, प्रेस पर हमला करने और निगरानी के डर से उन पर अत्याचार करने के अलावा और कुछ नहीं है.’

उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता और गोपनीयता मौलिक रूप से एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं.

चार पत्रकारों ने एसआईटी की कार्रवाई को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी. जिसमें पत्रकारों ने आरोप लगाया कि उनके स्मार्टफोन जब्त कर लिए गए और उनसे उनके निजी और पेशेवर जीवन के बारे में कई तरह के सवाल पूछे गए, जिसमें मामले में एफआईआर के ‘लीक’ के संबंध में उनके स्रोतों का खुलासा करने की मांग भी शामिल थी.

अदालत ने इस बात की पुष्टि की कि पत्रकारों को प्रेस परिषद अधिनियम के तहत इस तरह के हस्तक्षेप से सुरक्षा प्राप्त है. आदेश में कहा गया, ‘इसके बाद भी जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ताओं को अपने डिवाइस दिखाने के लिए मजबूर किया और उन्हें जब्त कर लिया. वास्तव में उन डिवाइस में एफआईआर दर्ज करने और एफआईआर को सार्वजनिक प्लेटफार्म में अपलोड करने से संबंधित कोई जानकारी नहीं थी.’

आदेश में याचिका का हवाला देते हुए कहा गया कि पत्रकारों को ‘यह भी धमकी दी गई थी कि अगर वे किसी क्राइम रिपोर्टर द्वारा प्रसारित समाचार का स्क्रीनशॉट नहीं देते हैं तो उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया जाएगा.’

एसआईटी अन्ना विश्वविद्यालय में एक इंजीनियरिंग छात्रा के कथित यौन उत्पीड़न की जांच कर रही थी. अपनी जांच के हिस्से के रूप में इसने पत्रकारों को बुलाया और उन्हें 50 से अधिक सवालों के जवाब देने का निर्देश दिया – जिनमें से कई, जैसा कि अदालत ने कहा, मामले से संबंधित नहीं थे. पत्रकारों से उनकी विदेश यात्राओं, उनके और उनके परिवार के सदस्यों के स्वामित्व वाली संपत्तियों और अन्य व्यक्तिगत मामलों के बारे में विवरण देने के लिए कहा गया था.

प्रश्नावली की समीक्षा करने के बाद जस्टिस इलांथिरयन ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं को दी गई प्रश्नावली के अवलोकन से पता चला कि अधिकांश प्रश्न याचिकाकर्ताओं की निजी जानकारी के संबंध में थे और यह भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है. निजी जानकारी जैसे कि उनके सोशल मीडिया हैंडल, उनके दोस्तों, रिश्तेदारों, परिजनों, उनके गोपनीय स्रोतों आदि के व्यक्तिगत विवरण. निजता मानवीय गरिमा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो किसी व्यक्ति की पसंद करने और अपने जीवन को नियंत्रित करने की स्वतंत्रता की रक्षा करती है.’

अदालत ने कहा कि एसआईटी की कार्रवाई असंगत और अनुचित थी तथा जांचकर्ताओं ने अपने कानूनी अधिकार का अतिक्रमण किया था.

मामले का एक मुख्य पहलू यौन उत्पीड़न के एक संवेदनशील मामले में एफआईआर के कथित ‘लीक’ के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके बारे में एसआईटी ने दावा किया था कि पत्रकारों के डिवाइस जब्त करना ज़रूरी था. हालांकि, अदालत ने एसआईटी के दृष्टिकोण में स्पष्ट चूक पाई.

आदेश में कहा गया है, ‘जांच के दौरान एसआईटी ने एफआईआर लिखने वाले और आधिकारिक पोर्टल पर एफआईआर अपलोड करने वाले व्यक्तियों के बारे में भी पूछताछ नहीं की. इसके अलावा उन्हें कोई समन भी जारी नहीं किया गया… यह कहना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस अधिकारी ने बस इतना कहा कि एफआईआर दर्ज करते समय तकनीकी गड़बड़ियों के कारण एफआईआर पुलिस के आधिकारिक वेब पोर्टल पर अपलोड हो गई. इसलिए, आधिकारिक वेबसाइट पर एफआईआर अपलोड करने वाले व्यक्ति और एफआईआर लिखने वाले व्यक्ति की जांच किए बिना ही उन्होंने याचिकाकर्ताओं से पूछताछ की. इसके अलावा एफआईआर लिखने वाले की अनुमति के बिना, एफआईआर आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड नहीं की जा सकती थी.’

हालांकि, आदेश में यह कहा गया है कि लीक की वास्तविक जिम्मेदारी पुलिस के स्तर पर हो सकती है, लेकिन इसमें एसआईटी की कार्रवाई से प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को भी स्वीकार किया गया है और एसआईटी को निर्देश दिया गया है कि वह 10 फरवरी तक पत्रकारों से संबंधित अपनी जांच पूरी कर ले, उनके फोन और अन्य जब्त किए गए उपकरण लौटा दे और उनसे उनके व्यक्तिगत विवरण के बारे में पूछताछ न करे.

अदालत ने एसआईटी को जांच की कार्यवाही का ब्यौरा सामान्य डायरी और केस डायरी में दर्ज करने को भी कहा. आदेश में एसआईटी को जांच की आड़ में याचिकाकर्ताओं को परेशान करने से भी रोका गया और एफआईआर लीक से असंबंधित अप्रासंगिक सवाल पूछने से भी रोका गया.