नई दिल्ली: नई दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कई किस्म की अनियमितताओं से घिरा हुआ है– भ्रष्टाचार के आरोपों से लेकर यौन शोषण के आरोपी अधिकारी को पदोन्नति. स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एम्स के निदेशक को ख़त लिखकर जांच रिपोर्ट मांग रहा है, लेकिन देश का प्रमुख चिकित्सा संस्थान चुप बैठा है.
एम्स पर गहराते बादलों पर द वायर हिंदी की इस सीरीज की पहली कड़ी सर्जिकल ग्लव्स की खरीद में हुई अनियमितताओं पर केंद्रित है. आरोप है कि एम्स प्रशासन ने सस्ती दरों पर उपलब्ध दस्तानों को नज़रअंदाज किया और कहीं ऊंचे दाम पर उनकी आपूर्ति की अनुमति दी, जिससे सरकारी खजाने को काफ़ी नुकसान पहुंचा.
स्वास्थ्य मंत्रालय पिछले पंद्रह महीनों में दो बार एम्स को ग्लव्स की इस खरीद को लेकर पत्र लिख चुका है, लेकिन निदेशक ने कोई जवाब तक नहीं दिया है.
ग्लव्स की खरीद
इस प्रकरण की शुरूआत मई 2023 में हुई, जब एम्स ने भारतीय मानक (IS 4148) के अनुसार प्रमाणित उच्च-गुणवत्ता (Q3 ग्रेड) वाले 58 लाख पाउडर-फ्री सर्जिकल ग्लव्स की ख़रीद के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं.
कुल 33 कंपनियों ने निविदाएं भेजीं लेकिन दो के सिवाय कोई कंपनी टेक्निकल बिड का पहला चरण पार नहीं कर पाईं, यानी तकनीकी रूप से उपयुक्त नहीं पाई गईं.
जो दो कंपनियां फाइनेंशियल बिड के योग्य पायी गईं, वे थीं– एएस हेल्थकेयर और ब्रॉन बायोटेक लिमिटेड. एएस हेल्थकेयर ने प्रति जोड़ी ग्लव्स 21.50 रुपये की दर से 12 करोड़ 47 लाख रुपये की बोली लगाई. वहीं ब्रॉन बायोटेक लिमिटेड ने 16 करोड़ 24 लाख की बोली लगाई.
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इस तरह एएस हेल्थकेयर को 16 अक्टूबर, 2023 को ठेका मिल गया.
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‘भ्रष्टाचार’ कहां हुआ?
द वायर हिंदी द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि फरवरी 2023 में डॉक्टर अमित लठवाल की अगुवाई में एम्स के एक विभाग सीएनसी (कार्डियोथोरेसिक और न्यूरोसाइंस सेंटर) ने एक अन्य कंपनी से 13.56 रुपये प्रति जोड़ी की दर पर पाउडर-फ्री ग्लव्स ख़रीदे थे.
जब मई 2023 में आमंत्रित ऊंची दर की निविदाओं के बाद कीमत की विषमता को लेकर एम्स के अधिकारियों में लंबी चर्चा हुई जो अक्टूबर 2023 तक चली. उनके बीच यह सवाल उठा कि जब सीएनसी ने दो महीने पहले ही कहीं कम कीमत पर ग्लव्स ख़रीदे थे, तो एम्स इस बार कहीं अधिक कीमत पर क्यों खरीद रहा है?
द वायर हिंदी के पास इस प्रकरण पर हुई चर्चा की फाइल नोटिंग्स हैं जो साबित करती हैं कि एम्स के वरिष्ठ चिकित्सकों और प्रशासनिक अधिकारियों को इस बढ़ी दर की पूरी जानकारी थी. कुछ अधिकारी इस कीमत का बचाव कर रहे थे, तो कुछ इसके खिलाफ भी थे.
स्टोरकीपर रवींद्र ने ऊंची दर का बचाव करते हुए कहा था, ‘सीएनसी में खरीदे गए ग्लव्स को मुख्य अस्पताल के स्टोर की समिति (Technical Specification & Evaluation Committee) ने तकनीकी रूप से अयोग्य घोषित किया था. इसलिए, ऐसे उत्पाद से तुलना जो तकनीकी रूप से अमान्य घोषित हुआ, उचित नहीं है.’ इस ग्लव्स को अगस्त 2023 में अयोग्य घोषित किया गया था.
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सीएनसी ने यह खरीद ASMA नामक कंपनी से की थी. लेकिन गौर करें, जिस ASMA कंपनी के ग्लव्स रवींद्र के अनुसार अगस्त 2023 में तकनीकी रूप से हीनतर पाए गए थे, उसी कंपनी के और उसी तरह के ग्लव्स (पाउडर-फ्री) एम्स ने उसके नौ महीने बाद खरीदे और वह भी एएस हेल्थकेयर से खरीदे गए ग्लव्स से 6.19 रुपये कम कीमत पर.
मई 2024 ने एम्स ने ASMA से एक साल के लिए 60 लाख ग्लव्स का अनुबंध 9 करोड़ 18 लाख 60 हजार यानी 15.31 रुपये प्रति जोड़ी किया.
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रवींद्र ने अपने नोट में कई कंपनियों के उदाहरण भी दिए जो एएस हेल्थकेयर द्वारा दिए गए मूल्य से अधिक दर पर कई अस्पतालों को आपूर्ति कर रहे थे. लेकिन उन्होंने अनदेखा कर दिया कि उसी दौरान इस तरह के ग्लव्स इससे कम दर पर कई अन्य अस्पताल खरीद रहे थे.
एम्स ने जिस एएस हेल्थकेयर से ‘Truskin’ ब्रांड के पाउडर-फ्री ग्लव्स 21.50 रुपये प्रति जोड़ी में ख़रीदे, उसे देश के विभिन्न अस्पताल उन्हीं दिनों 14.00 रुपये से 18.55 रुपये प्रति जोड़ी के हिसाब से खरीद रहे थे.
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जब हमने एम्स निदेशक से पूछा कि महंगी दर में खरीद क्यों हुई, सरकारी खजाने को नुकसान क्यों पहुंचाया गया, जबकि कहीं बेहतर विकल्प मौजूद थे, उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया.
फाइल नोटिंग्स के अनुसार खरीद प्रभारी और एडिशनल मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. लठवाल उन अधिकारियों में थे जिन्होंने ऊंची कीमत पर चिंता जाहिर की थी और निविदा को रद्द करने का भी प्रस्ताव दिया था. उन्होंने कहा था, ‘इस निविदा में कीमत सीएनसी की कीमत की तुलना में बहुत अधिक है. …इसलिए, यह प्रस्तावित किया जाता है कि इस निविदा को रद्द कर दिया जाए और तुरंत एक नई निविदा जारी की जाए.’
लठवाल ने सीएनसी द्वारा ख़रीदे ग्लव्स को खारिज किए जाने का भी विरोध किया था, ‘सीएनसी में असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर दो कंपनियों को अयोग्य घोषित कर दिया गया, लेकिन सीएनसी से इस संबंध में कोई आधिकारिक फीडबैक नहीं लिया गया.’
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लेकिन तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर (एडमिन) मनीषा सक्सेना ने लठवाल के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए कहा, ‘आपातकालीन आवश्यकता को देखते हुए…तीन महीने की आपूर्ति की जा सकती है…आगे की खरीदारी के लिए…तुरंत नई निविदा जारी करने के लिए कहा जा सकता है.’
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मनीषा सक्सेना के सुझाव को एम्स के निदेशक एम. श्रीनिवास की हरी झंडी मिल गई और इसके दो दिन बाद एएस हेल्थकेयर के साथ अनुबंध हो गया.
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अंततः एम्स ने प्रति जोड़ी ग्लव्स 21.50 रुपये की कीमत पर कुल 15 लाख ग्लव्स 3 करोड़ 22 लाख 50 हज़ार की कीमत पर ख़रीदे.
अगर एम्स ने अपने ही विभाग सीएनसी द्वारा फरवरी 2023 की दर पर यानी 13.55 रुपये प्रति जोड़ी के अनुसार खरीद की होती, तो उसे इतने ग्लव्स के लिए सिर्फ 2 करोड़ 3 लाख 25 हजार रुपये देने थे. यानी एम्स को 1 करोड़ 19 लाख 25 हजार रुपये का नुकसान वहन करना पड़ा.
और अगर एम्स ने मई 2024 की दर यानी 15.31 रुपये प्रति जोड़ी के अनुसार खरीद की होती, तो उसे इतने ग्लव्स के 2 करोड़ 29 लाख 65 हजार रुपये देने पड़ते यानी जितना एम्स ने चुकाया उससे 92 लाख 85 हजार रुपये कम.
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मंत्रालय के पास पहुंची शिकायत
यहां प्रश्न घाटे का ही नहीं, बल्कि एम्स के प्रशासन की चुप्पी भी है. इस विषय पर मंत्रालय के पास दिसंबर 2023 में एक शिकायत पहुंची, जिसमें सभी दस्तावेज़ संलग्न थे. इस मसले की जांच के लिए मंत्रालय ने एम्स के निदेशक को पहला पत्र 28 दिसंबर, 2023 को लिखा. पत्र में एम्स से कहा गया था कि मामले की जांच करके जल्द से जल्द इस मंत्रालय को रिपोर्ट भेजें.
एक साल बाद भी कोई जवाब न मिलने पर मंत्रालय ने एम्स को दूसरा पत्र 12 दिसंबर, 2024 को लिखा, और याद दिलाया कि एक साल पहले भी संस्थान से अनुरोध किया गया था कि वह इस मामले की जांच करे और मंत्रालय को रिपोर्ट भेजे.
मंत्रालय ने लिखा, ‘इस मामले की पूरी जांच कर यथाशीघ्र रिपोर्ट मंत्रालय को उपलब्ध कराएं.’ लेकिन आज तक एम्स ने कोई जवाब नहीं दिया है.
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यह पूछे जाने पर कि मंत्रालय को जबाव क्यों नहीं भेजा गया, एम्स की मीडिया इंचार्ज डॉ. रीमा दादा ने द वायर हिंदी से कहा, ‘एम्स अपने स्तर पर मामले की जांच कर रहा है.’
इस संबंध में हमने एम्स निदेशक को भी सवाल भेजे हैं लेकिन उनका जवाब नहीं आया है.
इस देरी को लेकर जब हमने मंत्रालय में अवर सचिव नीलम से संपर्क किया, जिन्होंने मंत्रालय की तरफ से एम्स को आखिरी पत्र लिखा था. लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
(अगली क़िस्त: लॉन्ड्री बिल का विवाद, जिसमें न सिर्फ एम्स का पैसा बर्बाद हुआ बल्कि छवि भी धूमिल हुई.)