प्रो. साईबाबा, जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा और पत्रकार प्रशांत राही समेत पांच को महाराष्ट्र की गढ़चिरौली कोर्ट ने माओवादियों से संपर्क रखने और भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने का दोषी क़रार दिया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा, जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा, पत्रकार प्रशांत राही समेत पांच लोगों को गढ़चिरौली कोर्ट ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है. गढ़चिरौली कोर्ट ने मंगलवार को इन सभी को माओवादियों से संपर्क रखने और भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने का दोषी क़रार दिया. आजीवन कारावास की सज़ा पाने वालों में दो अन्य लोग महेश तिर्की और पांडु नरोटे हैं. इसके अलावा कोर्ट ने छठे आरोपी विजय तिर्की को 10 साल की सज़ा सुनाई गई है.
उन्हें आतंकवादी समूह या संगठन का सदस्य होने तथा किसी आतंकवादी संगठन को समर्थन देने के अपराध से संबंधित गैर कानूनी गतिविधियां (निवारक) कानून की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया.
साईबाबा फिलहाल जमानत पर चल रहे हैं.
विशेष लोक अभियोजक पी. साथियानाथन ने सभी छह दोषी करार दिए गए लोगों को आजीवन कारावास देने की मांग की. उन्होंने यह भी मांग की कि स्वास्थ्य के आधार पर साईबाबा के साथ कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अपनी असमर्थताओं के बावजूद साईबाबा भारत और विदेश में विभिन्न सम्मेलनों में भाग लेकर माओवादी विचारधारा का कथित रूप से प्रचार किया.
बचाव पक्ष के वकील ने आरोपों के ख़िलाफ़ दलील नहीं दी. हेम मिश्रा को अगस्त 2013 में गढ़चिरौली जिले के अहेरी में महेश तिर्की और पांडु नरोटे के साथ गिरफ्तार किया गया था. उनके द्वारा मिले सुरागों के आधार पर इसी जिले के देवरी से प्रशांत राही और विजय तिर्की को गिरफ्तार किया गया था.
साईबाबा को मई 2014 में गढ़चिरौली पुलिस ने प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का सदस्य होने तथा उन्हें साजो-सामान मुहैया कराने और समूह के लिए भर्ती में मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.
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ग़ौरतलब है कि रामलाल आनंद कॉलेज के प्रो. जीएन साईबाबा पोलियोग्रस्त होने की वजह से शारीरिक रूप से क़रीब 90 फीसदी अक्षम हैं. इसके पहले उन्हें महाराष्ट्र पुलिस ने 9 मई 2014 को दिल्ली से गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के बाद उन्हें नागपुर की कुख्यात जेल की ‘अंडा सेल’ में रखा गया. वहां कई बार उनकी तबियत बिगड़ी, जिसे लेकर पुलिस की काफ़ी आलोचना भी हुई थी.