जेएनयू प्रशासन द्वारा उपस्थिति अनिवार्य करने के फैसले का विरोध एबीवीपी, एनएसयूआई, बापसा समेत जेएनयू के प्रमुख छात्र संगठन कर रहे हैं.
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि स्कूल ऑफ सोशल साइंस के डीन प्रो. प्रदीप्त चौधरी ने अनिवार्य उपस्थिति का बहिष्कार करने के लिए 25 छात्रों के एक समूह को ‘अवैध तरीके से बंधक’ बनाया.
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी ने एक बयान में कहा, ‘आज एक अति निंदनीय घटना में, सेंटर ऑफ इकोनॉमिक स्टडीज और प्लानिंग ऑफ स्कूल ऑफ सोशल साइंस के 25 छात्रों को प्रो. चौधरी द्वारा अवैध रूप से बंधक बनाया गया और उपस्थिति पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया.’
प्रोफेसर चौधरी ने कॉल या मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
बयान में कहा गया है कि यह घटना दोपहर में करीब ढाई बजे हुई जब छात्रों ने छात्रसंघ के आह्वान का पालन करते हुए उपस्थिति पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. इसमें आरोप लगाया गया है कि चौधरी ने छात्रों को हस्ताक्षर किए बिना बाहर जाने से इनकार कर दिया.
छात्रसंघ द्वारा 15 जनवरी को विश्वविद्यालय में हड़ताल करने की भी बात भी कही जा रही है.
ज्ञात हो कि बीते साल अक्टूबर में कुलपति द्वारा ‘5 वरिष्ठ प्रोफेसरों को दरकिनार करते हुए’ चौधरी को डीन बनाया गया था. प्रशासन के इस कदम पर शिक्षकों ने ऐतराज जताया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) भी प्रशासन के इस उपस्थिति संबंधी आदेश के ख़िलाफ़ है. उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी करके इस आदेश को ‘निरर्थक’ बताते हुए इसका बहिष्कार करने की बात कही है.
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पिछले दिनों प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं की क्लास में उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस संदर्भ में 22 दिसंबर को एक सर्कुलर जारी किया था.
इस सर्कुलर में कहा गया है कि अकादमिक काउंसिल ने एक दिसंबर को आयोजित अकादमिक काउंसिल की 144वीं बैठक में सभी पंजीकृत छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है. शीतकालीन सत्र 2018 से अनिवार्य उपस्थिति सभी विभागों मतलब बीए, एमए, एमफिल और पीएचडी के छात्र-छात्राओं के लिए ज़रूरी होगी.
उपस्थिति अनिवार्य कर देने के बाद जेएनयू में एक बार फिर छात्र और विश्वविद्यालय प्रशासन आमने-सामने हैं. विश्वविद्यालय के छात्र संगठन इस फैसले को जेएनयू की ‘परंपरा’ के ख़िलाफ़ बता रहे हैं. वहीं, शिक्षक संगठन भी इस फैसले का विरोध कर रहा है.
जेएनयूटीए ने पांच सदस्यीय उस समिति को पत्र लिखा जिसने सभी छात्रों के लिए न्यूनतम अनिवार्य उपस्थिति की सिफारिश की थी. शिक्षक संघ ने कहा कि यह आदेश एक ऐसी समस्या पैदा करेगा जो कभी थी ही नहीं.
शिक्षक संघ की अध्यक्ष आयशा किदवई ने एक विज्ञप्ति में कहा कि ग़ैरहाज़िरी से निपटने के लिए कई अन्य तरीके पहले से मौजूद थे लेकिन अनिवार्य उपस्थिति उनमें शामिल नहीं थी.
किदवई ने अपने पत्र में कहा, ‘हम इस जबरन थोपे हुए आदेश का कोई भी अंश लागू नहीं करना चाहते क्योंकि हमारे शैक्षणिक तौर-तरीके छात्रों को सिखाने के लिए थे केवल उनकी मौजूदगी भर के लिए नहीं.’
छात्रसंघ ने इसे लेकर कुलपति से मुलाकात भी की. इस दौरान कुलपति को 2,500 छात्रों के हस्ताक्षरों वाला एक ज्ञापन भी सौंपा गया.
ग़ौर करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले का विरोध एबीवीपी, एनएसयूआई, बापसा समेत जेएनयू के लगभग सारे प्रमुख छात्र संगठन कर रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)