केरल: सहयोगी दलों के दबाव के बीच सरकार ने ‘पीएम श्री’ योजना स्थगित की

केरल सरकार ने अपनी सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की आपत्तियों के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत चुनिंदा स्कूलों को उन्नत बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार की पहल पीएम श्री योजना के क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है. भाकपा का कहना है कि उसकी आपत्ति उस विचारधारा पर केंद्रित है, जो योजना के क्रियान्वयन का आधार है.

(फोटो साभार: एक्स)

नई दिल्ली: केरल सरकार ने अपनी सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की आपत्तियों के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत चुनिंदा स्कूलों को उन्नत बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार की पहल पीएम श्री योजना के क्रियान्वयन पर फिलहाल रोक लगा दी है.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के अनुसार, राज्य में इस योजना के अमल की समीक्षा के लिए शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कैबिनेट उप-समिति का गठन किया जाएगा.

अखबार के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘जब तक पैनल अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर देता, तब तक इस योजना के तहत आगे की सभी कार्यवाही स्थगित रहेगी.’

भाकपा का कहना है कि उसकी आपत्ति उस विचारधारा पर केंद्रित है, जो केरल में पीएम श्री योजना के क्रियान्वयन का आधार है.

उल्लेखनीय है कि केरल सरकार ने स्कूलों के उन्नयन से संबंधित केंद्र सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन यह सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार के भीतर उठी चिंताओं के बीच हुआ, जिसका मानना है कि इस नीति से राज्य में शिक्षा को प्रभावित करने के लिए ‘आरएसएस के एजेंडे’ का मार्ग प्रशस्त होगा.

हालांकि, केरल सरकार ने पार्टी के भीतर किसी भी विवाद के दावे को खारिज कर दिया है, लेकिन फिलहाल के लिए पीएम श्री को टाल दिया गया है.

गौरतलब है कि तात्कालिक विवाद से परे यह घटनाक्रम भारत के संघीय ढांचे में एक गहरी दरार को दर्शाता है.

द वायर में हाल ही में प्रकाशित एक विश्लेषण में तर्क दिया गया है कि जिस तरह से पीएम श्री जैसी योजनाओं को लागू किया जा रहा है, यह एक व्यापक तकनीकी-वित्तीय व्यवस्था की ओर संकेत है, जिसके माध्यम से केंद्र राज्यों में नियंत्रण को केंद्रीकृत कर सकता है. इसमें राज्यों को महत्वपूर्ण शिक्षा योजनाओं को लागू करने के लिए केंद्र से धन राशि प्राप्त करने से पहले समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने, अपने राजकोष और निगरानी प्रणालियों को संरेखित करने और केंद्र द्वारा निर्धारित शर्तों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है.

इस दृष्टिकोण से केरल का विवाद केवल शिक्षा नीति या विचारधारा को लेकर नहीं है, बल्कि राज्य की स्वायत्तता में गिरावट और कोऑपरेटिव फेडरलिज्म से दूर जाने को लेकर भी है.

राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार द्वारा फंड न दिए जाने के खिलाफ अपनी आवाज उठाई है, जिसमें समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) जैसी योजनाएं भी शामिल हैं, जो एक ऐसी शिक्षा योजना है जिसका वित्तपोषण केंद्र और राज्य मिलकर करते हैं.

केरल सरकार ने अक्सर शिकायत की है कि उसे एसएसए के लिए केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि नहीं दी जा रही है, जो उसे मिलनी चाहिए, और ऐसी कई खबरें आई हैं कि पीएम श्री मोदी पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने पर उसे फंड देने का आश्वासन दिया गया था.

ज्ञात हो कि यह विवाद, जो केवल केरल तक ही सीमित नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया है.

उल्लेखनीय है कि फिलहाल निश्चित रूप से केरल सरकार ने केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन से पीछे हटने या इसके कार्यान्वयन को रद्द करने का निर्णय नहीं लिया है, बल्कि इसके कामकाज की समीक्षा के लिए एक समिति गठित करने का निर्णय लिया है.

सरकार के अनुसार, केरल में विभिन्न मुद्दों पर पीएम-श्री योजना की जांच जारी रहेगी, लेकिन इसके परिणाम यह निर्धारित करेंगे कि क्या राज्य अधिक सार्थक नीतिगत गुंजाइश की मांग करेंगे – चाहे वह केंद्र सरकार के साथ बातचीत के माध्यम से हो या अदालतों में.