केंद्र के 13 मंत्री जिस वेबसाइट का लिंक ट्वीट करते हैं, आह्वान करते हैं कि फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं, उस वेबसाइट को कौन चलाता है, कहां से चलती है, इसका पता दो दिनों तक मीडिया में चर्चा होने के बाद भी नहीं चलता है.
अचानक 13 केंद्रीय मंत्री एक वेबसाइट का लिंक ट्वीट करते हैं जिसने चार बड़ी ख़बरों के फ़ेक होने का दावा किया है. इन मंत्रियों में एमजे अकबर भी हैं और स्मृति ईरानी भी हैं. मंत्री लिखते हैं कि फ़ेक न्यूज़ के लिए अपनी आवाज़ उठाएं.
इंडियन एक्सप्रेस के कृष्ण कौशिक की नज़र इस वेबसाइट पर पड़ती है जिसका पता www.thetruepicture.in दिया गया है. पता चलता है कि इसके डोमेन का पंजीकरण पिछले ही साल कराया गया है. इसमें एक लैंडलाइन नंबर है जो ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन का भी है. ब्लू क्राफ्ट फाउंडेशन प्रधानमंत्री ने जो किताब लिखी है एग्ज़ाम वॉरियर उसका पार्टनर है.
एक्सप्रेस के कौशिक कनॉट प्लेस में स्थित ब्लूक्राफ्ट के दफ़्तर जाते हैं जहां दो लोग उन्हें बताते हैं कि वे लोग THETRUEPICTURE के नाम से कोई वेबसाइट नहीं चलाते हैं. सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि ब्लूक्राफ्ट फाउंडेशन नाम की कंपनी राजेश जैन और हितेश जैन के नाम पर 2016 में दर्ज हुई थी.
राजेश जैन कौन हैं? ये जनाब 2014 में प्रधानमंत्री मोदी का अभियान चला रहे थे. ब्लूक्राफ्ट के संस्थापक सीईओ अखिलेश मिश्रा भी 2014 में मोदी के लिए चुनावी अभियान से जुड़े रहे हैं. ब्लू क्राफ्ट से पहले अखिलेश मिश्र सरकारी वेबसाइट MyGov.IN के कंटेंट डायरेक्टर रहे हैं. इस कंपनी ने मन की बात नाम से किताब छापा है. भाषण प्रधानमंत्री का है मगर किताब प्राइवेट कंपनी छापती है. यही अपने आप में खेल है.
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आम तौर पर इतने बड़े पद पर बैठे व्यक्ति का सरकारी माध्यम से दिए गए भाषण पर सरकार के प्रकाशन विभाग का अधिकार होना चाहिए मगर इसके लिए एक नई कंपनी बनाई जाती है. काश कोई मन की बात की बिक्री का डिटेल भी पता कर लेता. कोई प्रकाशक इस खेल को आसानी से बता सकता है. पर ख़ैर.
अखिलेश मिश्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ब्लू क्राफ्ट का TRUE PICTURE वेबसाइट से कोई संबंध नहीं है. फिर ब्लू क्राफ्ट का लैंड लाइन नंबर दूसरे की वेबसाइट पर क्या कर रहा है तो कहा जाता है कि कुछ गड़बड़ी रही होगी. इस एंगल पर एनडीटीवी के मानस जांच करते हैं.
एक्सप्रेस की रिपोर्ट छपने के कुछ घंटों बाद पता चलता है कि लैंड लाइन की जगह एक मोबाइल नंबर आ गया है. वो मोबाइल नंबर किसी अमित मालवीय के नाम से दर्ज है मगर फोन किया गया तो नंबर काम नहीं कर रहा था.
इस वेबसाइट ने जिन चार खबरों को फेक न्यूज़ बताया है उनमें से दो इंडियन एक्सप्रेस की है. कृष्ण कौशिक ने उन दो ख़बरों के बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे सभी पक्षों से बात करने के बाद रिपोर्ट लिखी गई है. ख़बर का सोर्स बताया गया है.
जिस वेबसाइट को मोदी सरकार के 13 मंत्री यह कह कर ट्वीट करते हैं कि इसने फ़ेक न्यूज़ का पर्दाफ़ाश किया है, उसके बारे में एक्सप्रेस में ख़बर छपती है, एनडीटीवी में रिपोर्ट होती है, अरुण शौरी सवाल उठाते हैं इसके बाद भी उस वेबसाइट की तरफ से कोई सामने नहीं आता है. यह उस वेबसाइट का हाल है जो फ़ेक न्यूज़ का पता लगाने का दावा करती है. उम्मीद है आप सरल हिंदी में यहां तक का खेल समझ गए होंगे.
एक्सप्रेस के रिपोर्टर कृष्ण कौशिक की दूसरे दिन रिपोर्ट छपी है कि ब्लू क्राफ्ट और ट्रू पिक्चर के कर्मचारी एक ही हैं. दो महिला कर्मचारी, जिन्होंने अपने लिंकडेन प्रोफाइल में ब्लू क्राफ्ट के लिए काम करने की बात लिखी है, कई वीडियो में ट्रू पिक्चर की तरफ से सरकार की नीतियों और ताज़ा ख़बरों पर चर्चा करती हुईं देखी जा सकती हैं. रिपोर्टर कौशिक ने ब्लूक्राफ्ट के सीईओ से सवाल किया तो जवाब मिला कि ये दो औरतें निजी तौर पर वेबसाइट के लिए योगदान करती होंगी. अभी मत हंसिएगा.
अखिलेश मिश्र कहते हैं कि हम किसी को अपने लिए काम करने से नहीं रोकते हैं. यही नहीं एक्सप्रेस की पूछताछ के बाद दो महिलाएं लिंकडेन प्रोफाइल से अपना विवरण हटा देती हैं कि वे ब्लू क्राफ्ट के लिए काम करती हैं. ब्लू क्राफ्ट के राजेश जैन ने एक्सप्रेस को जवाब दिया है कि उन्होंने ब्लू क्राफ्ट छोड़ दिया है.
केंद्र के 13 मंत्री जिस वेबसाइट का लिंक ट्वीट करते हैं, आह्वान करते हैं कि फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं, उस वेबसाइट को कौन चलाता है, कहां से चलती है, इसका पता दो दिनों तक मीडिया में चर्चा होने के बाद भी नहीं चलता है.
ये तो हाल है फ़ेक न्यूज़ से लड़ाई के प्रति सरकार की गंभीरता का. इस तरह की चुप्पी से संकेत जाता है कि गुप्त तहख़ाने से रणनीतियां बन रही हैं. बनाने वाले इतने डरपोक हैं कि एक वेबसाइट का पता मालूम करने से सब छिप जाते हैं. एक साथ 13 मंत्रियों को ट्वीट करने के लिए इस वेबसाइट का लिंक कहां से मिलता है?
क्या वेबसाइट वालों के पास इनके ट्वीट के पासवर्ड हैं? क्या इन मंत्रियों को ख़ुद से नहीं बताना चाहिए? भाई आप फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने जा रहे हैं तो इतना भी मत चुप रहिए कि वेबसाइट ही फेक लगे. या फिर कोई कहानी बनाई जा रही है जिसे लेकर मीडिया में हाज़िर हुआ जाएगा. जल्दी बना लीजिए!
अगर आप जानना चाहते हैं कि 13 मंत्री कौन हैं जो एक वेबसाइट का लिंक ट्विट करते हैं मगर कौन चलाता है पता नहीं चलता है और न ही वेबसाइट ख़ुद से बताती है. इन मंत्रियों के नाम हैं पीयूष गोयल, राधा मोहन सिंह, स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर, बीरेंद्र सिंह, किरण रिजीजू, एमजे अकबर, राज्यवर्धन राठौड़, विजय गोयल, बाबुल सुप्रीयो, पी राधाकृष्णन, अर्जुन राम मेघवाल.
ALTNEWS.IN कई महीनों से फ़ेक न्यूज़ का भांडाफोड़ कर रहा है. इसकी चर्चा कुछ अख़बारों में भी होती है. कभी इन मंत्रियों ने फ़ेक न्यूज़ का भांडा फोड़ नहीं किया.
क्या प्रधानमंत्री को इस बात पर गुस्सा आया? नहीं न. फ़ेक न्यूज़ के मामले में प्रधानमंत्री मोदी का रिकॉर्ड ख़राब ही नहीं, बहुत ज़्यादा ख़राब है. गुजरात चुनावों में मणिशंकर अय्यर के घर की बैठक को लेकर उन्होंने एक फेक न्यूज़ रचा था. जिसे लेकर उनकी तरफ से अरुण जेटली ने राज्य सभा में माफी मांगी थी.
यह माफी अरविंद केजरीवाल के माफी दौरे से पहले की हुई थी. प्रधानमंत्री ने कभी फ़ेक न्यूज़ पर कार्रवाई नहीं की जिसमें उनके मंत्री शामिल रहे हों, उनकी पार्टी के नेता शामिल रहे हों.
इसलिए फेक न्यूज़ पर प्रधानमंत्री को संत बनने का कोई अधिकार नहीं है. अगर नाटक के लिए करना है तो उनका पूरा अधिकार बनता है. उन्हें बुरा लगेगा मगर वे जानते हैं कि मैंने बात सही कही है. क्या पता हंसते भी होंगे कि सही लिखता है, फिर भी जनता पर तो जादू मेरा ही चलता है! पर मानते तो होंगे कि यह पत्रकार जादू पर नहीं लिखता है न ही इस पर मेरा जादू चलता है!
मैं सीधा बोलता हूं, प्रधानमंत्री जी फ़ेक न्यूज़ रोकने के मामले में आपका ट्रैक रिकार्ड ज़ीरो है. ये मैं उन दोस्तों के लिए लिखता हूं जो मुझे डराते रहते हैं कि मोदी जी को छोड़ कर लिखो वरना तुम्हारी नौकरी चली जाएगी.
बताइये तो हर साल एक करोड़ रोज़गार देने का वादा कर सत्ता में आए, स्मृति ईरानी दस पांच पत्रकारों की नौकरी खाने का नियम बना रही थीं. मुझे हर दिन प्रधानमंत्री का नाम लेकर मेरी नौकरी जाने का डर दिखाया जाता है.
प्रधानमंत्री जी, आपके समर्थक आपके नाम को बदनाम कर रहे हैं. ऐसे लंपट और चाटुकार पत्रकारों से दूर रहिए. जिनकी पत्रकारिता और पाठकों की दुनिया में कोई हैसियत नहीं वो आपके पक्ष में ट्वीट कर आपकी हंसी उड़ाते हैं. आप जज लोया पर निकिता सक्सेना की रिपोर्ट पढ़िए. कैरवान वेबसाइट का लिंक आपके 13 मंत्री ट्विट कर न्यायपालिका में पारदर्शिता के चैंपियन बन सकते हैं. हैं न मिस्टर प्राइम मिनिस्टर!
यही नहीं, पोस्टकार्ड न्यूज़ जिसकी कई ख़बरों को ऑल्ट न्यूज़ ने अनेक बार तमाम साक्ष्यों के साथ फ़ेक साबित किया है, उसके संपादक को प्रधानमंत्री ही फॉलो करते हैं. इनका नाम महेश हेगड़े हैं, जिन्हें इसलिए गिरफ़्तार किया गया है क्योंकि इन्होंने समाचार प्रकाशित किया कि एक जैन संत पर मुसलमान ने हमला कर दिया.
मकसद आप समझ सकते हैं ताकि भावनाएं भड़क जाएं. पता चला कि जैन संत सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे. प्रधानमंत्री के एक मंत्री अनंत हेगड़े इस संपादक के समर्थन में ट्वीट करते हैं. एक सांसद महेश गिरी भी समर्थन में ट्वीट करते हैं. सांसद परेश रावल ने भी कुछ महीने पहले फेक न्यूज़ ट्वीट किया था, जिसे लेकर खूब मज़ाक उड़ा तो डिलीट कर दिया. याद नहीं कि प्रधानमंत्री ने कुछ बोला हो. याद नहीं कि स्मृति ईरानी ने कुछ बोला हो. आप पाठकों को याद है?
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एक तरफ़ सरकार फ़ेक न्यूज़ वालों के साथ खड़ी है, दूसरी तरफ फ़ेक न्यूज़ से लड़ने का तानाशाही कानून बनाकर ख़ुद को प्रशासक घोषित करना चाहती है. इस खेल को एक लाइन में बता देता हूं. मंत्री अब अपना काम छोड़ कर जो ख़बरें हैं उन्हें फेक साबित करने में लगाए जाएंगे ताकि इनके पार्टी संसार में जितने भी सोशल मीडिया के योद्धा हैं वो इसे फैला दें कि सही ख़बर फ़ेक है.
फ़ेक ख़बर से लड़ने के लिए नहीं, सही ख़बर को फ़ेक बनाने का यह ख़ेल दुनिया भर में होता है. अपने ट्रंप साहब तो सवाल करने वाले मीडिया को रोज़ फ़ेक न्यूज़ कहते हैं. अब सीधे सीधे ट्रंप की कॉपी करेंगे तो ठीक नहीं लगेगा इसलिए मंत्रियों को लगा दिया गया. ऐसा प्रतीत होता है.
हिन्दी में ऐसी पत्रकारिता कम होती है. हिन्दी अख़बारों के ज़्यादतर संपादक प्रधानमंत्री में असीम संभावनाओं को देखते हुए ऐसी ख़बरों में अपना समय व्यतीत करते हैं, जिसमें समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ा सकें मगर ऐसी कोई ख़बर नहीं खोजेंगे जो सरकार को नैतिकता का पाठ पढ़ा सकें.
अंग्रेज़ी पत्रिका और वेबसाइट CARAVAN की निकिता सक्सेना ने जिस तरह जज लोया की स्टोरी पर डिटेल रिपोर्ट प्रकाशित की है, वैसी रिपोर्ट करने या कराने की औकात आज हिंदी के किसी अख़बार के संपादक की नहीं है. द वायर की रोहिणी सिंह ने पीयूष गोयल के बारे में जो रिपोर्ट छापी है उसका ज़िक्र हिंदी के किसी अख़बार में नहीं होगा.
आपकी तरह हम भी इन अख़बारों के झांसे में 20 साल तक रहे. कभी इस पर सोचिएगा कि क्या ये अख़बार वाक़ई आपको पाठक समझते हैं? आपके साथ रोज़ सुबह धोखा होता है. आप इन अख़बारों को धोखे में मत रखिए. थोड़ा प्रयास कर हर महीने कोई दूसरा अख़बार ले लीजिए.
भले वो बेकार हो क्योंकि बेकार तो आप पढ़ ही रहे हैं. ख़बरों के नाम पर तीज त्योहार,तुलसी और कबीर के दोहों का विश्लेषण ही पढ़ना है तो कोई भी अख़बार ले सकते हैं. एक अख़बार जीवन भर न पढ़ें. सड़ा हुआ अख़बार अपने पाठकों को सड़ा देता है. डरपोक संपादक पाठक को और भी डरपोक बना देता है.
(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)