मध्य प्रदेश: क्या गोहत्या के शक में मारे गए सिराज की हत्या के पीछे कोई षड्यंत्र था?

सतना ज़िले के अमगार गांव में बीते 17 मई को गोहत्या के शक में गांव के दो मुस्लिम युवकों पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया था, जिसमें एक की मौत हो गई थी और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया था.

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मृतक सिराज ख़ान की पत्नी शहीदुन्ननिशा अपने बच्चों के साथ. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)

सतना ज़िले के अमगार गांव में बीते 17 मई को गोहत्या के शक में गांव के दो मुस्लिम युवकों पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया था, जिसमें एक की मौत हो गई थी और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया था.

मृतक सिराज ख़ान की पत्नी शहीदुन्ननिशा अपने बच्चों के साथ. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)
मृतक सिराज ख़ान की पत्नी शहीदुन्ननिशा अपने बच्चों के साथ. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)

मध्य प्रदेश के सतना ज़िले के अमगार गांव में 17 मई की दरमियानी रात लगभग एक बजे गांव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर 40-50 लोगों की भीड़ ने दो व्यक्तियों के ऊपर हमला कर दिया. दोनों को पीट-पीट कर मरणासन्न हालत में पहुंचा दिया गया.

भीड़ का शिकार बने सिराज ख़ान और शकील अहमद के ऊपर गोवंश की तस्करी, पशु हत्या और अवैध रूप से गोवंश को काटकर मांस बेचने के आरोप थे.

रात के करीब 3:30 बजे डायल 100 पर सूचना पाकर पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और घायल शकील और सिराज को अस्पताल ले गई. हालांकि, अस्पताल पहुंचने से पहले ही सिराज ने दम तोड़ दिया था और शकील कोमा में चले गए थे.

इस घटना में रोचक यह है कि मध्य प्रदेश पुलिस ने मृतक और घायल व्यक्ति के ही ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए हैं.

वहीं, ऐसा कहना है कि आदिवासी बाहुल्य अमगार गांव में लगातार मवेशी चोरी होने की घटनाएं हो रही थीं. घटना वाली रात कुछ ग्रामीणों ने गांव से कुछ दूरी पर एक खदान के पास अज्ञात लोगों को मांस काटते हुए देखा.

इसकी सूचना उन्होंने गांव के अन्य लोगों को दी गई. आधी रात को पूरा गांव एकजुट होकर मौके पर पहुंच गया. ग्रामीणों ने घटनास्थल पर मांस काटते हुए दो लोगों को पकड़ लिया.

भीड़ देखकर दोनों घबराकर भागे तो पास के एक खदान में गिर गए. गुस्साई भीड़ ने दोनों को वहां से निकालकर पीटना शुरू कर दिया.

वहीं, पुलिस का दावा है कि घटनास्थल पर पुलिस को दो कटे हुए बैल, एक बैल का कटा सिर और एक बंधी हुई गाय मिली. साथ ही, तीन बोरे में कटा हुआ मांस और मांस काटने के कुछ औज़ार भी बरामद किए गए.

इस बीच, एक 10 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम, जिसमें लेखक, पत्रकार, समाजसेवी और राजनेता शामिल थे, ने घटनास्थल और इसके समीप के इलाकों का दौरा करके घटना के पीछे की पृष्ठभूमि जानने का प्रयास किया.

उन्होंने पाया कि बजरंग दल का सतना और मैहर कस्बे में बढ़ता प्रभाव भी घटना के पीछे का एक कारण हो सकता है.

अमगार गांव मैहर से महज़ 18 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है. मैहर में होने वाली गतिविधियां अमगार पर असर डालती ही हैं.

टीम ने ग्रामीणों, सिराज और शकील के परिजनों व पुलिस अधिकारियों से भी बात की.

इस बीच मैहर में हिंदूवादी संगठन बजरंग दल की अति सक्रियता के कई प्रमाण मिले जिन्होंने घटनाक्रम में संदेह के बादल पैदा कर दिए.

टीम की रिपोर्ट के मुताबिक, 40 हज़ार की आबादी वाले मैहर में 81.86 प्रतिशत आबादी हिंदू और 17.40 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है जो मुख्य रूप से कस्बे की पुरानी बस्ती में रहती है.

लेकिन, पिछले कुछ सालों से मैहर और इसके आसपास का इलाका सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील बना हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, कारण मुख्य रूप से बजरंग दल जैसे संगठनों की गतिविधियां और उनको दी गई खुली छूट है.

इस संबंध में कुछ घटनाओं का ज़िक्र भी किया गया है.

14 दिसंबर 2017 को सतना के भुमकहर गांव के धर्मेंद्र डोहर बजरंग दल कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस के पास पहुंचे. उन्होंने जबरन अपना धर्म परिवर्तन करवाए जाने की शिकायत की.

खदान का एक हिस्सा जहां भीड़ देखकर भागते वक़्त सिराज ख़ान और शकील अहमद कथित तौर पर गिर गए थे. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)
खदान का एक हिस्सा जहां भीड़ देखकर भागते वक़्त सिराज ख़ान और शकील अहमद कथित तौर पर गिर गए थे. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)

जिसके बाद पुलिस ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत छह लोगों को गिरफ्तार किया था. उन पर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में धारा 153 (बी) और 295 (ए) के तहत भी मामले दर्ज किए गए.

इस दौरान बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा ईसाई समुदाय के लोगों के साथ मारपीट की गई और थाने के बाहर ही एक कार में भी आग लगा दी गई थी.

घटनाक्रम इस तरह था कि एक ईसाई विद्यार्थियों का दल क्रिसमस के गीत गाने दारा-कलां गांव के गिरजाघर पहुंचा तो हिंदुत्व के नारे देते हुए लोगों ने उन पर हमला कर दिया. सभी गायक और दो पादरी गिरफ्तार कर लिए गए.

एक पादरी ने आरोप लगाया कि पुलिस अभिरक्षा में होते हुए भी बजरंग दल के लोगों द्वारा उनके साथ मारपीट और अभद्रता की गई. थाने के सामने खड़ी उनकी कार में आग लगा दी गई.

गौरतलब है कि मामले में धर्मांतरण की शिकायत करने वाले धर्मेंद्र बार-बार अपने बयान बदलते रहे.

रिपोर्ट में मैहर और उसके आसपास के इलाकों में बजरंग दल के प्रभाव और गतिविधियों को बजरंग दल के ज़िला संयोजक महेश तिवारी के 26 फरवरी 2018 के फेसबुक पोस्ट के माध्यम से समझाया गया है.

जिसमें महेश मैहर के आसपास के इलाकों में खंड समितियों और ग्राम समितियों के गठन और इसमें जुड़ने के लिए हिंदू युवाओं के उत्साह की बात कर रहे हैं.

जिस पोस्ट का रिपोर्ट में ज़िक्र है उसमें महेश इन नवगठित समितियों द्वारा हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ मैहर में अधर्मियों द्वारा चलाए जा रहे तथाकथित लव-जेहाद, धर्मांतरण, गोहत्या, मांस-मदिरा के विरोध में मुंहतोड़ जवाब देने के लिए संकल्प लेने की बात कर रहे हैं.

पिछले साल दिसंबर में ईद के दिन झंडा लगाने को लेकर भी मैहर में तनाव की स्थिति बनी थी. उस समय मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार, बजरंग दल के जिला संयोजक महेश तिवारी द्वारा ईद के दिन मैहर घंटाघर चौराहे पर इस्लामी झंडा लगाने का विरोध किया गया जिससे तनाव की स्थिति बनी.

इस दौरान दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई जिसमें महेश तिवारी को भी चोटें आईं. बाद में बजरंग दल और अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा इस घटना को आधार बनाकर पूरे शहर में आगज़नी और तोड़फोड़ की गई और मुस्लिम समुदाय की कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया.

बजरंग दल के महेश तिवारी की एक फेसबुक पोस्ट.
बजरंग दल के महेश तिवारी की एक फेसबुक पोस्ट.

पुलिस निष्क्रिय बनी रही. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान तैनात पुलिस बल को धक्का देकर भगा दिया गया. थाने में पुलिस वालों से अभद्रता की गई. यहां तक कि सिविल लाइन थाने के अंदर घुसकर एक महिला सब इंस्पेक्टर से आपत्तिजनक व्यवहार किया गया.

इन घटनाओं के माध्यम से रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के दौर में हिंदुत्ववादी संगठनों के सामने पुलिस प्रशासन लाचार नज़र आता है. दबाव इस कदर होता है कि पुलिस प्रशासन चाह कर भी इन पर कार्रवाई नहीं कर पाता है.

पिछले ही दिनों मध्य प्रदेश के राजगढ़ ज़िले में बजरंग दल द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए कैंप का आयोजन करने की ख़बरें आई हैं जो बताती हैं कि प्रदेश में संगठन की पैठ कितनी गहरी है और उन्हें सरकार की तरफ से भी पूरा संरक्षण प्राप्त है.

हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण का आयोजन केवल सरकार या उसके द्वारा अधिकृत संस्थाएं ही कर सकती हैं. ऐसे में सवाल उठता है बजरंग दल हथियार चलाने का प्रशिक्षण कैसे चला सकता है?

महेश तिवारी के 20 दिसंबर 2017 के एक फेसबुक पोस्ट का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में मैहर और आसपास के इलाकों में गाय को लेकर बजरंग दल की सक्रियता के बारे में भी बताया गया है.

उक्त पोस्ट 16 मार्च 2018 को मैहर में आयोजित हिंदू पंचायत को लेकर है जिसमें महेश मैहर में गोहत्या, इसको लेकर मुस्लिम समाज के लोगों की गिरफ्तारी, बड़ी बसों और ऑटो से मैहर से गोमांस की सप्लाई की बात कर रहे हैं और इसके साथ ही चेतावनी देते हुए कहते हैं, ‘ये अत्याचार मैं मैहर में नहीं होने दूंगा, चाहे धर्म की रक्षा के लिए मुझे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़े, हंसते-हंसते मां भारती के लिए अपना शीश कटा दूंगा.’

इस दौरान टीम ने अमगार के ग्रामीणों से भी बात की.

ग्रामीणों का कहना था कि जब उन्हें घटना की सूचना फूल सिंह और विजय सिंह (जो पड़ोसी गांव से एक दाह संस्कार में शामिल होकर वापस लौट रहे थे) से मिली, तो सभी सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर घटनास्थल पर पहुंचे.

उनकी आहट सुनकर शकील और सिराज भागे और खदान में गिर गए जिससे उन्हें चोट आईं. फूल सिंह और विजय सिंह भी मामले में आरोपी हैं.

हालांकि मामले के एक आरोपी विजय सिंह के पिता लल्लन सिंह कहते हैं, ‘60-70 ग्रामीणों की आक्रोशित भीड़ थी, कुछ मारपीट हुई होगी, मारपीट से भी चोटें आई होंगी.’

जब टीम ग्रामीणों के साथ घटनास्थल पर पहुंची तो जिस खदान में शकील और सिराज के गिरने का दावा किया जा रहा था, वो बहुत ज़्यादा गहरी नहीं पाई गई. बल्कि किसी तालाब की तरह थी, जहां किसी के गिरने और गिरकर गंभीर चोट लगने की संभावना नहीं है.

ग्रामीणों के बयानों में भी विरोधाभास देखा गया. पहले उनका कहना था कि खदान में गिरने से सिराज की मौत हुई. फिर कहा गया उन दोनों को दौड़ाया गया, तब वह ज़िंदा था.

इस दौरान टीम को एक बैल का कटा सिर ज़रूर मिला लेकिन वह महीनों पुराना था.

जिस स्थान पर बैलों के काटे जाने की बात की जा रही थी, उसके निरीक्षण पर पाया कि घटनास्थल से 100 मीटर की दूरी पर पक्की सड़क है. कुछ दूरी पर ही गांव है और यातायात लगातार सुचारू रूप से वहां चलता रहता है. इसलिए ऐसे स्थान पर जानवर काटना संभव नहीं लगता.

ग्रामीणों से चर्चा में सामने आया कि भदमपुर और मैहर वर्तमान में बजरंग दल की गतिविधियों का मुख्य केंद्र हैं.

रिपोर्ट में बजरंग दल के स्थानीय नेता अतुल शुक्ला और प्रशांत शुक्ला जो कि भदमपुर के निवासी हैं, के बारे में कहा गया है कि वे अमगार और बदेरा थाना के आसपास के क्षेत्रों में बजरंग दल की गतिविधियों को संचालित करते हैं और उनका अमगार और आरोपियों से भी संपर्क रहा है.

वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि जानवरों के क्रय-विक्रय करने वाले किसानों व व्यापार से जुड़े अन्य लोगों के साथ मारपीट तथा गाड़ियों को रोकने की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं.

ग्रामीणों ने बताया कि घटना के बाद सुबह घटनास्थल और अमगार गांव में अतुल शुक्ला और प्रशांत शुक्ला के अलावा मैहर एवं सतना के बजरंग दल से जुड़े लोग भी आए थे.

अमगार गांव के मुन्ना सिंह ने टीम को बताया कि गांववालों ने घटना की सूचना पुलिस को देने से पहले बजरंग दल वालों को दी थी.

Satna Mob Lynching Mahesh Tiwari
बजरंग दल के महेश तिवारी की एक अन्य फेसबुक पोस्ट.

अमगार गांव के लोगों द्वारा टीम को यह भी बताया गया कि बजरंग दलवालों ने आश्वासन दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है उन्हें चार-छह महीने के अंदर रिहा करवा लिया जाएगा, तब तक शांत रहना है.

वहीं, मृतक सिराज मैहर की पुरानी बस्ती (छिपरहटी) में एक किराये के मकान में अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन, सिराज की मौत के बाद उनकी पत्नी शहीदुन्निशा घर पर ताला डालकर अपने मायके जा चुकी हैं जो कि पड़ोस में ही है.

शहीदुन्निशा से उनके भाई अब्दुल रशीद के घर पर मुलाकात हुई.

इस दौरान अब्दुल ने बताया, ‘45 वर्षीय सिराज दर्ज़ी का काम करता था. शहीदुन्निशा घर में बीड़ी बनाती थी. शहीदुन्निशा की उम्र 40 वर्ष है. तीन बेटियां हैं, जिनकी उम्र 18, 15 और 12 वर्ष है और एक सात वर्षीय लड़का सादिर है. परिवार मुख्य रूप से सिराज के टेलरिंग के काम पर निर्भर था. उसकी मौत के बाद परिवार के सामने भरण-पोषण का संकट आ गया है.’

अब्दुल रशीद ने कहा, ‘18 मई की सुबह करीब पांच बजे उनके परिवार को पुलिस से सूचना मिली कि सिराज का एक्सीडेंट हुआ है. वो सतना अस्पताल में हैं. शहीदुन्निशा ने अस्पताल जाकर देखा तो सिराज की मौत हो चुकी थी.’

वहीं, अब्दुल और बस्ती के अन्य लोगों ने बताया कि उस दिन सुबह से ही पूरे मोहल्ले को पुलिस ने छावनी में तब्दील कर दिया था. सिराज के पूरे शरीर पर गंभीर चोटों के निशान थे.

परिजनों ने बताया जब वे लाश को नहला रहे थे तो उन्होंने देखा कि सिराज की बाईं आंख नहीं थी, गला पूरी तरह से टूटा हुआ था, दोनों हाथ कलाई के पास से टूटे थे और पूरे शरीर पर डंडे के निशान थे.

बस्ती के लोगों ने बताया कि सिराज पेशे से टेलर थे. उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. कभी थाने में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी.

वहीं, सिराज की पारिवारिक स्थिति की बात करें तो वे आर्थिक तंगी में जीवनयापन कर रहे थे और कई बार तो भूखे ही पेट परिवार को सोना पड़ता था. बावजूद इसके उनकी कोशिश थी कि उनके बच्चे पढ़ जाएं. उनका ख़ुद का कोई मकान तक नहीं था.

उनकी पत्नी के मुताबिक, ‘परिवार में आर्थिक तंगी से जूझ रहा था, कई बार भूखे भी रहना पड़ता था बावजूद इसके बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. किराये के मकान में रहते थे, किराया महज़ 500 रुपये था ओर घर में शौचालय नहीं था.’

उन्होंने कहा, ‘वे मांस काटने-बेचने का काम नहीं करते थे और कभी ऐसा नहीं हुआ कि बिना बताए कहीं गए हों.

सिराज की बड़ी बेटी ने सरकारी स्कूल से आठवीं तक पढ़ाई करके छोड़ दी. उससे छोटी बेटी ने अभी आठवीं की परीक्षा दी है. तीसरी बेटी निजी स्कूल में बीपीएल कार्ड पर भर्ती हुई थी और अभी पांचवीं में है. लड़का मानसिक रूप से बीमार है इसलिए स्कूल में दाखिला नहीं कराया है.

वे बताती हैं, ‘बेटे के इलाज के लिए बार-बार सतना और जबलपुर के चक्कर काटे. उसे बचाने में बहुत पैसा लग गया. बेटे की बीमारी के कारण ही पति को मुंबई से वापस बुलाया. वे छह साल पहले मुंबई में टेलर का काम करते थे.’

जहां तक सिराज के घटनास्थल पर पहुंचने का सवाल है तो शहीदुन्निशा कहती हैं, ‘मुझे बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि सिराज बदेरा गांव गए कैसे और क्यों? वो तो घर से जल्दी आने का कहकर दुकान गए थे. वे कभी देर से नहीं आते थे और कहीं जाते थे तो फोन करके बताते थे.’

वे कहती हैं, ‘ऐसा हो सकता है कि कोई उनको ले गया हो और उन्होंने सोचा हो कि जल्दी वापस आ जाएंगे, लेकिन कभी भी देर होनी होती तो वे फोन कर देते थे.’

वे बताती हैं, ‘उस दिन भी वे जब 8-9 बजे तक नहीं आए तो बेटी ने फोन लगाया. घंटी गई पर किसी ने नहीं उठाया. पड़ोसी को फोन लगाया तो पता चला कि कुछ देर पहले दुकान खुली थी. रात तक उनके आने का इंतज़ार किया. नहीं आए तो रात 12 बजे फिर फोन लगाया. इस बार उनका फोन कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था. लेकिन तब भी ऐसा नहीं सोचा था कि उन्हें कुछ हो गया हो. लगा कि सहरी तक तो आना ही चाहिए, लेकिन वो नहीं आए. सुबह अजान तक इंतज़ार किया. आया तो सुबह सात बजे एक फोन कि वे नहीं रहे.’

हालांकि, शहीदुन्निशा शकील के बारे में जानकारी होने से इनकार करती हैं. वे बताती हैं, ‘कुछ साल पहले जहां वे किराये पर रहते थे, वहीं शकील का परिवार भी रहता था. शकील कभी-कभार अपने कपड़े सिलवाने के लिए आता था, लेकिन ज़्यादा मिलना-जुलना नहीं था.’

वहीं, शकील अहमद के भाई से प्राप्त जानकारी में पता लगा कि शकील पेशे से ड्राइवर हैं. मालवाहक व छोटे सवारी वाहन चलाते हैं. घटना वाले दिन वह गाड़ी का बकाया भाड़ा लेने गया था.

शकील के साथ सिराज भी थे. दोनों वापस आ रहे थे. अमगार गांव के पास भीड़ जुटी थी जिनमें से कुछ लोगों ने उनसे पूछताछ की. जैसे ही उन्होंने अपना नाम बताया. उन्हें पीटना शुरू कर दिया गया.

शकील की पत्नी सन्नो बानो ने कहा, ‘पेशे से ड्राइवर मेरे पति छोटे मालवाहक और सवारी वाहन चलाते हैं. कभी-कभी सीज़न वाले छोटे-मोटे दूसरे व्यापार जैसे- तेंदूपत्ता की ख़रीदी, जामुन का क्रय-विक्रय करके परिवार का भरण पोषण करते हैं.’

सन्नो बानो को घटना की जानकारी 18 मई को पुलिस से मिली. घटना के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. वे बीड़ी मज़दूर हैं. उनके एक बेटा और बेटी हैं जिनकी उम्र क्रमश: 7 और 5 वर्ष है.

पूरे मामले पर बदेरा थाना निरीक्षक आरपी त्रिपाठी बताते हैं कि शकील और रियाज़ उर्फ राका (बकौल शहीदुन्निशा सिराज अपना नाम ठीक से नहीं बोल पाते थे. वे अपना नाम सिराज के बजाए रियाज़ बताते थे.) बैल काट रहे थे. दो ग्रामीणों की सूचना पर गांववालों ने उनकी घेराबंदी कर दी. मारपीट की और 100 नंबर पर हमें सूचना दे दी. हम वहां पहुंचे तो दो व्यक्तियों को गंभीर रूप से घायल अवस्था में पाया. उन्हें मैहर के अस्पताल ले गए जहां इलाज के दौरान रियाज़ की मौत हो गई और शकील को जबलपुर रेफर कर दिया गया.

उन्होंने बताया कि पुलिस को घटनास्थल से दो कटे बैल, एक बैल का आधा गला कटा सिर, एक बंधी हुई गाय, तीन बोरी मांस, एक कुल्हाड़ी, तीन चाकू बरामद हुए हैं.

घटनास्थल से सड़क बस कुछ ही दूरी पर है. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)
घटनास्थल से सड़क बस कुछ ही दूरी पर है. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)

बरामद हुए मांस को लेकर आरपी त्रिपाठी का कहना था कि अभी ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि मांस गाय का ही है. मांस को फॉरेंसिक जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया है, जहां से रिपोर्ट आने के बाद स्थिति स्पष्ट होगी. मामले की विवेचना जारी है इसलिए एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है.

वहीं, बदेरा थाना निरीक्षक ने ग्रामीणों के इस दावे की पुष्टि नहीं की कि घटना के करीब दस दिन पहले से गांव से मवेशी गायब हो रहे थे और उनके कंकाल भी बरामद हो रहे थे. उनका कहना था कि कुछ कंकाल तो मिले हैं लेकिन वे हफ्तों नहीं, कई महीनों पुराने हैं.

बहरहाल, इस बीच पूरे घटनाक्रम पर कई सवाल खड़े होते हैं जिनके जवाब अब तक अनुत्तरित हैं जैसे कि सिराज ख़ान और शकील अहमद पर फॉरेंसिक रिपोर्ट आए बिना ही मामला दर्ज कर लेना. एक आरोपी को सरकारी गवाह बनाने का आश्वासन देना.

वहीं, पूरे मामले में जिन चार लोगों (पवन सिंह, विजय सिंह, फूल सिंह और नारायण सिंह) को सिराज ख़ान और शकील अहमद के साथ मारपीट का आरोपी बनाया गया है.

इस पर भी सवाल खड़े होते हैं कि जब पुलिस और ग्रामीण स्वीकारते हैं कि शकील और सिराज के साथ 40-50 लोगों की भीड़ ने मारपीट की थी तो फिर आरोपी केवल उन चार लोगों को ही किन तथ्यों के आधार पर बनाया गया.

टीम ने यह सवाल भी उठाया है कि पुलिस को सूचना देने से पहले ग्रामीणों ने बजरंग दल के अतुल और प्रशांत शुक्ला को सूचना क्यों दी गई? पुलिस से पहले घटनास्थल पर वे कैसे पहुंचे? इसलिए मांग की गई है कि इसमें षड्यंत्र की संभावनों पर भी जांच की जाए.

सवाल यह भी उठाया गया है कि अगर घटना के दस दिन पहले से ही गांव से हर रात दो-चार मवेशी गायब हो रहे थे और जानवरों के ताज़े कंकाल मिल रहे थे तो इस संबंध में किसी ने कोई शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई? वहीं, बदेरा थाना निरीक्षक द्वारा भी इसकी पुष्टि नहीं की गई जिन्होंने मिले कंकालों को कई महीनों पुराना बताया गया.

मालूम हो कि सिराज का मोबाइल भी बरामद नहीं हुआ है. साथ ही दो बैलों का मांस, एक बैल का कटा सिर, एक बंधी गाय मिलना, क्या वास्तव में दो लोगों के लिए रात भर में यह करना संभव है?

घटनास्थल सड़क और गांव से बहुत करीब है जहां से किसी भी जानवर के काटने की आवाज़ विशेष तौर पर रात में बहुत आसानी से सुनाई पड़नी चाहिए. ऐसे में क्यों कोई वहां तीन बैल और गाय ले जाकर उन्हें काटने का जोखिम उठाएगा.

इन्हीं के चलते मांग की जा रही है कि घटना की निष्पक्ष जांच कोर्ट की निगरानी में हो.

सतना ज़िले के मैहर तहसील के अंतर्गत आने वाले अमगार गांव के लोगों से फैक्ट फाइंडिंग टीम की बातचीत. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)
सतना ज़िले के मैहर तहसील के अंतर्गत आने वाले अमगार गांव के लोगों से फैक्ट फाइंडिंग टीम की बातचीत. (फोटो साभार: फैक्ट फाइंडिंग टीम)

फैक्ट फाइंडिंग टीम का मत है कि इस घटना के पूर्व सुनियोजित होने की संभावनाएं हैं और साज़िश के तहत इसे अंजाम दिया गया है. इसलिए मांग की जा रही है कि बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ताओं की कॉल डिटेल, एसएमएस और वॉट्सऐप मैसेज की साइबर सेल जांच करे.

वहीं, पुलिस सिराज को अब तक अपने रिकॉर्ड में रियाज़ के नाम से दर्शा रही है, मांग इसे भी ठीक करने की है.

वैसे मध्य प्रदेश में गोमांस और गोहत्या के चलते ऐसी घटनाएं पहली बार नहीं हुई हैं.

13 जनवरी 2016 को हरदा ज़िले के खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिए मारपीट की गई क्‍योंकि उनके बैग में बीफ (गोमांस) होने का शक था.

मारपीट करने वाले लोग गोरक्षा समिति के सदस्य थे जो दादरी दोहराने की कोशिश कर रहे थे. दंपति ने खिरकिया में अपने कुछ परिचितों को फोन कर दिया जिन्होंने उन्हें बचाया.

इससे पहले खिरकिया में ही 19 सितंबर 2013 को गोहत्या के नाम पर दंगा हो चुका है, जिसमें कई मुस्लिम परिवारों के घरों और संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया था. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे.

बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलीथिन खाने से हुई थी.

इस मामले में भी मुख्य आरोपी गोरक्षा समिति का एक सदस्य सुरेंद्र राजपूत थे.

सुरेंद्र सिंह राजपूत कितने बैखौफ हैं, इसका अंदाज़ा उस ऑडियो को सुनकर लगाया जा सकता है जिसमें वह हरदा के एसपी को फोन पर धमकी देकर कह रहे हैं कि अगर खिरकिया स्टेशन पर दंपति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा.

ऐसी ही एक घटना 26 जुलाई 2016 को मंदसौर रेलवे स्टेशन पर भी हुई. गोमांस रखने के शक में दो मुस्लिम महिलाओं के साथ मारपीट की गई.

फिर पीड़ित महिलाओं पर ही पुलिस ने गोवंश प्रतिषेध की धारा 4 और 5 एवं मध्य प्रदेश कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया और उन्हें जेल भेज दिया गया.

बाद में जांच में पाया गया कि महिलाओं के पास गाय का नहीं, भैंस का मांस था.

इस दौरान, महिलाओं ने आरोप लगाया था कि जिस समय उनके साथ मारपीट हो रही थी, पुलिस भी वहां मौजूद थी, लेकिन तमाशबीन बनी रही.