प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘आपातकाल’ इतना प्रिय क्यों है?

राजनीतिक विमर्श में आपातकाल नरेंद्र मोदी का प्रिय विषय रहता है. यह और बात है कि मोदी आपातकाल के दौरान एक दिन के लिए भी जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं ले जाए गए थे. भूमिगत रहकर उन्होंने आपातकाल विरोधी संघर्ष में कोई हिस्सेदारी की हो, इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती.

/

राजनीतिक विमर्श में आपातकाल नरेंद्र मोदी का प्रिय विषय रहता है. यह और बात है कि मोदी आपातकाल के दौरान एक दिन के लिए भी जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं ले जाए गए थे. भूमिगत रहकर उन्होंने आपातकाल विरोधी संघर्ष में कोई हिस्सेदारी की हो, इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती.

Modi Emergency Mumbai BJP Twitter
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: ट्विटर/बीजेपी)

चार दशक पुराने आपातकाल के काले कालखंड को हर साल 25-26 जून को याद किया जाता है. लेकिन पिछले चार वर्षों से उस दौर को बहुत ज्यादा याद किया जा रहा है. सिर्फ सालगिरह पर ही नहीं बल्कि लगभग हर रोज याद किया जाता है.

आपातकाल के बाद चार दशकों के दौरान देश में सात गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हुए हैं, जिनमें से दो-तीन के अलावा शेष सभी आपातकाल के दौरान पूरे समय जेल में रहे थे, लेकिन उनमें से किसी ने कभी भी आपातकाल को इतना ज्यादा और इतने कर्कश तरीके से याद नहीं किया, जितना कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं.

राजनीतिक विमर्श में आपातकाल मोदी का प्रिय विषय रहता है, इसलिए वे आपातकाल को सिर्फ 25-26 जून को ही नहीं बल्कि अक्सर याद करते रहते हैं. यह और बात है कि मोदी आपातकाल के दौरान एक दिन के लिए भी जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं ले जाए गए थे.

जेल के बाहर भूमिगत रहकर उन्होंने आपातकाल विरोधी संघर्ष में कोई हिस्सेदारी की हो, इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती. जबकि उस दौरान भूमिगत रहे जार्ज फर्नांडीज, कर्पूरी ठाकुर जैसे दिग्गजों के अलावा समाजवादी नेता लाडली मोहन निगम और द हिंदू अखबार के तत्कालीन प्रबंध संपादक सीजीके रेड्डी जैसे कम मशहूर लोगों की गतिविधियां भी जगजाहिर हो चुकी हैं.

आपातकाल के दौरान भूमिगत रहे विपक्षी राजनीतिक कर्मियों की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी हुए थे लेकिन मोदी की गिरफ्तारी का कोई वारंट भी रिकॉर्ड पर नहीं है.

आपातकाल लागू होने से पहले गुजरात में छात्रों के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार से शुरू हुए जेपी आंदोलन के संदर्भ में भी मोदी के समकालीन शरद यादव, अरुण जेटली, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील मोदी, शिवानंद तिवारी, मुख्तार अनीस, मोहन प्रकाश, चंचल, लालमुनि चौबे, रामबहादुर राय, राजकुमार जैन, गुजरात के हरिन पाठक आदि नेताओं के नाम चर्चा में रहते हैं, लेकिन इनमें मोदी का नाम कहीं नहीं आता. कहा जा सकता है कि मोदी संघ और जनसंघ के सामान्य कार्यकर्ता के रूप में आपातकाल के एक सामान्य दर्शक रहे हैं.

एक राजनीतिक कार्यकर्ता होते हुए भी आपातकाल से अछूते रहने के बावजदू अगर मोदी मौके-बेमौके आपातकाल को चीख-चीखकर याद करते हुए कांग्रेस को कोसते हैं तो इसकी वजह उनका अपना ‘आपातकालीन’ अपराध बोध ही हो सकता है कि वे आपातकाल के दौर में कोई सक्रिय भूमिका निभाते हुए जेल क्यों नहीं जा सके!

आपातकाल के नाम पर उनकी चीख-चिल्लाहट को उनकी प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश के रुप में भी देखा जा सकता है. यह भी कहा जा सकता है कि मोदी कांग्रेस को कोसने के लिए गाहे-बगाहे आपातकाल का जिक्र अपने उन कार्यों पर नैतिकता का पर्दा डालना चाहिते हैं जिनकी तुलना आपातकालीन कारनामों से की जाती है.

मसलन संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सतर्कता आयोग, सूचना आयोग, रिजर्व बैंक जैसी महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता का अपहरण.

प्रधानमंत्री की देखादेखी उनके कई मंत्री और भाजपा के नेता तथा प्रवक्ता भी अपने राजनीतिक विरोधियों पर हमले के लिए आपातकाल को ही हथियार के रुप में इस्तेमाल करते हैं. इसका नजारा टीवी चैनलों पर रोजाना होने वाली निरर्थक बहसों में भी देखने को मिलता है.

कोई भी मुद्दा हो, जब भाजपा प्रवक्ताओं के पास कहने को कुछ नहीं होता है तो वे आपातकाल का जिक्र करने लगते हैं. उनके फिक्स और सधे हुए डायलॉग होते हैं- ‘ऐसा तो आपातकाल में भी होता था, तब आप कहां थे’, ‘हम पर अंगुली उठाने से पहले जरा आपातकाल को याद कर लीजिए’, ‘जिन्होंने देश पर आपातकाल थोपा था, वे हमें लोकतंत्र का पाठ न पढाएं’ आदि-इत्यादि.

Mumbai: Prime Minister Narendra Modi speaks during a BJP function, in Mumbai on Tuesday, June 26, 2018. (PTI Photo/Mitesh Bhuvad) (PTI6_26_2018_000138B)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

आपातकाल की 43वीं सालगिरह के मौके का इस्तेमाल भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कांग्रेस को कोसने और अपनी पीठ थपथपाने के लिए किया. मुंबई में भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच बोलते हुए उन्होंने जो कुछ कहा, उसमें नया कुछ भी नहीं है.

आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, प्रेस सेंसरशिप, न्यायपालिका का दुरुपयोग आदि वही सारे मुद्दे थे, जो वे पिछले चार साल के दौरान संसद में, संसद के बाहर सरकारी-गैर सरकारी कार्यक्रमों में और यहां तक कि विदेशी धरती पर भी अक्सर उठाते रहे हैं.

आपातकाल के जिक्र वाले मोदी के तमाम भाषण हो या उनकी पार्टी के नेताओं-प्रवक्ताओं के कुतर्की बयान, सबसे ध्वनि यही निकलती है कि हमारी सरकार जो कर रही है उसमें कुछ गलत नहीं है और ऐसा तो कांग्रेस के शासनकाल में भी होता रहा है.

मुंबई में मोदी ने कहा कि 25 जून की तारीख भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन है और इसे हमेशा याद रखा जाना चाहिए. उनकी इस बात से कौन इनकार कर सकता है!

बेशक आपातकाल को हमेशा याद रखा जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही यह तथ्य भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस ‘तानाशाह’ इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था, उसी इंदिरा गांधी ने चुनाव भी कराए थे, जिसमें वे और उनकी पार्टी बुरी तरह पराजित हुई थीं.

जिस जनता ने इंदिरा गांधी को आपातकाल के लिए यह निर्मम लोकतांत्रिक सजा दी थी उसी जनता ने तीन साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत के साथ जिता दिया. इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनीं.

जाहिर है कि देश की जनता ने इंदिरा गांधी को लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के उनके गंभीर अपराध के लिए माफ कर दिया था. हालांकि इस माफी का यह आशय कतई नहीं था कि जनता ने आपातकाल को और उसके नाम पर हुए सभी कृत्यों को जायज मान लिया था.

निस्संदेह आपातकाल हमारे लोकतांत्रिक इतिहास का ऐसा काला अध्याय है जिसे कोई मोदी, कोई अमित शाह या कोई अरुण जेटली याद दिलाए या न दिलाए, देश के लोगों के जेहन में हमेशा बना रहेगा. लेकिन आपातकाल को याद रखना ही काफी नहीं है, बल्कि इससे भी ज्यादा जरूरी इस बात के लिए सतर्कता बरतना है कि कोई भी हुकूमत आपातकाल को किसी भी रूप में दोहराने का दुस्साहस न कर सके.

सवाल है कि क्या आपातकाल को दोहराने का खतर अभी भी बना हुआ है या किसी नए आवरण में आपातकाल आ चुका है और भारतीय जनमानस उस खतरे के प्रति सचेत है?

यह जरूरी नहीं कि लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों का अपहरण हर बार बाकायदा घोषित करके ही किया जाए. वह लोकतांत्रिक आवरण और कायदे-कानूनों की आड में भी हो सकता है और काफी हद तक हो भी रहा है, जिस पर पर्दा डालने के प्रधानमंत्री मोदी जब-तब चार दशक पीछे लौटकर ‘कांग्रेस के आपातकाल’ को उठा लाते हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.) 

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq