दुख होता है कि लोग आज भी मंदिर-मस्जिद बनाने की बात करते हैं: अमजद अली

मुंबई में अपनी किताब ‘मास्टर आॅन मास्टर्स’ के विमोचन समारोह में प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ान ने ये बात कही.

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उस्ताद अमजद अली ख़ान. (फोटो साभार: news.iu.edu)

मुंबई में अपनी किताब ‘मास्टर आॅन मास्टर्स’ के विमोचन समारोह में प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ान ने ये बात कही.

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सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान. (फोटो साभार: news.iu.edu)

प्रख्यात सरोद वादक अमजद अली ख़ान का कहना है कि यह दुखद है कि शिक्षा लोगों को एक दूसरे के प्रति हमदर्द बनाने में नाकाम रही और दुर्भाग्य से कुछ लोग आज के दौर में भी मंदिर और मस्जिद बनाने के बारे में बात करते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या प्रवासी भारतीय अतीत के सांस्कृतिक संदर्भों में उलझे हुए हैं, खान ने कहा कि वे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं लेकिन बेहद शिक्षित होने के बावजूद वे कट्टरपंथी भी हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, मैं यह देखकर बेहद दुखी हूं कि वो चाहे प्रवासी हों या शिक्षित भारतीय लोग, वह अब भी मंदिरों और मस्जिदों को बनाने की बात कर रहे हैं. कुछ प्रवासी भावनात्मक रूप से हमारी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े हैं लेकिन कुछ अप्रवासी भारतीय बेहद कट्टर हैं. वे बेहद शिक्षित हैं.

ख़ान अपनी किताब मास्टर ऑन मास्टर्स के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे जिसमें उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितारों को नमन किया है.

पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित किताब में उस्ताद अमजद अली ख़ान ने 20वीं शताब्दी के भारतीय शास्त्रीय संगीत के 12 प्रख्यात संगीतज्ञों को याद करते हुए उनसे जुड़े अपने निजी अनुभवों को साझा किया है.

इन संगीतज्ञों में बड़े ग़ुलाम अली ख़ान, आमिर ख़ान, बेग़म अख़्तर, अल्ला रक्खा, केसरबाई केरकर, कुमार गंधर्व, एमएस सुब्बालक्ष्मी, भीमसेन जोशी, बिस्मिल्लाह ख़ान, पंडित रविशंकर, विलायत ख़ान और किशन महाराज का नाम शामिल है.

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निर्देशक करण जौहर ने किताब का विमोचन किया. (फोटो साभार: उस्ताद अमजद अली ख़ान के फेसबुक पेज से)

मुंबई में किताब का विमोचन मंगलवार शाम फिल्मकार करण जौहर ने किया. कार्यक्रम में उस्ताद अमजद अली ख़ान की पत्नी भरतनाट्यम नृत्यांगना शुभलक्ष्मी, बेटे अमान और अयान अली बंगश भी मौजूद थे.

ग्वालियर में संगीत के ‘सेनिया बंगश’ घराने की छठी पीढ़ी में जन्म लेने वाले अमजद अली ख़ान को संगीत विरासत में मिला. इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली ख़ान ग्वालियर राज दरबार में संगीतज्ञ थे.

इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण किया. उस्ताद अमजद अली ख़ान मात्र 12 साल की उम्र में एकल सरोद वादन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया था.

कला और संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने के लिए उस्ताद अमजद अली ख़ान को साल 1975 में पद्मश्री, 1989 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1989 तानसेन सम्मान, 1991 में पद्म भूषण और साल 2001 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है.

(समाचार एजेंसी भाषा से सहयोग के साथ)