आपातकाल के दौरान इसका विरोध करने की वजह से जेल गए. तकरीबन 15 किताबें लिखने वाले कुलदीप नैयर तमाम प्रतिष्ठित अख़बारों के संपादक रह चुके थे.
नई दिल्ली: प्रेस की आज़ादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले प्रख्यात पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप नैयर का निधन बुधवार देर रात हो गया. उनकी उम्र 95 साल थी और वह पिछले तीन दिनों से राजधानी नई दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे.
वरिष्ठ पत्रकार के बड़े बेटे सुधीर नैयर ने बताया कि उनके पिता की मौत बुधवार देर रात 12 बजकर 30 मिनट पर एस्कॉर्ट्स अस्पताल में हुई.
सुधीर नैयर ने बताया कि वह निमोनिया से पीड़ित थे और पांच दिन पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था.
उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे हैं. काफी समय से उनकी सेहत नासाज़ थी. आज यानी 23 अगस्त की दोपहर तकरीबन एक बजे लोधी शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
कुछ लोग अपने जीवन में कभी रिटायर नहीं होते और कुलदीप नैयर उन लोगों में शामिल रहे, जिन्होंने अपने आखिरी पल तक कलम नहीं छोड़ी. उनका निधन हो गया लेकिन आज के ‘लोकमत टाइम्स’ में उनका एक आलेख प्रकाशित हुआ है.
नैयर ना सिर्फ भारत के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकार में शामिल रहे, बल्कि शांति और प्रेस की स्वतंत्रता के प्रबल हिमायती के रूप में भी उनकी गिनती होती थी. उन्होंने अपने आखिरी आलेख में पूर्वोत्तर को ध्यान में रखते हुए प्रवासियों के मुद्दे को वोट बैंक से जोड़कर लिखा है.
उन्होंने भाजपा को क्षेत्र की समस्या को नजरअंदाज़ नहीं करने का सुझाव देते हुए अपने आलेख का समापन किया है. उन्होंने कहा है कि असम में पूर्वोत्तर की 25 में से 14 सीटें हैं.
‘द वीक’ मैगज़ीन के संपादक सच्चिदानंद मूर्ति ने नैयर को प्रेस की आज़ादी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले पत्रकार के रूप में याद किया है. मूर्ति ने कहा, ‘उन्होंने राजीव गांधी सरकार द्वारा लाए गए विवादित मानहानि विधेयक का विरोध किया था. भारत में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए वह सैदव काम करते रहे.’
कुलदीप नैयर उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने आपातकाल का खुलकर विरोध किया और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) के तहत जेल भी गए.
‘बियॉन्ड द लाइंस: एन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’, ‘डिस्टेंट नेबर्स: अ टेल आॅफ द सबकॉन्टिनेंट’, ‘वॉल ऐट वाघा – इंडिया पाकिस्तान रिलेशंस’, ‘सप्रेशन आॅफ जजेस’, ‘द जजमेंट: इन्साइड स्टोरी आॅफ इमरजेंसी इन इंडिया’, ‘विदाउट फीयर: द लाइफ एंड ट्रायल आॅफ भगत सिंह’ और ‘इमरजेंसी रिटोल्ड’ समेत तकरीबन 15 किताबें लिखने वाले कुलदीप नैयर ने इंडियन एक्सप्रेस अख़बार का संपादक रहने के साथ ही 1990 में ब्रिटेन स्थित भारतीय उच्चायोग में बतौर उच्चायुक्त अपनी सेवाएं भी दी थीं.
14 अगस्त 1923 को सियालकोट (अब पाकिस्तान) में जन्मे कुलदीप नैयर ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत उर्दू अख़बार ‘अंजाम’ से की थी. वह अंग्रेज़ी अख़बार ‘द स्टेट्समैन’ के दिल्ली संस्करण के संपादक रहे. इसी दौरान आपातकाल का विरोध करने की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
पत्रकार और लेखक होने के साथ-साथ वह सामाजिक कार्यकर्ता भी रहे हैं. वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का भी वह हिस्सा थे. 1997 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य नामांकित किया गया.
नैयर ने भारत और पाकिस्तान के बीच के तनावपूर्ण संबंधों को भी सामान्य करने की लगातार कोशिश की. उन्होंने अमृतसर के निकट अटारी-बाघा सीमा पर कार्यकर्ताओं के उस दल का नेतृत्व किया था, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर वहां मोमबत्तियां जलाई थीं.
इसके अलावा भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी क़ैदी और पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीय क़ैदी, जिनकी सज़ा पूरी होने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया गया था, उनके लिए भी वह मुहिम चलाते थे.
वर्ष 1985 से कुलदीप नैयर तकरीबन 80 पत्र-पत्रिकाओं में 14 भाषाओं में कॉलम लिख चुके थे. इनमें बेंगलुरु का ‘डेक्कन हेरल्ड’, ‘द डेली स्टार’, ‘द संडे गार्जियन’, ‘द न्यूज़’, ‘द स्टेट्समैन’, ‘प्रभा साक्षी’ और पाकिस्तान के अख़बार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ और ‘डॉन प्रमुख’ हैं.
पाकिस्तान के लाहौर स्थित फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने बीए आॅनर्स किया और लाहौर में ही लॉ कॉलेज से एएलबी की डिग्री हासिल की. वह सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर के पिता थे.
इसके अलावा 1953 में कुलदीप नैयर ने एक स्कॉलरशिप मिलने के बाद अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के मेडिल स्कूल आॅफ जर्नलिज़्म से पत्रकारिता की पढ़ाई की थी.
साल 2015 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा उनके नाम से कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान भी मीडिया में काम करने वाले लोगों को दिया जाता है.
पाकिस्तान में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के समय वहां मौजूद थे
नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस’ (हिंदी में ‘एक ज़िंदगी काफ़ी नहीं’ शीर्षक से अनुदित) में बताया है कि उन्होंने किस तरह ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन की ख़बर सबसे पहले दी थी.
वरिष्ठ पत्रकार नैयर उस समय ताशकंद में थे, जब ऐतिहासिक ताशकंद समझौता करने के बाद शास्त्री का निधन हो गया था.
नैयर ने अपनी किताब में बताया है कि उन्हें किस प्रकार शास्त्री के निधन की सूचना मिली. उन्होंने लिखा है, ‘अचानक दरवाज़ा खटखटाए जाने पर मेरी नींद खुली. कॉरिडोर में एक महिला ने मुझसे कहा, आपके प्रधानमंत्री की जान जा रही है. मैंने जल्दी से कपड़ा बदला और एक भारतीय अधिकारी के साथ शास्त्री के डाचा (रूसी अतिथि गृह) गया, जो कुछ ही दूरी पर स्थित था.’
अपनी किताब में नैयर ने कहा है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब ख़ान शास्त्री के निधन से ‘वास्तव में दुखी’ थे.
उन्होंने लिखा है, ‘वह सुबह चार बजे शास्त्री के डाचा पर आए और मेरी ओर देखते हुए कहा, इस शांति दूत ने भारत और पाकिस्तान की मित्रता के लिए अपनी जान दे दी.’
नैयर ने किताब में शास्त्री की शख़्सियत से जुड़े कई आयामों और उनके साथ अपने संबंधों के बारे में भी विस्तार से लिखा है.
कुलदीप नैयर ने पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़ादिर ख़ान का बहुचर्चित साक्षात्कार किया था.
इस साक्षात्कार में क़ादिर ख़ान ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान के पास परमाणु उपकरण है.
नरेंद्र मोदी और एडिटर्स गिल्ड में शोक व्यक्त किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुलदीप नैयर को आज ‘बुद्धिजीवी’ बताया और कहा कि वरिष्ठ पत्रकार को उनके निर्भीक विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि वह उनके निधन से दुखी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टि्वटर पर कहा, ‘कुलदीप नैयर हमारे समय के बुद्धिजीवी थे. अपने विचारों में स्पष्ट और निर्भीक. बेहतर भारत बनाने के लिए आपातकाल, जन सेवा और प्रतिबद्धता के खिलाफ उनका कड़ा रुख हमेशा याद किया जाएगा.’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘निडर पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर की मौत से दुखी हूं, मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, प्रशंसक और सहकर्मियों के साथ है.’
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने एक संदेश में कहा कि नैयर अपनी विश्वसनीयता, मानक और पैनेपन से आने वाले युवा पत्रकारों को प्रेरित करते रहेंगे.
नैयर गिल्ड के संस्थापकों में से एक थे और इसके अध्यक्ष भी रहे थे. गिल्ड ने अपने बयान में नैयर को पत्रकारिता जगत का बेहद प्रतिष्ठित सदस्य बताया है.
गिल्ड ने नैयर को ‘संवाददाताओं का संपादक’ बताते हुए कहा कि वह विभिन्न समाचार संगठनों में नेतृत्वकर्ता के पद पर रहे और हमेशा संपादकों तथा संवाददाताओं की टीम में पैनापन और गंभीरता भरते रहे.
संगठन ने कहा, ‘एक मार्गदर्शक के तौर पर कुलदीप नैयर अपनी लेखनी के जरिए आपातकाल के दौरान मीडिया की स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंध के ख़िलाफ़ लड़ते रहे और इसके परिणामस्वरूप उनकी गिरफ्तारी भी हुई.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)