एडिटर्स गिल्ड ने मामले की जांच कराने की मांग करते हुए सवाल उठाया है कि कहीं ये फैसला राजनीति से प्रेरित तो नहीं. एक अक्टूबर को रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज़पेपर फॉर इंडिया माकपा के मुखपत्र ‘डेली देशेर कथा’ का पंजीकरण रद्द कर दिया था.
नई दिल्ली: त्रिपुरा में एक अक्टूबर को माकपा के मुखपत्र ‘डेली देशेर कथा’ का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया. इसे लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भारत के रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज़पेपर फॉर इंडिया (आरएनआई) के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसकी जांच कराने की मांग की है कि फैसला राजनीति से प्रेरित तो नहीं है.
भारत के रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज़पेपर फॉर इंडिया (आरएनआई) ने सोमवार को एक पत्र में कहा कि इसका प्रकाशन पश्चिम त्रिपुरा के सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट संदीप महात्मे के निर्णय के आधार पर रद्द किया गया है.
आरएनआई ने कहा कि बांग्ला भाषी समाचार पत्र का पंजीकरण रद्द करने का कारण मालिकाना हक में अनधिकृत बदलाव है.
Editors Guild of India condemns the decision of the Registrar of Newspapers for India (RNI) to cancel the registration of Daily Desher Katha, a daily newspaper published from Agartala pic.twitter.com/fEy6xL17sx
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) October 3, 2018
द वायर से बात करते हुए इस अखबार के वरिष्ठ रिपोर्टर राहुल सिन्हा ने कहा, ‘एक दैनिक के रूप में, देशर कथा ने 15 अगस्त, 1979 से प्रकाशन शुरू किया. यह त्रिपुरा में एक अच्छी तरह से स्थापित अख़बार है. लेकिन जब से बीजेपी ने त्रिपुरा में सरकार बनाई है, तब से राज्य सरकार इसे बंद करने की कोशिश कर रही थी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें लगातार धमकियां और नौकरशाही बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, हमारे संवाददाताओं को पीटा जा रहा है, और हमारे अख़बार को वितरित वाले एजेंटों को धमकी दी जा रही है. यह मौलिक अधिकारों और पूरे लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला है.’
बता दें कि आरएनआई ने एक अक्टूबर को संशोधित रजिस्ट्रेशन जारी किया था लेकिन एक दिन के अंदर ही उसे वापस भी ले लिया. सिन्हा ने कहा कि ये फैसला राजनीति से प्ररित है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान में कहा कि अगरतला से प्रकाशित ‘डेली देशेर कथा’ का पंजीकरण रद्द करने के आरएनआई के फैसले की वह निंदा करता है.
बयान में कहा गया, ‘गिल्ड का यह मानना है कि संपादक, प्रिंटर और प्रकाशक की सूचना के मेल नहीं खाने जैसी मामूली बात पर प्रकाशन का पंजीकरण रद्द करना ना केवल अनावश्यक प्रतिक्रिया है बल्कि एक कठोर कदम भी है. यह मीडिया की आजादी को कुचलने वाला फैसला है.’
बता दें कि एडिटर्स गिल्ड मीडिया संगठनों का एक मंच है. उसने इस आदेश को तत्काल वापस लेने का अनुरोध करते हुए गलत सूचना के आरोपों के संबंध में आगे जांच की मांग की है.
गिल्ड ने यह भी मांग की है कि सरकार इस बात की जांच करे कि फैसला राजनीतिक रूप से प्रेरित तो नहीं है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)