आरोपी वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय का शोधछात्र है जिसे पिछले सत्र में विश्वविद्यालय की ओर से कैंपस के जेंडर चैंपियन के रूप में नामित किया गया था.
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में 17 अप्रैल की शाम से कुछ छात्राएं और छात्र धरना दे रहे हैं. मामला एक शोध छात्रा के साथ यौन दुर्व्यवहार व छेड़छाड़ का है. छात्रों का आरोप है कि प्रशासन आरोपी के ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई न करके उसका बचाव कर रहा है. आरोपी हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग का शोधछात्र है और उसे पिछले सत्र में विश्वविद्यालय की ओर कैंपस के जेंडर चैंपियन के रूप में नामित किया गया था. छात्रों का कहना है कि आरोपी शोधछात्र पर पहले भी दो बार यौन उत्पीड़न का आरोप लग चुका है लेकिन विश्वविद्यालय ने चेतावनी देकर छोड़ दिया था.
धरनारत छात्र छात्राओं का कहना है कि यौन दुर्व्यवहार करने वाले शोधछात्र को फायदा पहुंचाते हुए प्रशासन ने मामले की जांच के दौरान ही उसकी पीएचडी सबमिट करा दी, जबकि उसकी सभी अकादमिक गतिविधियां निलंबित की जानी चाहिए थीं.
पीड़ित छात्रा ने आरोप लगाया है कि कुलपति और प्रशासन ने आरोपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की जगह उसकी पीएचडी थीसिस पहले ही जमा करा दी है. ताकि उसके करियर पर कोई आंच न आए, जबकि पीड़िता से तुरंत हॉस्टल खाली कर देने को कहा गया है.
पीड़ित छात्रा ने विश्वविद्यालय के महिला प्रकोष्ठ को दी शिकायत में कहा है कि उक्त छात्र ने मेरे साथ यौनिक दुर्व्यवहार किया, मुझे ज़बरन पकड़ने और अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश की. मेरे मना करने के बावजूद मेरा हाथ पकड़ कर खींचा और मेरे हाथ को चूमा. यह मेरे आत्मसम्मान के लिए गहरा आघात है. मेरे साथ ऐसा करने वाला छात्र पिछले सत्र में विवि की ओर से जेंडर चैंपियन के रूप में नामित किया गया था. कैंपस को जेंडर संवेदनशील बनाने के लिए चुने गए व्यक्ति द्वारा ही ऐसा किया जाना और भी त्रासद है.
धरनारत छात्रों का आरोप है, ‘महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय में पिछले महीने 13 मार्च को होली के दौरान पीएचडी के एक छात्र ने एमफिल की छात्रा के साथ सार्वजनिक स्थल पर यौन-दुर्व्यवहार व छेड़छाड़ की. पीड़िता पिछले एक महीने से न्याय के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के पास शिकायत लेकर जाती रही है. उसने महिला प्रकोष्ठ में भी शिकायत की, लेकिन आरोपी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई. पीड़िता को अधिकारियों ने यह कह कर इधर-उधर दौड़ाया कि यह केस मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है. तरह-तरह से पीड़िता को परेशान किया गया और उस पर दबाव भी बनाया गया कि वह अपनी शिकायत वापस ले ले.’
आरोप के अनुसार, दूसरी ओर आरोपी की ओर से भी पीड़िता को धमकाया गया लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया. आरोपी अपने साथियों के साथ 17 अप्रैल को प्रशासनिक भवन पर भारी संख्या में पहुंचा और संबंधित अधिकारियों से मिल कर जांच को प्रभावित करने की कोशिश की. आरोपी की इन सब गतिविधियों से परेशान होकर पीड़िता ने धरने पर बैठने का निर्णय लिया. पीडिता 9 बजे रात महिला छात्रावास के सामने धरने पर बैठी और उसका साथ देने के लिए भारी संख्या में विद्यार्थी उसके साथ आए.
धरने में शामिल राजेश सारथी ने बाताया, ‘धरना शुरू होने के बाद पीड़िता से बात करने के लिए चीफ प्रॉक्टर गोपाल कृष्ण ठाकुर, कुलसचिव कादर नवाज खान, उप-कुलानुशासक चित्रा माली और महिला छात्रावास की वार्डन अवंतिका शुक्ला आईं. पीड़ित पक्ष से अभी बात ही हो रही थी कि आरोपी पक्ष भी लगभग 50 छात्रों के साथ महिला छात्रावास आ पहुंचा. यह एक तरह से शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से पीड़िता को डरा कर धरना प्रदर्शन से उठाने का प्रयास था. यह सब विश्वविद्यालय के अधिकारियों के सामने हुआ. अधिकारियों ने आरोपी और उनके साथियों को समझा बुझा कर वापस भेज दिया और पीड़िता पर भी दबाव बनाया गया कि वह अपना धरना समाप्त कर दे. लड़की ने उठने से मना कर दिया और सभी अधिकारी वापस चले गए. पूरी रात पीड़िता और साथी, महिला छात्रावास के सामने धरने पर बैठे रहे.’
राजेश का कहना है, ‘घटना के अगले दिन ही शिकायत दर्ज हुई थी. एक महीने से ज़्यादा हो गया है. लेकिन पीड़ित लड़की को इधर से उधर दौड़ाया जा रहा है और दबाव बनाय जा रहा है कि वह शिकायत वापस ले ले. वीसी धरनास्थल पर आए तब उन्होंने भी लड़की से अभद्रता से बात की. पीड़िता ने यह कहते हुए धरना ख़त्म करने से मना कर दिया है कि वह पिछले एक महीने से ऑफिस में बात कर-कर के परेशान हो चुकी है.’
धरना दे रहे छात्रों की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है, ‘ध्यान देने की बात यह है कि आरोपी पर पहले भी कई आरोप लग चुके हैं और वह उनमें दोषी भी पाया गया है. लेकिन पहले के मामलों में उसे मामूली चेतावनी देकर छोड़ दिया गया. इस केस में भी आरोपी को प्रशासन द्वारा बचाने की कोशिश की जा रही है. यह बात इससे स्पष्ट हो रही है कि अभी तक प्रथम दृष्टया प्रशासन ने आरोपी के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की. पीड़िता ने मांग रखी है कि आरोपी को तत्काल हॉस्टल से एवं विश्वविद्यालय परिसर से निलंबित किया जाए जिससे कि वह पीड़िता और गवाहों को प्रभावित न कर सके.’
प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘प्रशासन की आरोपी के प्रति पक्षधरता इस बात से भी उजागर होती है कि जांच-प्रक्रिया पूरी होने के पहले ही आरोपी छात्र की पीएचडी थीसिस जमा करा ली गई जबकि जांच-प्रक्रिया के दौरान आरोपी की अकादमिक गतिविधियों पर हर क़िस्म की रोक लगाने का नियम है. इसलिए पीड़िता ने यह भी मांग रखी है कि जब तक मामले की जांच पूरी न हो, तब तक आरोपी की अकादमिक गतिविधियों को भी निलंबित किया जाए. विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रा की मांग पर ध्यान देने की जगह धरनारत छात्रों को ही धमका रहा है कि उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी.
पीड़ित लड़की ने फोन पर बताया,
‘हमारी मांग थी कि जब तब महिला सेल में जांच चल रही है तब तक के लिए आरोपी की सभी अकादमिक गतिविधियों को निलंबित किया जाए. बजाय कि उसपर कार्रवाई हो, उल्टा ही मुझे वीसी ने कह दिया है कि आप हॉस्टल ख़ाली कर दीजिए. मेरे साथ सार्वजनिक तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया. पहले प्रशासन ने आपसी समझौते की कोशिश की, बाद में महिला प्रकोष्ठ को मामला दिया. महिला प्रकोष्ठ जांच कर रही है, उससे शिकायत नहीं है, लेकिन जांच के दौरान आरोपी अपनी पीएचडी कैसे सबमिट करता है? ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि वह दोषी भी पाया जाए तो उसके अकादमिक करियर पर कोई आंच न आए. हमारे धरना देने पर भी पहले हमको एक से दूसरे के पास भेजा गया, बाद में हमें ही कहा जा रहा है कि आपका आचरण ठीक नहीं है, आप हॉस्टल ख़ाली कर दीजिए.’
बुधवार को छात्राओं ने धरना एक दिन के लिए स्थगित कर दिया है. धरने में शामिल एमए के छात्र पलाश किशन ने बताया, ‘यौन हिंसा पीड़ित को हिंदी विश्वविद्यालय में पिछले एक महीने से विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई न्याय नहीं दिया. समय-समय पर लड़की को धमकाया भी गया. बार-बार शिकायत करने पर भी प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि इस बीच आरोपी की पीएचडी का फाइनल सबमिशन विभाग द्वारा करवा दिया गया, इसके ख़िलाफ़ पीड़िता 17 अप्रैल की रात से प्रशासनिक भवन पर धरने पर बैठी है.’
किशन का कहना है, ‘प्रशासन से हम मांग कर रहे हैं कि जब तक इस मामले की जांच प्रक्रिया चल रही है तब तक आरोपी की अकादमिक गतिविधियां रोक दी जाएं. आरोपी तथा उसके समर्थक पूरे विश्वविद्यालय में यह अफवाह फैला रहे हैं कि ये लोग आरोपी की पीएचडी रद्द करवाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि हमारा सिर्फ़ इतना कहना है कि अगर मामले की जांच चल रही है तो उसकी अकादमिक गतिविधियां क्यों निरंतर जारी हैं? सबको पता है कि पीएचडी की फाइनल सबमिशन होने के बाद शोध छात्र विश्विद्यालय का छात्र नहीं रह जाता.’
धरने में शामिल एक छात्र ने बताया, ‘मंगलवार को जब हम सब अकादमिक और कुलपति कार्यालय के सामने धरने पर बैठे थे, कुलपति ने कहा कि यहां फालतू बैठे हैं, आप सब यहां से हट जाइए, नहीं तो पुलिस को बुलाकर लाठी चार्ज करवाऊंगा और लड़कियों के घर फ़ोन करूंगा. इसी दौरान कुलपति ने पीड़िता से कहा कि वह हॉस्टल छोड़ दे.’
कार्यवाही में देरी पर सवाल उठाते हुए किशन का कहना है, ‘पिछले महीने होली के दौरान यह वाकया हुआ था. उसी दौरान एक विदेशी छात्रा के साथ एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने छेड़खानी की थी. उस मामले में विश्वविद्यालय ने तात्कालिकता दिखाते हुए दूसरे दिन ही प्रोफेसर साहब को निलंबित करके कोलकाता केंद्र भेज दिया था. क्योंकि उस मामले में जापानी दूतावास से लगातार दबाव बनाया जा रहा था.’
विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने फोन पर बताया,
‘हमने विशाखा गाइडलाइन के अनुसार समिति बना दी थी. पूरी गाइडलाइन का पालन किया है, जांच की कार्यवाही चल रही है. यह तथ्य है जिसे कोई भी चेक कर सकता है. अब छात्रा चाहती है कि आरोपी को निलंबित किया जाए. हम ये कैसे कर सकते हैं? जांच से पहले हम निर्णय कैसे ले लें? पहले दंडित कर दें, जांच बाद मे हो, ऐसा कैसे हो सकता है? हम जांच से पहले कोई निर्णय ले लेंगे तब भी हम पर ही सवाल उठेगा.‘
प्रशासन की ओर से आरोपी के बचाव के सवाल पर वीसी गिरीश्वर मिश्र ने कहा, ‘मैं इस आरोप का सख़्त विरोध कर रहा हूं. इस आरोप का कोई आधार नहीं है. हम आरोपी का पक्ष लिए बिना, बिना किसी पूर्वाग्रह के जांच चल रही है. जो प्रक्रिया है वह तो पूरी करनी पड़ेगी, उसी के अनुसार दंड दिया जाएगा. तत्काल हम कोई निर्णय कैसे ले सकते हैं? हमने दोनों पक्षों से हॉस्टल ख़ाली करने को कह दिया है, क्योंकि उनके पाठ्यक्रम समाप्त हो गए हैं. दोनों पक्ष यहां रहकर सिर्फ़ आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं. इसलिए दोनों को जाने को कह दिया है. 17 की रात लड़कियां लड़कों के हॉस्टल में जाकर हंगामा कर रही थीं. किसी को कुछ हो जाए तो वह भी तो हमारी ही ज़िम्मेदारी है. प्रक्रिया और प्रावधान के तहत जो सही होगा, वैसा किया जाएगा. आरोपी को बचाने का प्रश्न ही नहीं उठता है. मुझे कहीं से भी किसी दुष्ट के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है.’ आरोपी का पक्ष लेने के लिए उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन बंद था.