स्टिंग ऑपरेशन नहीं जवान की आत्महत्या के पीछे कोर्ट मार्शल का डर रहा होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

महाराष्ट्र के नासिक स्थित देओलाली कैंप पुलिस ने 23 मार्च 2017 को पत्रकार पूनम अग्रवाल और पूर्व सैनिक दीपचंद सिंह के ख़िलाफ़ राय मैथ्यू नाम के जवान को आत्महत्या के लिए उकसाने का विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र के नासिक स्थित देओलाली कैंप पुलिस ने 23 मार्च 2017 को पत्रकार पूनम अग्रवाल और पूर्व सैनिक दीपचंद सिंह के ख़िलाफ़ राय मैथ्यू नाम के जवान को आत्महत्या के लिए उकसाने का विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था.

बॉम्बे हाई कोर्ट (फोटो : पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)

मुंबई: वरिष्ठ पत्रकार और अवकाश प्राप्त सैनिक के ख़िलाफ़ दायर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को रद्द करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि सेना के जवान की आत्महत्या के पीछे कोर्ट मार्शल की आशंका रही होगी न कि स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो.

महाराष्ट्र के नासिक स्थित देओलाली कैंप पुलिस ने 23 मार्च 2017 को वरिष्ठ पत्रकार पूनम अग्रवाल और पूर्व सैनिक दीपचंद सिंह के ख़िलाफ़ राय मैथ्यू नाम के जवान को आत्महत्या के लिए उकसाने का विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया.

इससे पहले सात फरवरी 2017 को भारतीय सेना में सहायक के तौर पर काम करने वाले मैथ्यू ने आत्महत्या कर ली थी.

न्यूज़ वेबसाइट ‘द क्विंट’ की एसोसिएट एडिटर पूनम अग्रवाल पूनम ने एक स्टिंग वीडियो के लिए इस जवान का इंटरव्यू लिया था. आरोप था कि आर्मी कैंप के वरिष्ठ अधिकारी अपने सहायकों से नौकरों जैसा काम लेते हैं, जबकि सेना की ओर से 19 जनवरी 2017 को जारी सर्कुलर में इस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका था.

स्टिंग ऑपरेशन का यह वीडियो फरवरी 2017 में वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था. पूनम ने पूर्व सैन्य अधिकारी और कारगिल युद्ध के नायक दीपचंद सिंह की मदद से यह स्टिंग ऑपरेशन किया था.

इस स्टिंग में लांस नायक रॉय मैथ्यू सेना में जारी सहायक सिस्टम पर सवाल उठाते हुए नज़र आए थे. वीडियो में तमाम सहायकों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था.

पुलिस के अनुसार, मैथ्यू को एक स्टिंग आपरेशन में दिखाया गया था, यह स्टिंग पूनम अग्रवाल और दीपचंद सिंह ने किया था, इसके बाद डर और शर्म के कारण मैथ्यू ने आत्महत्या कर ली.

पूनम और सिंह ने बाद में उच्च न्यायालय का रुख़ किया और अपने ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी को ख़ारिज किए जाने की मांग की. बीते अप्रैल महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने जवान की आत्महत्या मामले में पत्रकार पूनम अग्रवाल के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी थी.

जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने 18 अप्रैल को इस मामले को ख़ारिज करते हुए कहा था कि बाद में अदालत इस बारे में विस्तृत फैसला सुनाएगी.

सोमवार को उलब्ध अदालत के आदेश के अनुसार, पूनम और दीपचंद सिंह के ख़िलाफ़ जो शिकायत दी गई है वह भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के प्रावधानों को लागू करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त और नाकाफी है.

आदेश में कहा गया है कि राय मैथ्यू ने सहायक प्रणाली पर कुछ टिप्पणी की थी और जब क्लिप वायरल हुआ तो उसके वरिष्ठ उससे जरूर पूछताछ करते.

अदालत ने अपने आदेश में कहा है, ‘यह कोर्ट मार्शल का डर था जो जवान की आत्महत्या का कारण हो सकता है. उसने केवल कोर्ट मार्शल और इसके घातक परिणामों के डर के कारण आत्महत्या कर ली.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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