ग्राउंड रिपोर्टः महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 1 मई को हुए हमले से कुछ दिन पहले सुरक्षाकर्मियों ने दो ‘निहत्थी’ महिला नक्सलियों को मार गिराया था. पुलिस का कहना है कि उनकी मौत का बदला लेने के लिए ही इनमें से एक के पति ने इस हमले की योजना बनाई.
मर्कानार/गुंडुरवाही (गढ़चिरौली): महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के दंडकारण्य जंगलों के अंदर स्थित मर्कानार गांव में रह रही 22 वर्षीय छाया लेकामी दुनिया को बताना चाहती हैं कि पिछले कुछ सप्ताह के दौरान उस पर और उसकी आठ महीने की बेटी वैष्णवी पर क्या बीती है.
गढ़चिरौली पुलिस ने कोठी चौकी पर बिना किसी आधार के दोनों मां-बेटी को कथित तौर पर चार दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा और अचानक ही बिना कोई कारण बताए रिहा भी कर दिया. लेकिन छाया की चिंता उनकी रिहाई के साथ ही खत्म नहीं हुई.
27 अप्रैल को उनकी रिहाई से दो दिन पहले गढ़चिरौली पुलिस के सी-60 कमांडो यूनिट ने उनके गांव गुंडुरावाही से नाटकीय तरीके से उनके पति विष्णु दोके लेकमी को उठा लिया. गुंडुरावाही, मर्कानार से केवल दो किमी दूर है, जहां छाया ने शरण ले रखी है. एक दिन बाद, 28 अप्रैल को विष्णु के बड़े भाई साधु को भी ठीक उसी तरह हिरासत में ले लिया गया.
यह औचक घटनाक्रम सी-60 कमांडोज द्वारा प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के कथित दो सदस्यों को मार गिराए जाने के बाद हुआ. इन सदस्यों की पहचान कमला नुरोटी उर्फ रामको और शिल्पा दुर्वा के रूप में हुई. रामको की उम्र लगभग 40 थी और वह सीपीआई (माओवादी) की डिविजल कमेटी की सदस्य थी, जबकि लगभग 20 साल से दलम की सदस्य थी.
पुलिस का कहना है कि रामको की मौत का बदला लेने के लिए उनके पति भास्कर हिचामी के नेतृत्व में नक्सलियों ने एक मई को हमला करने की योजना बनाई और इसे अंजाम दिया. इस हमले में क्विक रेस्पॉन्स टीम (क्यूआरटी) के 15 कमांडो शहीद हुए थे.
ग्रामीणों का कहना है कि 27 अप्रैल की सुबह रामको और दुर्वा पास के गांव पोयोरकोटी गई थीं. उनकी यह बात पुलिस के बयान से मेल खाती है. ग्रामीणों का कहना है कि जब वे पोयोरकोटी और गुंडुरवाही गांव के बीच घने जंगल से गुजर रही थी तो पुलिस ने पकड़ लिया.
छाया ने संवाददाता को बताया कि पेशे से किसान उनके पति मोटरसाइकिल से उसी रास्ते से जा रहे थे, जहां से नक्सली जा रहे थे कि तभी नक्सलियों में से एक ने उन्हें रोका और उन्हें जंगल में कुछ किलोमीटर छोड़ने को कहा. छाया ने कहा, ‘मेरे पति ने सिर्फ उनकी बात मानी.’ छाया के मुताबिक विष्णु का नक्सलियों से कोई संबंध नहीं हैं और उन्हें गलत पकड़ा गया.
गढ़चिरौली के भामरागढ़ तालुका के घने जंगल में जहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं और सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन नहीं हैं, गांव वालों के पास कोई विकल्प नहीं होता और उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. ऐसे में जब कोई मोटरसाइकिल गुजरती है तो पैदल चलने वाले तुरंत मदद मांगते हैं.
छाया रोते हुए कहती हैं, ‘मोटरसाइकिल से कहीं छोड़ने की कहना कुछ असामान्य नहीं था. मेरे पति ने समझ लिया होगा कि वे स्थानीय लोग हैं और इसलिए उन्हें छोड़ने के लिए तैयार हो गए लेकिन पुलिस ने दो अन्य महिलाओं के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. वह तब से घर नहीं लौटे हैं.’
ग्रामीणों ने द वायर को बताया कि दोनों लेकामी भाइयों के अलावा पुलिस ने 50 वर्षीय जलीपितरू पोदाडी को भी अवैध रूप से हिरासत में रखा है. हालांकि द वाय र गांव में पितरू पोदाडी के परिवार का पता नहीं लगा सका और इसलिए इस दावे की पुष्टि नहीं कर सकता.
लेकामी भाइयों की हिरासत के बाद से पुलिस गुंडुरवाही गांव में उनके घर कई बार गई. छाया ने कहा, ‘वे पहली बार हमें (मां-बेटी) अपने साथ पुलिस थाने ले गए और बाद में मेरी रिहाई के बाद पुलिस दोबारा आई और मोटरसाइकिल ले गई.’
तीनों गांव पोयोरकोटी, गुंडुरवाही और मर्कानार कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं. हर गांव में लगभग 30 से 35 घर हैं, जिनमें मड़िया जनजाति के लोग रहते हैं. ये गांव सीमावर्ती तालुका भामरागढ़ में हैं.
एक ओर छत्तीसगढ़ का सुंदर अबूझमाड़ इलाका है, जिसे गोंडी में ‘अज्ञात पहाड़ी’ के नाम से जाना जाता है तो दूसरी ओर लंबे-लंबे ताड़ के पेड़ हैं. इन गांवों में छोटी-छोटी नदियां बहती हैं और इनमें से एक तो एक गांव से दूसरे गांव में बहती हैं.
महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में दूसरे जिलों की तरह गढ़चिरौली में काफी बारिश होती है. बारिश के मौसम में नदियों में बाढ़ आ जाती है और ऐसे में भामरागढ़ में गांवों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है इस वजह से ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि नक्सलियों को यह इलाका सुरक्षित लगता है.
नक्सली आमतौर पर यहां आते हैं, कभी सामान खरीदते हैं, कभी स्थानीय लोगों से मुफ्त में भोजन लेते हैं और कई बार गंभीर रूप से बीमार होने पर यहीं आराम करते हैं. 25 अप्रैल को तड़के ही रामको और दुर्वा भी इन्ही वजहों से पोयारकोटी गांव आईं थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि दोनों ने साधारण साड़ी पहनी थी और दोनों एक ग्रामीण के घर में रुकी थीं.
जिस ग्रामीण के घर में दोनों महिला रुकी थीं, वह कहते हैं, ‘वे यहां देर शाम आई थीं और खाना मांगा था. ऐसी स्थिति में ग्रामीण ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. हम उनकी पहचान से वाकिफ थे लेकिन ज्यादा कुछ नहीं कर सके. हमने उनके लिए थोड़ा बहुत खाना बनाया, वे रात में यहीं रुके और 26 अप्रैल को भी रुके. 26 अप्रैल की रात को वे चली गईं लेकिन अगली सुबह फिर वापस आ गईं.’
परिवार के प्रमुख ने द वायर से कहा, ‘हमने जल्दी से खाना बनाया, उन्होंने तब तक खाया, जब तक उनका पेट नहीं भर गया और उसके बाद वे गुंडुरवाही गांव की ओर चली गईं.’ इसके 15 मिनट से भी कम समय में दोनों महिलाओं को पुलिस ने पकड़ लिया और बाद में मार दिया.
राज्य के खुफिया विभाग के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की कि लेकामी भाइयों और गांव के किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कोई आरोप नहीं दर्ज किया गया है. छाया ने द वायर को बताया कि विष्णु और साधु को कहां रखा गया है, इसका पता लगने के बाद परिवार वाले और गांव के कुछ लोग जिला पुलिस की कोटी चौकी पहुंचे.
छाया ने कहा, ‘पुलिस ने कहा कि उन्हें गढ़चिरौली मुख्यालय ले जाया गया है. हमने एफआईआर कॉपी और साक्ष्यों की मांग की, जिससे यह पता चल सके कि मेरे परिवार के लोग ठीक हैं लेकिन पुलिस टस से मस नहीं हुई.’
जब इस संवाददाता ने अवैध रूप से हिरासत में रखे जाने और स्थानीय लोगों द्वारा लगाए गए आरोपों के बारे में जानने के लिए गढ़चिरौली के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग से संपर्क किया तो गर्ग ने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया और एक मई को नक्सली हमले में 15 कमांडोज के शहीद होने के बारे में सिर्फ छह मिनट की फोन पर बात की.
उन्होंने अधिक कुछ कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह जिन पत्रकारों से परिचित नहीं हैं, उनसे बात नहीं करते. पुलिस अधीक्षक शैलेश बालकवाडे और गढ़चिरौली पुलिस के जनसंपर्क कार्यालय ने भी जवाब देने से इनकार कर दिया.
उनके पास हथियार नहीं थे फिर भी उन पर गोलियां चलाई गई
रामको और दुर्वा ग्रामीणों के लिए अनजान नहीं थीं. ग्रामीण बताते हैं कि वे अक्सर गांव में आया करती थीं, जब भी वे आती थीं, उनके पास हथियार नहीं होते थे. वे गांव में कुछ विश्वसनीय लोगों से ही बात करती थीं और उसके बाद चुपचाप चली जाती थीं.
हाल ही में हुई एक मीटिंग में उन्होंने सुझाव दिया था कि मई के मध्य से शुरू होने वाली तेंदू पत्तों की बिक्री में इस बार मिल-जुलकर काम करेंगे.
ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास हथियार नहीं थे, उन्होंने साड़ियां पहनी हुई थीं और उनके पास राशन का सामान था. गुंडुरवाही के एक शख्स कहते हैं, ‘तो उन्हें क्यों मारा गया? गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?’
यह शख्स पास की झील के पास मछली पकड़ने गया था, जब पुलिस ने दोनों महिलाओं को पकड़ा था. उनका कहना है कि उन्होंने गांव में पुलिस की गतिविधि देखी थी और बाद में रामको और दुर्वा को पकड़े जाने को भी इसने देखा था.
हालांकि पुलिस का बयान इससे पूरी तरह अलग है. पुलिस के मुताबिक, नक्सली महिलाएं 22 अप्रैल 2018 को हुई हिंसा का बदला लेने की योजना बना रही थीं, जिसमें प्रमुख नक्सली नेता को मार गिराए जाने सहित 40 लोगों की मौत हुई थी.
उस मुठभेड़ में 32 वर्षीय दोलेश उर्फ साईनाथ आत्रम को मार गिराए जाने के बाद पिछले साल रामको डीवीसी के सदस्य बनी थी. इस बीच पुलिस ने पुष्टि की कि साईनाथ सहित मारे गए तीनों लोगों में प्रभावशाली नक्सली थे. हमले में मारे गए लोगों में आठ बच्चे भी थे.
राज्य सरकार ने रामको पर 16 लाख रुपए का इनाम रखा था. उसका विवाह दूसरे डीवीसी सदस्य हिचामी भास्कर के साथ हुआ था, जिसे लेकर पुलिस का कहना है कि वह एक मई को क्यूआरटी कमांडोज पर हुए हमले का मास्टरमाइंड था.
एक मई के हमले के तुरंत बाद नक्सलियों ने कई गांवों में रात में भी कई बैनर लगाए, जिसमें कहा गया कि उन्होंने रामको की मौत का बदला लेने के लिए इस हमले की योजना बनाई थी. पुलिस का कहना है कि उसके लंबे समय तक साथी रहे और उत्तर गढ़चिरौली से डीवीसी के सदस्य हिचामी ने चार अलग-अलग स्थानों पर कथित तौर पर घात लगाकर हमले की योजना बनाई थी.
पुलिस यह भी कहती है कि इनमें से नक्सलियों का एक हमला कामयाब रहा और यह हमला एक मई को हुआ था, जिसमें क्यूआरटी के 15 कमांडोज शहीद हुए. इसमें कुरखेड़ा में जंभूर खेड़ा के पास स्थानीय नागरिक ड्राइवर की भी मौत हो गई.
गढ़चिरौली पुलिस ने हिचामी को मुख्य आरोपी बताया है. इसके अलावा इस हमले में सीपीआई (माओवादी) के 39 सदस्य शामिल थे. हमले के तुरंत बाद जारी किए गए पत्र में नक्सलियों ने रामको की हत्या की स्वतंत्र जांच की मांग की है.
द वायर के पास इसकी एक प्रति है, जिसमें ग्रामीणों की तरह नक्सलियों का भी दावा है कि रामको और दुर्वा की हत्या पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में की है.
पत्र में कहा गया, ‘सी-60 कमांडोज ने झूठी मनगढ़ंत कहानी गढ़ी और इसे मीडिया में जारी कर दिया. सी-60 के कमांडो ने उन्हें अमानवीय तरीके से प्रताड़ित किया और सिर्फ दो से तीन घंटे के भीतर ही उनकी हत्या कर दी. कृपया इसकी जांच करें.’
इन दोनों की मौत के बाद गांव वालों को लग रहा है कि अब दोनों ओर से ज्यादा खून बहेगा. पुलिस को संदेह है कि ग्रामीण नक्सलियों को पनाह देते हैं और नक्सली ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं, जो रामको और दुर्वा की गतिविधि को लेकर पुलिस से जुड़ी जानकारी दे सकें.
नजदीक के गांव मर्कानार में रहने वाले पेका मडी पूंगटी का कहना है कि अंत में हम आदिवासी लोग ही होंगे, जिन्हें बड़े पैमाने पर नुकसान होगा.
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