लगातार विवादों में घिरा सरकारी पत्रकारिता संस्थान आईआईएमसी अब परिसर के भीतर यज्ञ आयोजित कर रहा है जिसमें आरएसएस मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ के प्रकाशक भी शामिल होंगे.
देश के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों में से एक भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) एक बार फिर विवादों में आ गया है. 20 मई को ‘मीडिया स्कैन’ नामक एक संस्था के साथ मिलकर आईआईएमसी मीडिया पर एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है. ‘वर्तमान परिपेक्ष में राष्ट्रीय पत्रकारिता’ नाम से इस कार्यक्रम में यज्ञ का भी आयोजन किया गया है. इस पूरे दिन के कार्यक्रम में बहुत सारे विषयों पर चर्चा होनी है. इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय पत्रकारिता, नक्सली रिपोर्टिंग, इतिहास पुनर्लेखन, वंचित समाज के सवाल और कश्मीर मामले को लेकर चर्चा होनी है.
‘मीडिया स्कैन’ दरअसल एक साप्ताहिक अख़बार है, जो 2007 से प्रकाशित हो रहा है. वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी इस अख़बार के संपादक के रूप में काम करते हैं और वो इस कार्यक्रम में बतौर वक्ता शामिल होंगे. इस कार्यक्रम के संयोजक आशीष अंशु हैं. वे 20 मई के कार्यक्रम को लेकर कहते हैं, ‘इस कार्यक्रम को लेकर सिर्फ़ मीडिया विवाद खड़ा कर रहा है. पता नहीं लोगों को यज्ञ से इतनी आपत्ति क्यों है? इससे वातावरण शुद्ध होता है.’
एक पत्र के अनुसार कार्यक्रम में वंचित समाज के विषय पर बस्तर रेंज के पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी को भी बतौर वक्ता बुलाया गया है. कल्लूरी पर अंशु कहते हैं, ‘उन्होंने कार्यक्रम को लेकर शुभकामना भेजी है. उनका आना नहीं आना अभी तय नहीं हुआ है. उन्होंने कहा है कि वो कार्यक्रम में शामिल होने की पूरी कोशिश करेंगे.’
छत्तीसगढ़ के बस्तर में आईजी पद पर रहने के दौरान आईजी कल्लूरी पर आरोप लगे थे कि उनके कार्यकाल में ग्रामीण आदिवासियों की प्रताड़ना, दमन, आदिवासियों के गांव जलाने, कथित तौर पर जवानों द्वारा ग्रामीण महिलाओं के साथ बलात्कार करने और मानवाधिकार हनन के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई.
कार्यक्रम को लेकर मौजूदा और पूर्व छात्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध जताने की कोशिश की है. कुछ छात्रों का कहना है कि कार्यक्रम में शामिल होने वाले ज़्यादातर लोग स्थापित पत्रकार नहीं है और किसी भी का पत्रकारिता क्षेत्र में कोई विशेष योगदान नहीं है. कार्यक्रम में आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य के प्रकाशक हितेश शंकर भी एक सत्र का संचालन करते नज़र आएंगे.
हिंदी पत्रकारिता के मौजूदा छात्र रोहिन कुमार इस कार्यक्रम को लेकर कहते हैं, ‘कार्यक्रम में पांचजन्य के प्रकाशक को बुलाने का कोई तुक नहीं बनता, या तो महानिदेशक साहब एलान कर दें कि वो एक विशेष विचारधारा के लिए काम कर कर रहे हैं. संस्थान में अन्य धर्म और नास्तिक लोग भी हैं. क्या ऐसे कार्यक्रम से उन सभी को ठेस नहीं पहुंचेगी? यह सिर्फ़ संस्थान का भगवाकरण करने की कोशिश है.’
रोहिन आगे कहते हैं, ‘भारत एक सेक्युलर देश है और एक सरकारी संस्थान जो जनता के टैक्स के पैसों से चल रहा है, वहां इस तरह का यज्ञ कैसे आयोजित किया जा सकता है. पत्रकारिता राष्ट्रवादी कैसे हो सकती है? जबकि आज समाज में यही चलन है कि सबको राष्ट्रवादी पत्रकार बनना है. कल कोई गृह-युद्ध हो जाए तो क्या यह पत्रकार सरकार की तरफ़ से लिखेंगे? पत्रकार को जनता का प्रतिनिधि होना चाहिए न की सरकार का.’
यह भी कहा जा रहा है कि जब से सुरेश की नियुक्ति बतौर महानिदेशक हुई है, तब से संस्थान में अन्य विचारों को जगह नहीं मिल पा रही है. कहा जा रहा है कि सुरेश के संघ से जुड़ाव के कारण यह सभी घटनाएं हो रही हैं. वो हिंदुत्व एजेंडे के तहत अपना काम कर रहे हैं.
कार्यक्रम पर भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘यह कार्यक्रम ‘मीडिया स्कैन’ आयोजित कर रहा है और संस्थान बस उनकी मदद कर रहा है. हम कार्यक्रम में 9.30 बजे शामिल होंगे, उसके पहले वे क्या करते हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं. पिछली सरकार के शासन काल में परिसर में सरस्वती की प्रतिमा की स्थापना हुई थी, उसपर किसी ने तब आपत्ति नहीं जताई तो अब क्यों बोल रहे हैं.
सेक्युलर देश के सरकारी संस्थान में धार्मिक अनुष्ठान के सवाल पर सुरेश कहते हैं, ‘मेरा सेकुलरिज्म भारतीय है, न कि विदेशी. हमारे भारत के सेकुलरिज्म में सभी धर्मों का समावेश है और कल कोई संस्थान में नमाज़ का कार्यक्रम आयोजित करना चाहेगा तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी. ग़ौरतलब है कि कार्यक्रम में महानिदेशक सुरेश भी शामिल होंगे.
हिंदी पत्रकारिता के मौजूदा छात्र आशुतोष राय ने इस कार्यक्रम की निंदा करते हुए कहा, ‘यह कार्यक्रम बहुसंख्यकवाद को थोपने का प्रयास है. सरकारी संस्थान में यज्ञ जैसे कार्यक्रम को आयोजित करना नैतिक रूप से ग़लत है और यह पत्रकारिता के विमर्श को ख़त्म कर देगा. धर्म एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में अधिकतर लोग विरोध नहीं करते और इसी का फ़ायदा उठाकर संस्थान के उच्च अधिकारी कार्यक्रम की आड़ में अपने एजेंडे को साध रहे हैं.’
आशुतोष आगे कहते हैं कि ‘अगर पत्रकारिता संस्थान में ऐसे धार्मिक कार्यक्रम होने लगे तो हो सकता है कि कल आसाराम जेल से छूटने के बाद अपना सत्संग संस्थान में आयोजित करने लगे. इन सभी घटनाओं से संस्थान का नाम मिट्टी में मिल रहा है और इसका दायित्व संभालने वाले लोग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं.
द वायर ने संस्थान के कुछ प्रोेफेसरों से 20 मई वाले कार्यक्रम पर बात करने की कोशिश कि तो उन्होंने इसपर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. एक प्रोफेसर का कहना था कि उन्हें इस कार्यक्रम के बारे में कोई भी औपचारिक जानकारी नहीं है, जबकि संस्थान को सर्कुलर जारी करके सबको सूचना देनी चाहिए थी.
संस्थान के एक और छात्र राघवेंद्र सैनी ने फेसबुक पर इस कार्यक्रम की प्रशंसा की है. सैनी ने कार्यक्रम को लेकर केजी सुरेश से आग्रह किया है कि संस्थान इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करे.
संस्थान लगभग एक साल से विवादों में घिरा हुआ है. इससे पहले नरेन सिंह राव इस साल संस्थान से निकाले जा चुके हैं. उन्होंने 25 निकाले गए दलित सफाई कर्मचारियों का समर्थन किया था, जिसके बाद उनका कॉन्ट्रैक्ट बिना सूचना दिए संस्थान से ख़त्म कर दिया गया था. मामला अभी अदालत में है.
आईआईएमसी के पूर्व छात्र और शिक्षक के रूप में नरेन कहते हैं, ‘बेहद दुःख की बात है कि देश का इतना बड़ा पत्रकारिता संस्थान अब फासीवादी ताक़तों का अखाड़ा बन चुका है. डर के कारण संस्थान में मौजूदा प्रोफेसर और कर्मचारी भी घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. संस्थान के मौजूदा और पूर्व छात्रों को इसका विरोध करना चाहिए और संस्थान को किसी विचारधारा में डूबने से बचाना चाहिए. इस संस्थान ने देश को बेहतरीन पत्रकार दिए हैं और आज इस तरह के कार्यक्रम से उन सभी को बेइज़्ज़्त होना पड़ेगा.’
नरेन के निष्कासन के बाद हिंदी पत्रकारिता के छात्र रोहिन कुमार ने न्यूज़ लॉन्ड्री के लिए एक लेख लिखा था, जिसके बाद उसे संस्थान से निलंबित कर दिया गया था. संस्थान महानिदेशक केजी सुरेश ने इस मसले पर कहा था कि कोई भी अदालत में लंबित मामले पर कैसे रिपोर्ट लिख सकता है.
हालांकि केजी सुरेश के नमाज़ वाले तर्क पर छात्रों का यह भी कहना है कि संस्थान में पी साईनाथ जैसे प्रख्यात पत्रकार और अन्य अच्छे पत्रकार जिनका संघ से जुड़ाव नहीं है, उन्हें आने से रोक दिया जाता है.
पिछले वर्ष हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही संस्थान विवादों में घिर गया था. मार्च 2015 में संस्थान के कुछ दलित छात्रों की फेसबुक पोस्ट को लेकर शिकायत की गई थी. उस मामले में संस्थान की विफलता के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद मामला ठंडा हुआ था.
संस्थान में बतौर शिक्षक अमित सेन गुप्ता ने रोहित वेमुला की आत्महत्या पर विमर्श कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. इस कारण संस्थान ने गुप्ता का ओड़िशा सेंटर में तबादला कर दिया, जिसके बाद उन्होंने संस्थान से इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्होंने संस्थान पर उनकी आवाज़ दबाने का आरोप भी लगाया था. अमित फ़िलहाल विभिन्न संस्थानों में पत्रकारिता के छात्रों को पढ़ाते हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं.
सफाई कर्मचारी के रूप में संस्थान में कार्यरत एक महिला ने संस्थान में कार्यरत क्लर्क पर बलात्कार का आरोप लगाया था.
उसमें भी महिला की शिकायत के बाद उनके पति का कहना है कि उनपर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. महिला के पति ने संस्थान के कुछ अधिकारियों पर यह भी आरोप लगाया है कि वे पैसे लेकर मामला वापस लेने का दबाव बना रहे हैं. पीड़ित महिला का कहना है कि आरोपी का पिता सूचना प्रसारण मंत्रालय का कर्मचारी है, इसलिए उसे संस्थान में न्याय नहीं मिल रहा है. मामला अभी अदालत में है और आरोपी फ़िलहाल ज़मानत पर बाहर है.
संस्थान में छात्रों पर नज़र रखने की भी बात सामने आई थी. आरटीवी पत्रकारिता के छात्र सचिन कहते हैं, ‘हम जब संस्थान में आए थे, तब से हमारी विचारधारा को लेकर हमसे दूरी बना ली गई थी. जब हमने किसी भी मुद्दे पर आवाज़ उठाई तो हमारे घर पर पत्र भेजा गया कि आपका बच्चा संस्थान का नाम ख़राब कर रहा है. डीन ऑफ़ स्टूडेंट वेलफेयर ने मुझसे कहा था कि तुम्हारा फेसबुक और व्हाट्सएप पोस्ट का स्क्रीन शॉट हमारे पास है. उन्होंने यह धमकी भरे लहजे में कहा था. उन्हें स्टूडेंट वेलफेयर के लिए डीन बनाया गया है पर वे संस्थान के आकाओं के वेलफेयर के लिए काम कर रही हैं. हम बालिग हैं और हमें फ़ैसले लेने का अधिकार है और संस्थान का काम पत्रकारिता पढ़ाना है न कि नैतिकता और विचारधारा. पता नहीं क्यों हमारे शिक्षक मां-बाप बनने का प्रयास करते हैं.’
सचिन आगे कहते हैं, ‘संस्थान में आरएसएस से जुड़े लोगों को बुलाया जाता और सवाल पूछने पर एंटी नेशनल बोल दिया जाता है. संस्थान में कुछ छात्र महानिदेशक की तरफ़ होने का दावा करते हैं और मारने पीटने की भी धमकी देते हैं.’
आईआईएमसी में पिछले हफ़्ते आरटीआई पर ग़लत जानकारी देने की घटना सामने आई थी.
आरटीवी पत्रकारिता के छात्र अंकित सिंह का कहना है, ‘महानिदेशक कभी भी छात्रों से सवांद नहीं करते. हर सवाल पर कहते हैं आरटीआई दाख़िल करो. जब आरटीआई डालो तो उनका सूचना अधिकारी ग़लत ज़वाब देता है. एक बड़े कम्युनिकेशन संस्थान में इस तरह की संवादहीनता कैसे हो सकती है. अंकित ने आईआईएमसी और आरएसएस से जुड़े विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के एक संयुक्त कार्यक्रम को लेकर संस्थान से जानकारी मांगी थी, जिसमें सूचना अधिकारी ने अपने जवाब में कहा था कि इस बारे में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.
आरटीआई के जवाब पर केजी सुरेश ने द वायर को बताया कि सूचना अधिकारी ने जो जवाब भेजा था, वो ग़लती से चलाया गया था. यह सब संवादहीनता के कारण हुआ था. उन्होंने सोमवार को अंकित को नया जवाब भेजने की बात कही थी, लेकिन अंकित के अनुसार उन्हें अभी तक कोई भी जवाब नहीं मिला है.
महानिदेशक केजी सुरेश पर संस्थान का भगवाकरण का आरोप भी लगता रहा है. सुरेश संस्थान में पद संभालने से पहले विवेकानंद इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन में अहम भूमिका निभाते थे. विवेकानंद फ़ाउंडेशन का आरएसएस से नज़दीकी जुड़ाव है. फ़ाउंडेशन के लोगों को भी सरकार में अहम पद बांटे गए हैं, जिससे यह कहा जा सकता है कि सरकार पर इसका काफ़ी प्रभाव है. सुरेश के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल भी फाउंडेशन का हिस्सा रहे हैं. दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल भी फ़ाउंडेशन से जुड़े रहे हैं.
महानिदेशक सुरेश ने जून 2015 में द पायनियर में एक लेख लिखा था, जिसमे उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को देशद्रोही और नक्सलियों का अड्डा बताया था. सुरेश पर छात्रों ने आरोप लगाया है कि वो छात्रों के सवालों का जवाब नहीं देते और जब ट्विटर पर सवाल पूछा जाए तो उसे ब्लॉक कर देते हैं. आईआईएमसी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से भी कई छात्र ब्लॉक किए जा चुके हैं.
साकेत आनंद मौजूदा छात्र हैं. जब उन्होंने आईआईएमसी के वीआईएफ के साथ वाले कार्यक्रम के बारे में ट्विटर के माध्यम से सवाल पूछा तो उन्हें संस्थान के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ब्लॉक कर दिया गया. साकेत अपने फेसबुक पर लिखते हैं, ‘आईआईएमसी के डीजी को कोई समझाओ कि आरएसएस का प्रचार बंद कर पत्रकारीय मूल्यों को बहाल कर दें.’
आईआईएमसी के एक मौजूदा छात्र नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘पत्रकारिता संस्थान में यह हमेशा सिखाया जाता है कि जो सत्ता में बैठा है, उससे सवाल पूछा जाए. क्या इस तरह से ब्लॉक करना सवाल पूछने की परंपरा को ख़त्म करने का प्रयास है? मुझे भी ब्लॉक कर दिया गया क्योंकि मैंने भी सवाल पूछने का काम कर दिया था. संस्थान ने निधि राजदान, दीपक चौरसिया, सुधीर चौधरी, चित्रा सुब्रमण्यम, नीलेश मिश्रा, सोनल कालरा और वर्तिका नंदा जैसे नामी पत्रकारों को सिखाया है. क्या उनका भी पत्रकारिता को लेकर यही सोचना है.’
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार यह भी बात सामने आई थी कि महानिदेशक सुरेश को आईआईएमसी का महानिदेशक बनाने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय ने असहमति जताई थी. कहा जा रहा था कि अनुभवहीनता के कारण उन्हें यह पद नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन संघ से नज़दीकियों के कारण उन्हें यह पद दे दिया गया.
2015-16 बैच के दीक्षांत समारोह में सूचना प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने भी छात्रों को हिदायत दी कि युवा पत्रकारों को राष्ट्र निर्माण के लिए पत्रकारिता करनी चाहिए. जिसका सोशल मीडिया पर ख़ासा विरोध भी हुआ था कि कैसे कोई भावी पत्रकारों को इस तरह की हिदायत दे सकता है. अंग्रेजी पत्रकारिता की एक पूर्व छात्रा का कहना था कि ‘हमें नायडू से पत्रकारिता सीखने की आवश्यकता नहीं है.’
महानिदेशक सुरेश ने एक वेबसाइट को बयान दिया था कि उन्होंने संस्थान पर जेएनयू का प्रभाव कम कर दिया है. एक पूर्व छात्र का कहना है, ‘एक संस्थान के महानिदेशक का एक दूसरे संस्थान के ख़िलाफ़ इस तरह का बयान देने का क्या तर्क है? इस सवाल का जवाब उनके जून, 2015 में ‘द पायनियर’ में लिखे लेख में स्पष्ट रूप से मिलता है.’
केजी सुरेश पर संस्थान का भगवाकरण करने का आरोप लगता रहा है. कुछ महीने पहले दलित चिंतक दिलीप मंडल की किताब ‘मीडिया का अंडरवर्ल्ड’ को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था. नाम न लिखने की शर्त पर कुछ छात्रों का कहना है कि केजी सुरेश की ख़ुद की कोई सोच नहीं है, वे सिर्फ़ संघ के एजेंडे को लेकर चल रहे हैं. पत्रकार बनने से ज़्यादा यहां सरकार का गुणगान करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.